हिंदुत्व की चादर और कांग्रेस !


बहुत पुरानी बात नहीं है और यह कोई किस्सा कहानी भी नहीं है। १९९६ में लोकसभा की वह बहस है, जिसके टीवी साक्ष्य यू ट्यूब पर आसानी से उपलब्ध हैं । वाजपेयी जी की १३ दिन की सरकार के बाद कांग्रेस के बाहरी समर्थन से संयुक्त मोर्चा की सरकार बनती है और देवेगौड़ा उसके प्रधानमंत्री बना दिए जाते हैं । संसद में यह सरकार विश्वासमत लेकर आती है, जिस पर बहस होती है |

सदन खचाखच भरा हुआ था , भाजपा उस दौर की राजनीति में नम्बर वन अछूत पार्टी थी, अछूत इसलिए कि वह हिंदुत्व, राष्ट्रवाद, राममंदिर की बात करती थी। जो नेहरूवियन युग के साये में पली बढ़ी हमारी राजनीति में किसी पाप से कम नहीं था।

उस बहस में श्रीमती सुषमा स्वराज भाजपा की ओर से बोलने के लिए खड़ी होती हैं। वे अपने धारदार तर्कों से सत्ता पक्ष पर हमला करती हैं, और उनके बेमेल गठबंधन की धज्जियां उड़ाती हैं।जब वे तथाकथित सेकुलर दलों की सेकुलरता की बखिया उधेड़ते हुए कहती हैं कि “हाँ, हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम वन्देमातरम बोलते हैं, हाँ हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम राष्ट्रीय ध्वज के आगे झुकना पसंद करते हैं, हाँ...हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम समान नागरिक संहिता की वकालत करते हैं, हाँ.....हम साम्प्रदायिक हैं क्योंकि हम विस्थापित कश्मीरी पंडितों के हक़ की बात करते हैं। और हम सेकुलर नहीं हैं क्योंकि सेकुलर होने के लिए इन लोगों की राजनीति में यह शर्त है कि आपको अपने हिन्दू होने पर शर्म करना चाहिए और जो अपने हिन्दू होने पर शर्म करता है, वह इनकी बिरादरी का सम्मानित सदस्य बन जाता है”।

सुषमा जी जब अपना यह भाषण कर रही थीं, तो कांग्रेस, सपा, जनता दल और अन्य तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों के सांसदों का शोर और हूटिंग यह बता रहा था कि देश की अस्सी फीसदी आबादी की औकात क्या है, और किस प्रकार शेष बीस फीसदी आबादी के लिए संसद का अस्सी प्रतिशत बहुमत लामबंद बैठा है। भाजपा के तमाम दिग्गज उस वक्त सदन में बैठे थे लेकिन यह स्पष्टत: पांडवों और कौरवों का सभागार लग रहा था। जिसमें "पांडव" सही होते हुए भी शर्मसार होने के लिए विवश थे और "दुर्योधन के नेतृत्व में कौरव" उनको शर्म और उलाहनों से गाड़ देने के लिए बेताब।

हमारी पीढ़ी ने वह दौर बखूबी देखा है कि किस प्रकार अखबारों में हिन्दू के अपराध को उसकी जाति, बिरादरी, गोत्र सहित प्रस्तुत किया जाता था, वहीं अगर किसी प्रकरण में मुसलमान की संलिप्तता होती थी तो उसे दो वर्गों की झड़प, दो सम्प्रदायों की लड़ाई और अल्पसंख्यक का तमगा पहनाकर प्राथमिकी स्तर पर ही लीपापोती कर दी जाती थी।

बल्कि यूपीए के दस साल में जिस प्रकार से कांग्रेस सरकार और उसके मंत्रियों का आचरण रहा, वह हिन्दुओं के दमन और प्रताड़ना का एक कलंकित अध्याय ही था।वरना इसके क्या मायने हैं कि सलमान खुर्शीद जैसे वरिष्ठ मंत्री पब्लिक में कहते हैं कि बाटलाहाउस एनकाउंटर में सोनिया गांधी फूट-फूट कर रोयी थीं, दिग्विजय सिंह किसकी शह से मुंबई हमलों को आरएसएस से नत्थी कर देते हैं ? वे कौन सी मजबूरियां थीं जिनके कारण मनमोहन सिंह की सरकार को लक्षित साम्प्रदायिक हिंसा विधेयक लेकर आना पड़ता है, जिसमें किसी भी दंगे की सूरत में सिर्फ और सिर्फ हिन्दुओं को सूली पर टांगने के प्रावधान थे ? ‘भगवा आतंकवाद’ जैसा शब्द गढ़ा गया, जो न भूतो न भविष्यति है | कांग्रेस सरकार अधिकृत रूप से एक धर्म, उसके प्रतीकों और उसके उपासकों पर आतंकवादी होने का ठप्पा लगा देती है, जिससे सीमा पार बैठे आतंक के आकाओं की बांछें खिल जाती हैं।

