जब आमजन को अराजकता सही लगने लगे, तो कैसे रुकेंगी मोब लिंचिंग की घटनाएँ ?



भिंड के ख्यातनाम साहित्यकार हैं श्री ए. असफल | 

उनका यह संस्मरण बहुत कुछ सोचने को विवश करता है !

इन दिनों एक बहुत ही खतरनाक शब्द-युग्म मॉब लिंचिंग ने हमें आक्रांत कर रखा है। भीड़ द्वारा इस सिलसिले में लगातार हत्याएं की जा रही हैं। इस शब्द-युग्म को सुनते ही हर एक की रूह कांप जाती है। 

संयोग से अभी हाल ही में इस शब्द से हमारा साबिका कुछ ऐसे पड़ा कि हतप्रभ रह गए। हुआ यह कि मैं और महेश कटारे जोकि मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन की हीरक जयंती मनाकर भोपाल से ग्वालियर लौट रहे थे। मैं एक लोअर बर्थ पर था और महेश जी मेरे ऊपर मिडिल पर। सामने की लोअर बर्थ पर एक युवती लेटी थी और उसके ऊपर की मिडिल पर उसके पिता। इसके अलावा हमारे कूपे के सामने साइड लोअर पर एक अन्य लड़की लेटी थी और उसके ऊपर अपर बर्थ पर उसकी मां। 

घटनाक्रम ललितपुर के बाद शुरू हुआ जबकि रात का अंधेरा फैलने लगा। हमारे सामने वाली अपर बर्थ पर एक व्यक्ति बैठा शाम के धुंधलके से ही कोल्ड ड्रिंक्स की बॉटल से कोई सफेद और मटमैला सा पदार्थ पी रहा था। बीच-बीच में वह नमकीन भी खाता जा रहा था। थोड़ी देर बाद वह व्यक्ति जबकि गाड़ी झांसी के पास पहुंच रही थी, अपनी अपर बर्थ से उतरकर लड़की की बर्थ पर आकर बैठ गया। चेहरे-मोहरे, वेशभूषा, सामान और हाव-भाव से वह व्यक्ति एक फौजी लग रहा था! पता नहीं उसने क्या हरकत दी कि लड़की ने जोर से अपना पैर मारा...तो उसने आगे की ओर हाथ बढ़ाकर शायद उसके घुटने के ऊपर नोंच लिया! जिससे वह लड़की उठ कर अधबैठी हो गई और उसके बाद उस व्यक्ति ने उसके सीने पर हाथ रख दिया। 

इस घटना से मैं एकदम उत्तेजित हो गया। पर अपनी उम्र और कमजोरी का ख्याल कर जीभ दबा कर रह गया। लेकिन फिर भी मैंने उठकर लाइट तो जला ही दी और महेश जी से कुछ कहने लगा। इतने में वह अनाम फौजी खड़ा हुआ और उसने झट से लाइट बंद कर दी तथा वह फिर से बैठकर उस लड़की के साथ छेड़खानी करने लगा। अब तक लड़की के पिता को भी यह बात पता चल गई थी। मिडिल वाली बर्थ पर था। वह नीचे की ओर सिर झुकाकर वाकया देखने लगा था। पर कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा रहा था। 

महेश दादा और मैं भी उस वक्त उस हट्टे-कट्टे आदमी का रौद्र रूप देख सहमे से रह गए थे। लेकिन इसी बीच एक सुखद वाकया यह हुआ कि हमारे कूपे के सामने साइड लोअर पर जो लड़की लेटी थी वह अपने फोन से पुलिस से बात करने लगी...। उसने जोर-जोर से बताना शुरू कर दिया के फलां गाड़ी की, फलां कोच में, फलां बर्थ पर छेड़खानी की घटना हो रही है। आप यहां जल्दी आ जाइए। 

इतना सुनना था कि वह फौजी झटके से उठा और उसने उस लड़की को एक जोरदार तमाचा मारा, जिसकी चटाख की आवाज से हम सब दहशत में आ गए। और इसके साथ ही वह लड़की बहुत जोर से चीखी, हाय- मम्मी! कान फट गया। यह सुन उसकी मां अपर बर्थ से एकदम नीचे कूद पड़ी और वह गिरते गिरते बची। लेकिन वह फौजी उस लड़की की चोटी पकड़ जोर से झिंझोड़ने लगा, दांत पीसता, बकता हुआ- साली पुलिस को बुलाएगी...क्या कर लेगी पुलिस...मैं उसका बाप आर्मी मैन! मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता! समझी कि नहीं समझी!

