पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान और राहुल गांधी के आरोपों पर अरुण जेटली की प्रतिक्रिया !



कुछ वक्तव्य केवल विवाद पैदा करने के लिए दिए जाते हैं, लेकिन हालात और तथ्य उन्हें स्वतः गलत साबित कर देते हैं और फिर ऐसे बयानों की विश्वसनीयता नहीं होती | फ्रेंच गवर्नमेंट ने कहा कि हमारा पूर्व राष्ट्रपति सही बयान नहीं कर रहा है | ऑफ़सेट सप्लायर कौन होंगे, यह दसॉल्ट का मेन्यूफेक्चरर तय करेगा | दसॉल्ट ने कहा – यह हमने तय किया, भारत का इससे कोई लेनदेन नहीं है | तो उनकी सरकार और उनकी कंपनी ने उसी समय उनका विरोध कर दिया कि वे सच नहीं बोल रहे हैं | 

लेकिन इसके पीछे के और कई कारण हैं, जिनमें से दो मैं आपको बतलाता हूँ | सब जानते हैं कि रिलायंस कम्पनी के दो भाग हो चुके हैं | एक रिलायंस वो था, जिसने 2012 में जब संभावना थी कि 126 एयरक्राफ्ट का कोंट्रेक्ट होगा, तब इसी दसॉल्ट के साथ एमओयू किया था | क्या वो भ्रष्टाचार नहीं था ? क्या उस समय सोनिया गांधी और राहुल गांधी फेवर कर रहे थे उस कम्पनी को ? हमने तो ऐसा नहीं कहा | 

दूसरा - वो रिलायंस बाद में डिफेन्स इक्विपमेंट में नहीं गई, दूसरी रिलायंस गई | तो स्वाभाविक है कि 2014 में जब कोंट्रेक्ट होता है, कि डिफेन्स क्षेत्र की जितनी कम्पनियां हैं, ऑफ़सेट सप्लाई करने के लिए वे आयें | ये ऑफ़ सेट क्या है ? ये जो 36 जहाज हैं, जिन पर वेपन लगे होंगे, वे फ्रांस में बनकर आयेंगे | जो पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि पार्टनरशिप में बनेंगे, कोई पार्टनरशिप नहीं है, यह दसॉल्ट बनाएगा | अगर ये 56 हजार करोड़ के आते हैं, तो उसका पचास फीसदी, याने अट्ठाईस हजार करोड़ का सामान, सप्लाई करने के बाद भारत से खरीदना पडेगा | यह भारत में निवेश के लिए कंडीशन होती है | उस अट्ठाईस हजार करोड़ के लिए दस बारह बीस कम्पनियां, वे चाहे सार्वजनिक क्षेत्र की हों – चाहे निजी क्षेत्र की, वो सप्लाई करती हैं | इसमें डिफेन्स का सामान, मशीनरी, एम्यूनेशन सप्लाई कर सकती हैं, गेंहू और चावल भी सप्लाई कर सकती हैं | इसमें आवश्यकता नहीं कि डिफेन्स का ही सामान हो, आशय केवल इतना है कि आपको भारत से इतना सामान खरीदना पडेगा, और बीसियों कम्पनियां इस दौड़ में लगती हैं | यह कोई आज की नीति नहीं है, 2005 की नीति है, यूपीए की | अगर एक भारतीय कम्पनी ऑफ़सेट सप्लाई करने लगे, तो इसमें स्केंडल क्या है ? हर डिफेन्स के कोंट्रेक्ट में ऑफ़सेट सप्लाई होती है | 

अब जो आरोप लगाया गया है कि भारत सरकार ने उनका नाम प्रस्तावित किया | भारत सरकार किसी का नाम नहीं लेती | दसॉल्ट कहता है कि जिन दस बारह कंपनियों को हमने काम दिया है, वो सारी की सारी हमने चुनी हैं | पहले दिन ओलांद साहब ने कहा कि फ्रांस सरकार का कोई नाम नहीं था, भारत से नाम आया | दूसरे दिन एक सम्मेलन में मोंट्रियाल गए, वहां एएफपी ने पूछा – क्या आपको कहा था ? और आपको जानकारी है कि भारत ने कहा था | 

