स्मृति शेष : सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल के भीतर का व्याकुल भारत - संजय तिवारी

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#Nobel winning writer VS Naipaul dies

सर वी एस नायपाल नहीं रहे। वह नाय पाल जिनके भीतर एक महान भारत बसता था। वह नायपाल जिनके पूर्वज गोरखपुर से सटी नेपाल सीमा के किसी गांव से त्रिनिनाद चले गए थे। वह नायपाल जिन्होंने भारत के लिए हमेशा ईसाइयत से ज्यादा इस्लाम को खतरनाक माना। वह नायपाल जिन्होंने बाबरी ध्वंस को ऐतिहासिक संतुलन का एक कृत्य बताया था। वह नायपाल अयोध्या के जूनून के प्रबल हिमायती थे। वह नायपाल जो भारत के बंटवारे को बिलकुल अलग नजरिये से देखते थे और कहते थे कि वास्तव में पाकिस्तान की कहानी एक आतंक की कहानी है। यह एक कवि से शुरू होती है जो यह सोचता था कि मुसलमान अत्यधिक विकसित हैं जिनको भारत में रहने के लिए एक ख़ास जगह होनी चाहिए। नोबुल लॉरिएट सर विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल नहीं रहे। उनके न रहने पर अब उनके भीतर के उस व्याकुल भारत की बार बार याद आ रही है जो समय समय पर बाहर आता रहता था। विद्याधर सूरज प्रसाद नायपाल यानी एक सम्पूर्ण भारतीय।

विलक्षण मेधा ने बनाया महान 

भारतीय मूल के महान लेखक विद्याधर सूरजप्रसाद नायपॉल को 1971 में बुकर प्राइज और 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नायपॉल का जन्म 1932 में त्रिनिदाद में हुआ था। 'ए बेंड इन द रिवर' और 'अ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास' उनकी चर्चित कृतियां हैं। नायपॉल की पहली किताब 'द मिस्टिक मैसर' 1951 में प्रकाशित हुई थी। 2008 में 'द टाइम्‍स' ने 50 महान ब्रिटिश लेखकों की सूची में नायपॉल को 7वां स्‍थान दिया था। उनकी कुछ और मशहूर कृतियों में 'इन ए फ्री स्‍टेट' (1971), 'ए वे इन द वर्ल्‍'ड (1994), 'हाफ ए लाइफ' (2001) और 'मैजिक सीड्स' (2004) हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1950 में उन्होंने एक सरकारी स्कॉलरशिप जीती थी। इससे उन्हें कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटी में दाखिला मिल सकता था, लेकिन उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी को चुना। बताया जाता है कि छात्र जीवन में उन्होंने अवसाद की वजह से खुदकुशी करने की कोशिश की थी।

परिवार के नाम में नेपाल शब्द नेपाल देश पर आधारित 

वस्तुतः इस परिवार के नाम में नेपाल शब्द नेपाल देश पर आधारित है। अतः नैपाल, "जो नेपाल से हो"। इनके पूर्वज गोरखपुर के ब्राह्मण थे जिन्हें ट्रिनिडाड ले जाया गया। उनका गांव अब महराजगंज जनपद में पड़ता है। इसलिये इस परिवार का नेपाल को छोडना इससे पहले हुआ होगा। (१९३२ -) ट्रिनिडाड में जन्मे भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार (२००१ साहित्य के लिये) विजेता वी एस नायपाल एक बार गोरखपुर भी आये थे और अपने गांव तक गए थे । गांव में उनके घर के आगे एक मंदिर के आधार पर उन्होंने अपने पुश्तैनी मकान की पहचान की थी। वह अपने कुनबे के लोगो से मिले भी थे। इस बारे में गोरखपुर के कुछ पुराने साहित्यप्रेमी प्रायः चर्चा किया करते हैं। उनकी शिक्षा ट्रिनिडाड और इंगलैंड में हुई। वे दीर्घकाल से ब्रिटेन के निवासी हैं।

