“भविष्य का भारत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का द्रष्टिकोण” - दूसरा दिन



दिल्ली में चल रहे त्रिदिवसीय कार्यक्रम - “भविष्य का भारत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का द्रष्टिकोण” के दूसरे दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव जी भागवत द्वारा दिए गए उद्बोधन के मुख्य अंश –

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व्यक्ति निर्माण करता है।
हमें सामर्थ्य संपन्न देश चाहिये, लेकिन सामर्थ्य का उपयोग दूसरों को दबाने के लिये नही करना, लेकिन जिसका सामर्थ्य नही है, उसकी अच्छी बातें भी दुनिया मानती नही है, यह वास्तविकता है।
संघ का काम बंधु भाव का है, और इस बंधु भाव का एक ही आधार है विविधता में एकता, और यह विचार देने वाली हमारी चलती आयी हुई विचारधारा है, जिसे दुनिया हिंदुत्व कहती है, इसलिये हम हिंदू राष्ट्र कहते हैं।
हिंदुत्व के तीन आधार हम मानते हैं, देशभक्ति, पूर्वज गौरव, और संस्कृति, यह सभी का सांझा है।
हिंदू राष्ट्र का मतलब यह नही है कि इसमें मुस्लिम नही रहेगा, जिस दिन ऐसा कहा जायेगा उस दिन वो हिंदुत्व नही रहेगा, हिंदुत्व तो विश्व कुटुंब की बात करता है।
वैदिक ऋषियों के समय अपना ज्ञान पूरे विश्व में गया, तथागत के काल में सारी दुनिया में इसी धम्म का प्रचार हुआ, आज भी अनेकों संत महात्मा जाते हैं और इन बातों को बताते हैं, वो धर्मांतरण नही करते।
सभी विविधतायें अपने यहां स्वीकार्य हैं, भारत की पहचान यह बनी है, यह वैश्विक धर्म है, भारत में इसका निर्माण हुआ, और एक ट्र्स्टी के नाते समय समय पर विश्व को इस ज्ञान को देने वाला भारत है।
सभी के कल्याण में अपना कल्याण, और अपने कल्याण से सबका कल्याण, ऐसा जीवन जीने का अनुशासन, और सभी के हितों का संतुलित समन्वय हिंदुत्व है, भारत से निकले सभी संप्रदायों का जो सामूहिक मूल्य बोध है, उसका नाम हिंदुत्व है


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