सेवा के माध्यम से बदलाव की अनुपम गाथा - गौमुखी सेवाधाम


छतीसगढ़ के कोरबा जिले से 60 किलोमीटर की दूरी पर बसा है छोटा सा गाँव देवपहरी | आज से अट्ठारह बरस पहले देवपहरी पहुँचना हिमालय चढ़ने जैसा कठिन था। गांव तक पहुंचने के लिए ट्रैकिंग कर तीन-तीन घाटियां पार करनी पड़ती थीं, कभी-कभी इसमें दो दिन भी लग जाते थे | देवपहरी ही नहीं लेमरू,डीडासराय जताडाड समेत कोरबा जिले के इन चालीस गाँवो तक पहुँचने के लिए ना कोई सड़क थी ना ही सरकारी वाहन | पढ़ने के लिए स्कूल नहीं था,ना इलाज के लिए दूर-दूर तक कोई डाक्टर ही था । जहां तक बिजली का सवाल है, वह तो आज भी नहीं है , महज पहुंचाने की कयावद चल रही है | वनोपज पर निर्भर रह कर जंगल के सहारे जीवन यापन करने वाले पंडो, बिरहोर, कोरवा, कंवर जनजातियों के इस वनवासी समाज के मरीज तो बस भगवान के भरोसे ही रहते थे | उस पर नक्सलियों के आतंक ने जीना दूभर कर रखा था | दराती की नोक पर खड़ी फसलें काट ली जाती थी | 

विषम परिस्थितियों से जूझ रहे इन वनवासियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का बीड़ा उठाया संघ के स्थानीय स्वयंसेवकों ने। आज से 18 वर्ष पहले 15 सितम्बर 2000 में नानाजी देशमुख जी की प्रेरणा से देवपहरी में गौमुखी सेवाधाम की स्थापना हुई | देवपहरी को केंद्र बनाकर आस-पास के 40 गाँवो के विकास की योजना बनी। बनवारी लाल अग्रवाल, किशोर बुटोलिया, डॉ. ध्रुव बैनर्जी, पी.एन.शर्मा, जैसे संघ के स्वयंसेवकों व इंदु दीदी जैसी सेवाभावी महिला ने जीवन के कुछ वर्ष यहाँ दिए और देखते ही देखते चालीस गाँवों में विकास की नई इबारत लिखी जाने लगी | 

झूम खेती करने वाले आदिवासियों को न केवल उन्नत खेती करना सिखाया गया, बल्कि आय बढाने के अन्य उपायों से भी अवगत कराया गया | इसके लिए युवाओं को रोजगारों की ट्रेनिंग दी गई और महिलाओं को भी आत्मनिर्भर व स्वाभिमान से जीना सिखाया | बच्चों को पढ़ाने के लिए स्कूल खोले गए, बीमारों के लिए एक अस्पताल भी शुरू हुआ | 

जनाडाड के सरपंच अमृतलाल राठिया काफी प्रयासों के बाद भी अपने गाँव में प्राथमिक विद्यालय भी नहीं खुलवा सके थे | नजदीक के गाँव में भी जो सरकारी स्कूल था, उसमें महीनों अध्यापकों के दर्शन नहीं होते थे | किन्तु जब उनका बेटा ज्ञानी रायपुर से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर अपने गाँव आया तो सबसे पहले मिठाई का डिब्बा लेकर गौमुखी सेवाधाम के कार्यालय में पहुंचा | यह सेवाधाम द्वारा भीषण कठिनाईयों के बीच अतीव समर्पण के साथ किये गए परिश्रम का ही नतीजा था, कि ज्ञानी जैसे सैंकड़ों जनजातीय बच्चे पढ़े और जीवन में आगे बढे | 

सेवाश्रम द्वारा संचालित हाईस्कूल “एकलव्य विद्या मंदिर” के छात्रावास “ममत्व मंदिर” में आज भी 300 बच्चे रहकर पढ़ रहे हैं | विद्यालय से अब तक एक हजार से अधिक बच्चे पढ़कर न केवल सफल जीवन जी रहे हैं, बल्कि यहाँ पढ़ने वाले बच्चों में दिखने वाले परिष्कृत सेवाभावी संस्कार, समाज के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि हैं | यहाँ रहकर ही पढ़े पुरुषोत्तम उरांव आज विद्यालय के प्रिंसिपल हैं | 

डॉ. देवाशीष मिश्र व उनकी पत्नी डॉ. सरिता का उल्लेख किये बिना यह सेवा गाथा अधूरी रहेगी | गत 16 वर्षों में इस आदर्श दंपत्ति ने इस बीहड़ जंगल के बीच एक छोटा सा हॉस्पिटल “आरोग्य मंदिर” स्थापित कर सैंकड़ों लोगों को नवजीवन प्रदान किया है | इस अस्पताल द्वारा हर वर्ष लाखों की दवाईयां निःशुल्क उपलब्ध कराई जाती हैं | 

संस्था के सचिव श्री गोपाल अग्रवाल उस दौर के साक्षी हैं, जब लोग बीमार व्यक्ति को खटिया पर डालकर उपचार के लिए यहाँ लाते थे | जबकि आज अस्पताल की एम्बुलेंस चौबीसों घंटे जनसेवा को तत्पर रहती है | इतना ही नहीं तो अब हर पंद्रह दिन में आसपास के गाँवों में मेडिकल केम्प भी लगाए जाते हैं, जिससे कुपोषण की समस्या से निजात मिलने के साथ जच्चा बच्चा मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है | गौमुखी सेवाश्रम की सबसे बड़ी विशेषता उसका अपना बिजलीघर है | चोरनई नदी पर छोटा सा बाँध बनाकर हाईड्रो इलेक्ट्रीसिटी के जरिये प्रतिदिन 5 किलोवाट बिजली पैदा की जाती है, जिससे छात्रावास व हॉस्पिटल रोशन होते हैं | जबकि आज भी इस इलाके में नातो बिजली के तार नहीं पहुंचे हैं और नाही बीएसएनएल टावर | 

कई ऐसे लोग जो पहले नक्सलवाद की राह पर चले गए थे, आज वापस मुख्य धारा में आ गए हैं | खुशहाल व आत्मनिर्भर जीवन देकर संस्था ने अराजकता व असामाजिकता के चंगुल में फंसने से इस क्षेत्र को काफी हद तक बचा लिया है | 

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