क्या जल्द ही जम्मू – कश्मीर और लद्दाख प्रथक प्रथक केंद्र शासित प्रदेश बनने जा रहे हैं ?

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व संगठन मंत्री श्री संजय जोशी की वेव साईट पर एक नया रहस्योद्घाटन हुआ है | वेव साईट के अनुसार जम्मू कश्मीर और लद्दाख का विभाजन शीघ्र होने की संभावना है | कश्मीर में महबूबा सरकार गिरने और राज्यपाल शासन लगने के बाद पहली प्राथमिकता घाटी से आतंकियों को खत्म करने को दी गई है | इसके लिए सेना, सीआरपीएफ और पुलिस तीनों को पूरी ताकत के साथ झोंक दिया गया है । सबसे पहले घाटी से आतंकियों और उनके समर्थकों का सफाया किया जाएगा और उसके बाद जम्मू-कश्मीर को तीन राज्यों में विभाजित कर शुरूआत में तीनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा | यह अलग बात है कि इस प्रकार की अभी तक कोई आधिकारिक घोषणा नही हुई हैं, किन्तु बलराज मधोक जी के समय से ही भारतीय जनसंघ यही मांग प्रकारांतर से उठाता रहा था । 

फिलहाल भारत में अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीऊ, लक्षद्वीप, पुदुचेरी और दिल्ली, ये 7 केंद्र शासित प्रदेश हैं | भारत के अन्य राज्यों की अपनी चुनी हुई सरकारें होती है, लेकिन केन्द्र शासित प्रदेशों में सीधे-सीधे भारत की केंद्र सरकार का शासन होता है | भारत के राष्ट्रपति हर केन्द्र शासित प्रदेश का एक सरकारी प्रशासक या उप राज्यपाल नामित करते हैं | बैसे लद्दाख को तो केंद्र शासित प्रदेश बनाने की मांग पिछले कई दशकों से उठ रही है, क्योंकि यहाँ की सीमाएं पाकिस्तान व चीन, दोनों से मिलती है, और राजनीतिक पार्टियां कई बार अपने राजनैतिक लाभ के नजरिये से पाकिस्तान या चीन की धुन गाती नजर आती है । जम्मू-कश्मीर को तीन राज्यों में बांटकर तीनों को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से इन इलाकों में क्षेत्रीय राजनीति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी और ये इलाके हमेशा के लिए सुरक्षित हो जाएंगे, साथ ही अलगाववाद की समस्या पर भी पूर्ण विराम लग जाएगा | 

लद्दाख के बौद्ध काफी वक्त से लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग तो उठाते ही रहे हैं. यहाँ का लेह जिला बौद्ध बहुल है जबकि कारगिल में करीब 99 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. 1979 से पहले लद्दाख एक ही जिला था लेकिन तब उसे बाँटकर दो जिले बनाए गए. यहाँ के बौद्धों का कहना है कि लद्दाख का ये विभाजन सांप्रदायिक आधार पर किया गया था.लद्दाख बुद्धिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष त्सेरिंग सिम्फेल कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर राज्य का फिर गठन किया जाना चाहिए. इसके तहत जम्मू और कश्मीर को अलग अलग राज्य का दर्जा दिया जाए और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाए. जबकि मुस्लिम बहुल कारगिल के लोग इसका विरोध करते हैं और कहते हैं कि लद्दाख जम्मू-कश्मीर के साथ साथ भारत का ही एक हिस्सा रहना चाहिए. 

बौद्धों की माँग….

सिम्फेल कहते हैं कि ये कोई सांप्रदायिक माँग नही है. हम लद्दाख क्षेत्र के लिए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा इसलिए माँगते हैं क्योंकि इसके दो जिलों लेह और रगिल को “शेख अब्दुल्ला ने 1979 में सांप्रदायिक आधार पर ही विभाजित किया था.”“हम इन जिलों का एकीकरण इसलिए चाहते हैं क्योंकि इससे बौद्ध बहुल लेह और मुस्लिम बहुल करगिल दोनों ही जिलों के एक होने से सांप्रदायिक समरसता बनेगी.”सिम्फेल के अनुसार उनकी यह माँग राष्ट्रविरोधी भी नही है क्योंकि भारत में 1956 में केवल 14 राज्य थे जब राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों पर नए राज्य बनाए गए थे. लेकिन जम्मू-कश्मीर राज्य को इस आयोग के दायरे से बाहर रखा गया था. राज्यों का पुनर्गठन मुख्य रूप से भाषा के आधार पर हुआ था. उसके बाद भी राज्यों के पुनर्गठन का सिलसिला बंद नही हुआ है और कुछ साल पहले ही तीन नए राज्य उत्तराँचल, झारखंड और छत्तीसगढ़ बनाए गए हैं.जम्मू-कश्मीर में भी तीनों ही क्षेत्रों में अलग अलग भाषाएँ बोली जाती है, अलग-अलग संस्कृति है, अलग-अलग जातीय समुदाय के लोग रहते हैं और तीनों ही क्षेत्रों की भौगोलिक संरचनाएँ भी एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. 

मुस्लिम माँग….

लेह के बौद्ध लोगों के उलट करगिल के मुस्लिम लोग लद्दाख के लिए केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिए जाने के खिलाफ नजर आते हैं. करगिल के मुसलमानों के एक प्रमुख संगठन इमाम खुमैनी मेमोरियल ट्रस्ट के अध्यक्ष असगर करबलाही कहते हैं कि लद्दाख जम्मू-कश्मीर की एक हिस्सा है और उसी के साथ उसका अस्तित्व बरकरार रहना चाहिए.करबलाही कहते हैं कि लद्दाख बिना शर्त भारत का हिस्सा रहना चाहिए लेकिन जम्मू-कश्मीर के एक हिस्से के रूप में ही इसका समुचित विकास संभव है. “लद्दाख का लेह जिले में तो पहले से ही बहुत विकास हो चुका है लेकिन कारगिल तक लोगों की पहुँच मुश्किल होने की वजह से वह अभी तक बहुत पिछड़ा हुआ है.”

बता दें कि कारगिल के मुसलमान कट्टर रूप से भारत के समर्थक माने जाते हैं और 1999 में पाकिस्तान की तरफ से घुसपैठ के मौके पर उन्होंने भारतीय सेना का साथ दिया था. करबलाही कहते हैं कि लद्दाख के भविष्य के बारे में कोई फैसला करने से पहले कारगिल के लोगों की भी राय ली जानी चाहिए और कारगिल के लोग एक वृहत्तर लद्दाख यानी ग्रेटर लद्दाख के हिमायती हैं न कि उसे एक केंद्रशासित प्रदेश बनाने के.

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