“भविष्य का भारत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का द्रष्टिकोण” - व्याख्यानमाला का तीसरा दिन


दिल्ली के विज्ञान भवन में चल रही त्रिदिवसीय व्याख्यानमाला - “भविष्य का भारत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का द्रष्टिकोण” के तीसरे और अंतिम दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन राव जी भागवत द्वारा दिए गए उद्बोधन के मुख्य अंश –


हिंदुत्व, Hinduness, Hinduism गलत शब्द हैं, ism एक बंद चीज मानी जाती है, यह कोई इस्म नही है, एक प्रक्रिया है जो चलती रहती है, गांधी जी ने कहा है कि सत्य की अनवरत खोज का नाम हिंदुत्व है, एस राधाकृष्णन जी का कथन है कि हिंदुत्व एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है।
हिंदी में काम करना पड़ता है इसलिये अन्य प्रांतों के लोग हिंदी सीखते हैं, हिंदी बोलने वालों को भी दूसरे प्रांत की एक भाषा को सीखना चाहिये, इससे मन मिलाप जल्दी होगा, और यह कार्य जल्दी हो जायेगा।
संस्कृत को हम महत्व नही देते, इसलिये सरकार भी नही देती, यदि हमारा आग्रह रहे कि अपनी परंपरा का सारा साहित्य संस्कृत मे है, इसलिये हम संस्कृत सीखें, यदि यह हमारा मानस बने तो अपनी विरासत का अध्ययन भी ठीक से हो सकेगा।
तिलक जी ने अपने बेटे को पत्र लिखा कि जीवन में क्या पढना है तुम विचार करो, तुम अगर कहते हो कि मुझे जूते सिलना है तो मुझे आपत्ति नही, किंतु ध्यान रहे कि तुम्हारा सिला जूता इतना उत्कृष्त होना चाहिये कि पुणे का हर व्यक्ति कहे कि जूता वहीं से लेना है।
जो मैं सीख रहा हूँ वह मैं उत्कृष्ट और उत्तम करूंगा, उसकी उत्कृष्टता में मेरी प्रतिष्ठा है, क्या हम ऐसी भावना भर कर छात्रों को भेजते हैं? हम उनको ज्यादा कमाओ का मंत्र देकर भेजेंगे, तो शिक्षक कितना भी अच्छा हो तो यह कार्य नही करेगा।
शिक्षक को ये भान है क्या कि मैं अपने देश के बच्चों का भविष्य गढ रहा हूं? अनेक महापुरुष अपने शिक्षकों को याद करते हैं क्योंकि उनके जीवन में शिक्षक का सहयोग रहा है।
सर्वांगीण विचार कर के सभी स्तरों की शिक्षा का एक अच्छा मॉडल हमको खड़ा करना पड़ेगा, इसलिये शिक्षा नीति का आमूलचूल विचार हो एवं इसमें आवश्यक परिवर्तन किया जाये ये संघ बहुत वर्षों से कह रहा है, अब आशा करते हैं नयी शिक्षा नीति में यह होगा।
संस्कृत इतनी श्रेष्ठ भाषा है, कि संगणक (Computer) के लिये भी वह सर्वाधिक उपयोगी है, इसका गौरव यदि समाज में बढता है तो उसका भी चलन बढता है, चलन बढता है तो विद्यालय भी खुल जाते हैं, पढाने वाले भी मिल जाते हैं, नीतियों को भी समाज का मानस प्रभावित करता है
भारत की सभी भाषायें हमारी भाषा है, ऐसा मन होना चाहिये, जहां रहते हैं वहां की भाषा आत्मसात करनी चाहिये, आपकी रुचि और आवश्यक्ता है तो विदेश की भाषा सीखिये और उसमें भी विदेशी लोगों से ज्यादा प्रवीण बनिये, इसमे भारत का गौरव है
महिलायें को सुरक्षा के लिये सजग और सक्षम बनाना पड़ेगा, इसलिये किशोर आयु के लड़के और लड़कियों का प्रशिक्षण करना होगा, महिला असुरक्षित तब होती है जब पुरुष उसे देखने की अपनी दृष्टि को बदलता है।