तो बोले नो आई एम नोट अवेयर | यह दसॉल्ट से पूछो | तो पहले बयान का खंडन कर दिया | दूसरा वाक्य कहा – द पार्टनर्स चोज देयर सेल्व्स | तो जो निजी क्षेत्र के पार्टनर्स हैं, उन्होंने एक दूसरे को चुना | तो कहने की क्या कोशिश कर रहे हैं ? और ये भी याद रहे कि जो उन्होंने पहला बयान दिया था, वो इस सन्दर्भ में दिया था कि फ्रांस में उनके खिलाफ इस कोंट्रेक्ट में कोई निजी इन्ट्रेस्ट होने का वातावरण बना था, तो उनका यह सीधा साधा बचाव था कि भी मेरा इससे कोई मतलब नहीं, यह चयन मैंने नहीं, किसी और ने किया था | तो अपने आपको डिफेंड करते हुए उन्होंने कहा | और फिर बाद में उस बयान से पीछे हटते रहे | अब इस छोटे छोटे विवाद को लेकर हम क्या आर्मी और एयरफ़ोर्स की तैय्यारी को रोकने का प्रयास करेंगे ? 

सार्वजनिक चर्चा कैसी हो, यह कोई लाफ्टर चेलेंज नहीं है | आप कभी किसी को जाकर हग कर दो, फिर किसी को आँख मार दो, फिर एक गलत बयान चार छः दस बार देते रहो | लोकतंत्र में प्रहार होते हैं, लेकिन शब्दावली के चयन में तो थोड़ी बहुत बुद्धि का प्रयोग हो | अगर बल्गेरिटी हूँ करनी है, तू तू मैं मैं ही करना है, गाली गलौज ही करना है, तो फिर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को वो शोभा नहीं देता | 

अब देखिये 30 अगस्त को वे ट्वीट करते हैं कि फ्रांस के अन्दर बम चलने वाले हैं | सवाल उठता है कि उनको कैसे मालूम था कि एक बयान ऐसा आने वाला है ? मेरे पास कोई सबूत नहीं है, लेकिन यह जुगलबंदी मन में प्रश्न तो पैदा करती है | पहले दिन वो बयान दें, दूसरे दिन पीछे हटाने लगें, और ये उससे बीस दिन पहले उस बयान की प्रिडिक्शन कर दें, घोषणा कर दें कि बयान आने वाले हैं | 

कारगिल के युद्ध में जब दुश्मन पहाडी के ऊपर था और हम नीचे बोफोर्स 155 एम एम गन से उनको निशाना बनाते थे, तो तीन महीने लगे पांच छः सौ लोगों को भगाने में | अगर रफाल जैसा जहाज होता, जो पचास, सौ डेढ़ सौ किलोमीटर की दूरी से टारगेट को हिट कर सकता है, तो ये दो दिन का ऑपरेशन था | इसलिए यह स्केम नहीं है, भारतीय वायु सेना की आवश्यकता है | और जो पैसा हम खर्च रहे हैं, उससे भारतीय वायु सेना की ताकत बढ़ेगी | ये वो जहाज हैं, जो चाईना के पास हैं, जो पकिस्तान ने बनाने शुरू कर दिए | और कांग्रेस ने दस साल बर्बाद कर दिए, इन्हें पाने में और फ़ौज की तैयारी के लिए रुकावटें पैदा कीं | 

इस सवाल पर कि यूपीए काल में जो जहाज 526 करोड़ का था, अब एनडीए के समय में 1620 करोड़ का कैसे हो गया जेटली जी का जबाब था कि ये आंकड़ेबाजी बच्चों का खेल नहीं हैं | 2007 में जो ऑफर आती है, उस काल की और आज की विदेशी मुद्रा के मूल्य में कितना अंतर आया, उसे जोडिये, वार्षिक अस्किलेशन को जोडिये, तो प्लेन जहाज का 2016 का दाम, 2007 के दाम से नौ फीसदी कम है | जबकि प्लेन जहाज तो एक खिलौना है, जब उस पर मिसाईल बगैरह लगे हों तभी उसका हथियार के रूप में उपयोग है | अगर इस फार्मूले से देखें तो 2016 की कीमत 2007 से बीस फीसदी कम है | और ये सारे आंकड़े आज सीएनजी के सामने हैं, जोकि आंकड़ों की विशेषज्ञ संस्था है | कांग्रेस भी उनके पास गए हैं, हम भी इंतज़ार कर लेते हैं, फैसले का | 