और जब कांग्रेस के इन्हीं कुकर्मों और षड़यंत्रों की सजा जनता उसे 44 के भाव में पटक कर देती है तो आप अपने पूर्व के कुकर्मों को हिंदुत्व की चादर ओढ़कर छुपाना चाहते हैं, जनता को मूर्ख बनाने के लिए ! भेड़ की खाल ओढ़कर भेड़िया कब तक छुपा रहेगा | जनता की याददास्त इतनी भी कमजोर नहीं है | और आज भी याद कीजिये वह द्रश्य कि जब एक कांग्रेस कार्यकर्ता कैलाश मानसरोवर की तथाकथित यात्रा के संस्मरण पूछता है तो नेता जी की जुबान लडखडा जाती है | बहुत सोचकर और बगल में खड़े कमलनाथ और सिंधिया की सलाह पर इतना भर कह पाते हैं कि कैलाश एक पर्वत है, और मानसरोवर है, जहाँ से लौटकर आदमी में गंभीरता आ जाती है | 

वाह कितने गंभीर हो गए नेता जी और क्या इसे संस्मरण समझा जा सकता है ?

इसके साथ ही एक बात और है | मैंने मोदी जी को लेकर 2014 में लिखा था -

औरों की नहीं खबर मुझको,
पर मैं तो साथ तुम्हारे हूँ,
धधक रही मन में ज्वाला,
बह दाहकता अंगारे हूँ !!

जब देखूं आतंकी मौज करें,
ओ देशप्रेम की हो निंदा !
मेरा मन मुझसे प्रश्न करे,
मैं मुर्दा हूँ या हूँ ज़िंदा ?

अनसुलझे सब प्रश्नों का,
केवल तुम ही इक उत्तर हो,
गुजरात नहीं अब देश तके,
भारत माँ के सतपुत्तर हो !!

और उस समय मेरा आंकलन सही था ! आज आतंकियों को बिरयानी नहीं, गोलियां मिल रही हैं !

मुझे मोदी जी की देशभक्ति पर आज भी पूरा यकीन है ! रक्षा सौदों में बिचौलिया प्रथा ख़त्म होने से परेशान अन्तर्राष्ट्रीय सौदागरों का षडयंत्र उनकी धवल चादर पर दाग नहीं लगा सकता |

इस सन्दर्भ में श्री रूपेश पटेल की एक फेसबुक पोस्ट पढ़ने योग्य है -

जो चिन्दी चोर सुखोई के रिसर्च और डेवलोपमेन्ट के नाम पर 50% रकम रूस को दे कर आये थे, उनके गुर्दो मे उतना दम नही था कि सुखोई की पूरी टेक्नोलोजी रूस से भारत मे ट्रांन्सफर करवा पाते..

आज भी HAL सिर्फ सुखोई की एसेम्बलिंग करती है..

ऐसा ही SU-57 FGFA डील मे कोंग्रेस ने किया था, 3 बिलियन डोलर रूस को दे दिये.. पर रूस ने फिर भी टेक्नोलोजी देने से तो इनकार किया ही, हमारे इंजीनियर्स को उसके रिसर्च और डेवलोपमेन्ट मे भाग भी नही लेने दिया...

अरे वो बात तो छोङिये.. हमारे एयरफोर्स के पायलटो को रूस में SU57 का टेस्ट फ्लाइट भी लेने से रूस मना कर रहा था, वो तो मोदी सरकार के मजबूत विरोध के बाद रूस का रुख नरम पडा था, बाकी सुखोई का पुनरावर्तन होने ही वाला था, इन्वेस्टमेंट हमारा और वाह वाही और सारा प्रॉफिट रूस अकेले ही ले जाता था...

इतना सब भेदभाव देखने के बाद मोदी सरकार ने रूस के साथ संयुक्त प्रोजेक्ट FGFA से हाथ वापस खींच लिया था, क्यूंकि रूस साफ साफ़ हमे सिर्फ लूट रहा था, जब कि फ्रांस ने तो अपने द्वार सीधे खोल दिये है भारत के लिये...

भारत की कंपनीयो के साथ राफेल के पार्ट्स का उत्पादन तो करेंगे ही, साथ मे भारत के स्वदेशी जेट इंजिन कावेरी को विकसित करने में मदद भी कर रहा है, जिसे भारतीय वैज्ञानिक दसको से बनाने में संपूर्ण सफलता नही पा सके है...

राफेल डील 100% सफल है, और भारत के पक्ष में है, विरोधीयो का दर्द इतना ही है कि भारत अगर रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबी हो गया तो भविष्य में कभी भी रक्षा सौदों मे कमीशन खाने को नही मिलेगा |

यह भी ध्यान देने योग्य है कि कांग्रेस की राजमाता आजकल रूस की यात्रा पर हैं | परदे के पीछे क्या पक रहा है, कौन जाने ?

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