लड़की जोर जोर से चीख रही थी, मम्मी कान फट गया, मम्मी कान में बहुत दर्द है, ओ-माँ! 

लेकिन फौजी अपनी हरकत से बाज नहीं आ रहा था। शर्मनाक तो यह कि पूरा डिब्बा चुप था, किसी में भी इतनी हिम्मत नहीं थी कि उससे दो शब्द कहता! उसका हाथ पकड़ना तो जैसे बम को छूना था! 

यही करते-करते झांसी आ गया। कुछ सवारियां उतर गयीं, लेकिन एक भी सवारी चढ़ी नहीं। स्टेशन आने पर फौजी अपनी बर्थ पर चढ़ गया था। हम लोगों ने समझा कि मामला शांत हो गया। हालांकि हम लोग इस बात का इंतजार कर रहे थे कि पुलिस वाले आएं और उसे गिरफ्तार करें तो हम भी गवाह बनें। पर कोई पुलिस नहीं आई और गाड़ी स्टेशन से चल दी। अब तक अंधेरा और गहरा गया था। दतिया निकने के बाद वह फौजी फिर नीचे उतरा तो मैंने उठकर लाइट जलाई। लेकिन उसने तुरंत बंद कर दी और मेरे सामने वाली बर्थ पर जो लड़की सहमी सी अधलेटी थी, उसकी बगल में आकर बैठ गया। तथा फिर उसके साथ कुछ न कुछ हरकत करने लगा। 

इस बात से हम लोग बहुत तनाव में आ गए। मैं उठा तो महेश कटारे समझ गए कि मैं उसे रोकने जा रहा हूं। इस पर वे भी अपनी बर्थ से नीचे आए और कान पर जनेऊ चढ़ाते हुए मुझे अपने पीछे आने का इशारा किया। मैं उनके पीछे चलता हुआ बाथरूम तक पहुंच गया। वहां बाथरूम में न जाकर उन्होंने मुझसे कहा कि- ग्वालियर आने दो, तब हम इसका इंतजाम करेंगे... यहां कुछ करने पर खतरा हो सकता है... इसके पास पिस्टल है, यह में गोली भी मार सकता है! 

मैंने कहा- ग्वालियर में गाड़ी कितनी देर रुकेगी... और हम क्या कर लेंगे?

तब उन्होंने कहा कि- वहां उतर कर तुम जीआरपी थाने चले जाना, गाड़ी चल पड़ेगी तो मैं जंजीर खींच दूंगा। पुलिस को लेकर आना तभी हम इससे लिपट सकेंगे। 

मैं उनकी बात समझ गया और अपनी सीट पर आकर लेट गया। इसके बाद वे भी मेरे पीछे आ गए और अपनी बर्थ खोल ली तथा हम दोनों लोअर पर बैठ गए। फौजी जो कि अभी तक सामने वाली लोअर पर अधलेटा लड़की को छेड़ रहा था, हमारी वाली सीट पर आ गया और उसने अपने पैर उस लड़की की बर्थ पर रख लिए। अब वह उसे पैरों से छेड़ने लगा। लड़की बहुत परेशान थी। और हम दोनों एक-दूसरे की ओर विवशता से देख रहे थे। बीच बीच में मैंने उससे पूछा, भाई साब आप कहाँ जाएंगे, घर जा रहे हैं, ड्यूटी जा रहे हैं... पर वह कुछ बोलता न था, हरबार एक कड़वी मुस्कान के साथ मुझे देख जरूर लेता। महेश दादा की मुख भंगिमा बता रही थी कि वे उसे मन ही मन कह रहे थे, बेटा ग्वालियर आने दे!

फिर उसे न जाने क्या सूझा कि, सामने वाली बर्थ पर फिर पहुंच गया, जिस पर वह लड़की कान पकड़े लेटी थी, जिसको उसने तेज थप्पड़ मारा था। इस तरह फिर वह उसे छेड़ने लगा। बहुत मुश्किल थी। खूब खून खौल रहा था, पर हम सिर्फ घड़ियां गिन रहे थे... कि कब ग्वालियर आए और हम उसे सबक सिखा पाएं! लड़कियों की जान छुड़ा पाएं! 