विश्व में हिंदुत्व को लेकर आक्रोश और हिंसा नही है, विश्व में हिंदुत्व की स्वीकार्यता बढ रही है, आक्रोश भारत मे है, और यह आक्रोश हिंदुत्व विचार के कारण नही है, विचार को छोड़कर हमने अपने आचरण से जो विकृत उदाहरण प्रस्तुत किया, उसको लेकर है।
हमारे मूल्यबोध के अनुसार जो आचरण करना चाहिये, उसे छोड़कर हम पोथीनिष्ठ बन गये, रूढीग्रस्त बन गये, और हमने बहुत सारा अधर्म धर्म के नाम पर किया, आज की देश काल परिस्थिति के अनुसार धर्म का आचरण हमको करना होगा, तो सारा आक्रोश विलुप्त हो जायेगा
जो तत्व व्यवहार में नही उतार सकते वह तत्व किस काम का? और यदि तत्व श्रेष्ठ है और व्यवहार गलत है तो भी वह तत्व किस काम का? पहले हिंदू अच्छा, सच्चा हिंदू बने, इस कार्य को संघ कर रहा है
गाय परंपरागत श्रद्धा का विषय है, अपने देश के छोटे किसानों की आर्थिक व्यवस्था का आधार गाय बन सकता है, अनेक ढंग से गाय उपकारी है, पहले K2 दूध की बात नही होती थी, अब होती है।
गौरक्षा तो होनी चाहिये, लेकिन गौरक्षा सिर्फ कानून से नही होगी, गौरक्षा करने वाले देश के नागरिक गाय को पहले रखे, गाय को रखेंगे नही, खुला छोड़ेंगे तो उपद्रव होगा, गौरक्षा के बारे में आस्था पर प्रश्न लगता है।
गौसंवर्धन का विचार होना चाहिये, गाय के जितने उपयोग हैं उनको कैसे लागू किये जाये, कैसे तकनीक का उपयोग कर उसको घर घर पहुंचाया जाये, इस पर बहुत लोग काम कर रहे हैं, वो गौरक्षा की बात करते हैं, वो लिंचिंग करने वाले नही हैं, वो सात्विक प्रकृति के लोग हैं
अच्छी गौशालायें चलाने वाले, भक्ति से चलाने वाले लोग हमारे यहाँ हैं, मुस्लिम भी इसमे शामिल हैं।
देश विदेश के इतिहास को पढिये, उसमे धर्मांतरण करने वालों की क्या भूमिका रही है, इसका डेटा निकालिये,जो संघ ने नही लिखा, और संघ के विरोधी विचार रखने वालों ने भी लिखा हैI चर्च में आने के लिये इतने रूपये देंगे, ऐसा होता है तो विरोध होना चाहिये,अध्यात्म बेचने की चीज नही है
डेमोग्राफिक संतुलन रहना चाहिये, एक जनसंख्या के बारे में नीति हो, अगले 50 वर्ष की स्थिति की कल्पना करते हुए एक नीति बने, और उस नीति में जो तय होता है वो सभी पर समान रूप में लागू होना चाहिये, जहाँ समस्या है, वहां पहले उपाय करना चाहिये
सामाजिक कारणो से हजारों वर्षों से यह स्थिति है कि हमारे समाज के एक अंग हमने निर्बल बना दिया है, हजार वर्षों की बीमारी ठीक करने में यदि 100-150 साल हमें नीचे झुक कर रहना पड़ता है तो यह महंगा सौदा नही है, यह हमारा कर्तव्य है
अस्पृश्यता किसी कानून या शास्त्र से नही आयी, यह समाज की रूढिवादिता और दुर्भावना से आयी, हमारी सद्भावना ही उसका प्रतिकार कर सकेगे, इसका कार्य स्वयंसेवक करते हैं
समाज का प्रत्येक व्यक्ति समाज का एक अंग है, कुछ विशिष्टतायें समाज के लोगों मे है, किंतु वह समाज के अंग ही हैं, उनकी व्यवस्था करनी चाहिये, यह सह्रदयता से देखने की बात है, जितना उपाय हो सकता है वह करना, अन्यथा जैसे हैं वैसा स्वीकार करना चाहिये
अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा अपने यहां स्पष्ट नही है, जहां तक रिलिजन, भाषा की संख्या का सवाल है, अपने देश में वो पहले से ही अनेक प्रकार की है, अंग्रेजों के आने से पहले हमने कभी अल्पसंख्यक शब्द का इस्तेमाल नही किया


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