पूरा परिवार ही लेखक 

नायपाल के पिताजी श्रीप्रसाद नैपाल, छोटे भाई शिव नैपाल, भतीजे नील बिसुनदत, चचेरे भाई वह्नि कपिलदेव सभी नामी लेखक रहे हैं। पहले पत्रकार रह चुकीं श्रीमती नादिरा नैपाल उनकी पत्नी हैं। इनके अनुज शिव नैपाल भी बहुत अच्छे लेखक थे।इनका सबसे महान उपन्यास "ए हौस फार मिस्टर बिस्वास" है। नैपाल परिवार और कपिलदेव परिवार ट्रिनिडाड में बहुत प्रभावशाली रहे हैं।

बहुत खुलकर बोलते थे नायपाल 

वी.एस. नायपॉल अपने बयानों के लिए भी ख़ासे प्रसिद्ध रहे। समय- समय पर उन्होंने इस्लाम की ख़ूब आलोचना की। उनका मानना था कि इस्लाम ने लोगों को ग़ुलाम बनायाऔर दूसरों की संस्कृतियों को नष्ट करने की कोशिश की। वह कहते थे - जिनका धर्मांतरण हुआ उन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। जिनका धर्म परिवर्तन होता है, उनका अपना अतीत नष्ट हो जाता है। आपको अपना इतिहास कुचलना होता है। आपको कहना होता है कि मेरे पूर्वजों की संस्कृति अस्तित्व में ही नहीं है और न ही कोई मायने रखती है। मुस्लिमों द्वारा इस तरह से पहचान को मिटाना, उपनिवेशवाद से भी बदतर था। यह वास्तव में बहुत ही बदतर था। 

पाकिस्तान इसका जीता जागता उदाहरण 

नायपाल हमेशा भारत के बारे में भी खुलकर लिखते-बोलते रहे लेकिन हमेशा ही उन्होंने इस्लाम को भारत के लिए बहुत ही नुक़सानदेह बताया। साल 1999 में अंग्रेज़ी पत्रिका आउटलुक को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि भारत की सहस्राब्दी की शुरुआत काफ़ी त्रासदीपूर्ण रही है। इसकी शुरुआत मुस्लिम आक्रमण से हुई और उसने उत्तर में हिंदू-बौद्ध संस्कृति को कुचलना शुरू कर दिया। नायपाल का कहना था कि कला और इतिहास की किताबों में लोग लिखते हैं कि मुसलमान भारत 'आए', जैसे कि वे टूरिस्ट बस में आए थे और चले गए। वे क्यों नहीं लिखते कि मूर्तियां और मंदिर तोड़े गए, लूटमार हुई, स्थानीय लोगों को ग़ुलाम बनाया गया। स्त्रियों पर अत्याचार हुए।

हारे हुए लोग अपना इतिहास नहीं लिखते 

अपने तर्क में नायपाल ने कहा था - उत्तर भारत में हिंदू स्मारकों का नहीं होना इसके सबूत हैं। आक्रमण के दौर का कोई हिंदू रिकॉर्ड नहीं है। हारे हुए लोग कभी अपना इतिहास नहीं लिखते हैं। विजेता अपना इतिहास लिखते हैं और मुसलमान विजेता थे। दूसरी तरफ़ के लोगों के लिए यह अंधेरे का दौर था। नायपॉल ने भारत के इतिहास, संस्कृति और सभ्यता जैसे विषयों पर 'एन एरिया ऑफ़ डार्कनेस' और 'ए वुंडेड सिविलाइज़ेशन' जैसी किताबें लिखीं और उन्होंने कहा था कि भारत पर उनकी किताबें 27 सालों में लिखी गई हैं। 