बड़ी मुश्किल भरे थे वे 40 मिनट...क्योंकि डिब्बे में अंधेरा था और वह बारी बारी से दोनों लड़कियों को कहां कहां नोंच रहा था, हमें पता भी नहीं चल रहा था। वह कभी इस लड़की के शरीर से खेलता तो कभी उठकर इस लड़की के शरीर से खेलने लगता। डिब्बे में हम इतने लोग थे पर किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी कि उस दुष्ट का विरोध करें। 

बड़ी मुश्किल से ग्वालियर आया। लेकिन ग्वालियर जैसे ही आया, मैं उतर कर सबसे पहले बाहर निकल गया और सीढ़ियों पर दौड़ता हुआ प्लेटफार्म नंबर एक पर जा पहुंचा, वहां संयोग से मुझे RPF का एक परिचित जवान मिल गया। मैंने उससे कहा कि- गाड़ी में इस-इस तरह छेड़खानी हुई है... तो उसने कहा, हां- चाचा, झांसी कंट्रोल रूम से कंप्लेंट नोट कराई गई है। पर यह G R P का केस है... यह कहकर वह मुझे संबंधित स्थान पर ले आया। हांफते हुए बमुश्किल मैंने वहां अपनी बात कही तो वहां बैठे 5-6 सिपाही और दारोगा FRI फॉर्म हाथ ले तुरंत मेरे साथ चल दिए। लेकिन तब तक गाड़ी प्लेटफार्म पर रेंगने लगी। मैंने पुलिस के साथ दौड़ते हुए महेश कटारे को फोन लगाया तो उन्होंने कहा कि- मैंने जंजीर खींच दी है... तुम अगले पुल से आओ, रुकने तक डिब्बा वहीं पहुंच जाएगा। मैंने उन सिपाहियों को पकड़ कर विपरीत दिशा में खींचा और हम लोग दौड़ते हुए एक्सीलेटर पर पांव रखकर पुल चढ़ गए और फिर नीचे की ओर दो नंबर पर सीढ़ियों से उतर आए। संयोग की बात थी कि वह बोगी सीढ़ियों के ऐन सामने आकर रुकी! महेश दादा गेट पर खड़े थे।

मैं चीखा-कहा, यही है! जवान दौड़कर अंदर घुस गए, उनके साथ महेश दादा भी। पर वह फौजी जवान इतना तगड़ा था कि खींचे नहीं खिंच रहा था। बड़ी मुश्किल से वे उस पर डंडे फटकारते और घसीटते हुए नीचे खींच कर लाए। इसके बाद पूरा डिब्बा उतर कर नीचे आ गया और उस व्यक्ति को हाथों से ही नहीं, अपने बूटों से भी कुचल-कुचल कर मारने लगा। लगा पलक झपकते-झपकते बोगी और प्लेटफार्म की भीड़ हिंस्र पशुओं में बदल गयी!

महेश कटारे चिल्लाए, यह क्या हो रहा है? यह तो मॉब लिंचिंग है! पुलिस वालों से कहा, इसको जल्दी से घसीटकर लॉकअप में ले जाकर बंद कर दो, नहीं तो भीड़ मार डालेगी!

बहरहाल, किसी तरह उसे बचाते हुए, गिरते-पड़ते हम सुरक्षा का घेरा बनाकर एकसीलेटर पर डाल प्लेटफॉर्म नम्बर एक पर ले आए तथा लॉकअप में बंद कराया। 

गाड़ी अब तक जा चुकी थी।

भीड़ हत्या या मॉब लिंचिंग बिना किसी व्यवस्थित न्याय प्रक्रिया के, किसी अनौपचारिक अप्रशासनिक समूह द्वारा की गई हत्या या शारीरिक प्रताड़ना को कहा जाता है। अराजकता की यह आंधी भारत में क्यों शुरू हुई, इसकी तह तक जाना होगा नहीं तो यह हमारा जीना दूभर कर देगी। दरअसल, भीड़ का मनोविज्ञान सामाजिक विज्ञान का एक छोटा-सा हिस्सा रहा है। यह एक अजीब और पुराना तरीका है जिसकी पुनरावृत्ति समाज में आज पुनः अस्थिरता आने और क़ानून-व्यवस्था के ऊपर भरोसा उठ जाने से निर्मित हो गयी है।

मेरे परिचित RPF के जवान ने बाद में मुझे बताया कि वह फौजी था तो उसके फोन पर एमसीओ वाले आ गए थे जो उसे छुड़ा ले गए और शायद उन महिलाओं ने भी F I R फार्म पर दस्तखत नहीं किए थे क्योंकि - वे तारीख पेशी के झंझट में नहीं पड़ना चाहती थीं।

अर्थात- न रखवाले जिम्मेदारी लेंगे और न पीड़ित प्रताड़ित आगे आएंगे.... तो क्या भीड़ की आंधी इसी तरह बढ़ती रहेगी?

*-ए. असफल*
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