ईसाइयों से ज़्यादा इस्लाम ने किया भारत का नुक़सान

नायपाल ने अपने साक्षात्कार में कहा था कि ईसाइयों ने भारत का उतना नुक़सान नहीं किया जितना इस्लाम ने किया। भारत में ईसाई धर्म दो तरह से आया। पहला ब्रिटिश की ओर से दूसरा मिशनरियों के ज़रिए। इस्लाम को जब आप भारतीय संस्कृति को समृद्ध करने के नज़रिए से देखते हैं तो आप भोजन, संगीत और कविता जैसी चीज़ों के बारे में सोचते हैं। वह मानते थे कि इस्लाम और ईसाई जैसे दो बड़े मजहबो ने दुनिया को हमेशा के लिए बदल दिया है। इनके धर्मशास्त्र के अनुसार, इन धर्मों ने दुनिया को भाईचारे, दान और इंसान से इंसान की भावनाओं का एक सामाजिक विचार दिया। ये हमारे राजनैतिक और नैतिक विचारों के आधार हैं। इससे पहले ये विचार न ही प्राचीन, न ही हिंदू और न ही बौद्ध दुनिया में अस्तित्व में थे। शायद इन दो धर्मों ने अपना काम किया है, लेकिन यह अलग विषय है। 

सैकड़ो वर्षो की पराजय ने हिन्दुओ में आत्मसमर्पण की भावना भर दी 

साक्षात्कार के समय जब पूछा गया कि हिंदू जीवनशैली को किस चीज़ ने नुकसान पहुंचाया है? इस सवाल पर नायपॉल ने कहा था कि सैकड़ो वर्षों की पराजय ने आत्मसमर्पण की भावना को नुक़सान पहुंचाया है। लगातार पार्जित होती सभ्यता के सामने समर्पण के अलावा कोई चारा ही नहीं था। भारतीय या जिसे हिंदू सभ्यता कहते हैं वह कभी भी आक्रमणकारी नहीं थी। सिकंदर से बाबर तक उसे जब लगातार आक्रमण झेलना पड़ा तो वह झेल ही न सकी। इसीलिए मुग़ल शासक अधिकाधिक आबादी को धर्मान्तरित कर सके।

बाबरी ध्वंस : ऐतिहासिक संतुलन का एक कृत्य 

इतिहासकार मुशीर-उल-हसन ने साल 2012 में अपने एक लेख में बताया था कि नायपॉल ने अपनी किताब 'ए मिलियन म्युटिनीज़' के छपने के दो साल बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस का बचाव किया था और इसे 'ऐतिहासिक संतुलन का एक कृत्य' बताया था। उन्होंने साल 2004 में बीजेपी कार्यालय में कहा था कि अयोध्या एक तरह का जुनून था और हर जुनून को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। मैं हमेशा जुनून से बाहर आने वाले कार्यों का समर्थन करता हूं, क्योंकि ये रचनात्मकता को दर्शाता है। 

मुंबई साहित्योत्सव में विवाद 

नवंबर 2012 में मुंबई में एक साहित्य उत्सव में उन्हें सम्मानित किया गया। उसी उत्सव में उन्होंने इस्लाम पर टिप्पणी की, जिसके बाद विवाद पैदा हुआ। उसी उत्सव में मशहूर नाटककार, लेखक और अभिनेता गिरीश कर्नाड ने उनकी कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि नायपॉल को भारतीय इतिहास में मुसलमानों के योगदान के बारे में कुछ नहीं पता है। गिरीश कर्नार्ड ने नायपॉल को एक ग़ैर-भरोसेमंद लेखक बताते हुए कहा था कि उन्हें संगीत की कद्र नहीं है। इस घटना के बाद नायपॉल का कहना था कि भारत पर उन्होंने पर्याप्त लिखा, अब और नहीं लिखेंगे। उन्होंने कहा था कि अब उन्हें ऐसा नहीं लगता है कि उन्होंने भारत के बारे में नहीं लिखा है। उन्होंने कहा था कि उन्होंने भारत के बारे में चार किताबें, दो उपन्यास और बहुत से निबंध लिखे हैं। इसके बाद शायद वह कभी भारत आये भी नहीं।

संजय तिवारी
संस्थापक - भारत संस्कृति नयास (नयी दिल्ली)
वरिष्ठ पत्रकार


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