ये कहते हैं कि पीएम क्यूं नहीं बोल रहे तो सीधा सा जबाब है कि प्रधान मंत्री का एजेंडा बहुत बड़ा है | वे पूरे देश में घूम रहे हैं, रोज नई नई योजनायें ला रहे हैं | दुनिया की सबसे बड़ी हेल्थ केयर स्कीम लांच हुई है | कोई कल्पना कर सकता था कि चार साल में 36 प्रतिशत ग्रामीण सेनीटेशन 92 प्रतिशत हो जायेगी ? कोई कल्पना कर सकता था कि इस देश की चालीस फीसदी जनसँख्या को होस्पीटल में चिकित्सा सुविधा सरकारी खर्चे पर प्राप्त होगी ? देश से गरीबी हटाने की ये कई योजनायें हैं | प्रधान मंत्री उस पोजीटिव एजेंडा में लगे हैं, ये अपने नेगेटिव एजेंडे में लगे हैं | और जो उत्तर देने हैं, वे रक्षा मंत्री दे चुकी हैं, मैं दे चुका हूँ, हमारी पार्टी दे चुकी है | हर विवाद में हम प्रधान मंत्री को इस हलकी डिवेट में ले आयें इसकी कोई आवश्यकता नहीं है | इस देश की जनता बहुत समझदार है | कौन दागी है, कौन नहीं है, उनको अच्छे से पहचान चुकी है | राफेल एक साफ़ सुथरी डील है | गवर्नमेंट टु गवर्नमेंट डील है, भारतीय फ़ौज की आवश्यकता है, मोदी जी की सरकार इतिहास की सबसे ईमानदार सरकार है, जबकि 2004 से 2013 तक चली यूपीए की सरकार सबसे भ्रष्ट सरकार थी | 

अरुण जेटली जी का यह आँखें खोल देने बाला बयान पढ़ने के बाद मेरी तो यह धारणा बनी है कि देश में उन लोगों को पहचानने की आवश्यकता है, जिनकी दिलचस्पी भारत की सुरक्षा में नहीं है, बल्कि जो विदेशी व्यापारिक हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और सदा भारत को कमजोर देखना चाहते हैं । बुद्धिहीन राहुल गांधी तो केवल भोंपू हैं, उनको जो रटा दिया जाता है, या लिखकर दे दिया जाता है, बोल देते हैं | उनके पीछे दिमाग भारत के लुटियंस प्रतिष्ठान का है, जिसकी एनडीए शासन काल में कमर ही टूट रही है, उनकी काली कमाई का धंधा ही चौपट हो गया है । 

यूपीए काल में प्राथमिकता साब ग्रिपेन को दी जा रही थी क्योंकि उसकी लागत और प्रदर्शन मानक दोनों ही अच्छे माने जा रहे थे | और ख़ास बात यह कि स्वीडिश कंपनी उसे राफले जेट के मुकाबले कम कीमत पर भारत को बेचने हेतु इच्छुक भी थी । ऐसी रणनीतिक खरीद से हमारे एयरोस्पेस और रक्षा प्रतिष्ठान को तकनीकी बढ़त हासिल होती । लेकिन इस विकल्प को भारत द्वारा खारिज कर दिया गया | क्यों ? 

इसके बाद यह माना गया कि दासॉल्ट का यूरोफाइटर ऑफ़र, बेहतर विकल्प है, क्योंकि एयरबेस इंडस्ट्री ने यह वायदा किया था कि उसके कई उत्पादों के विनिर्माण और रखरखाव केंद्रों को भारत में स्थानांतरित किया जाएगा । इसमें न सिर्फ सैन्य बल्कि नागरिक विमानों का संयुक्त निर्माण भी शामिल था, और साथ ही अंतरिक्ष सहयोग भी । लेकिन यह अटका रहा, मोदी सरकार आने तक | क्यों ? 

प्रारंभिक यूएस एफ -16 सौदे के मामले में, विमान को भारत में छोटे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ बेचा जा रहा था, जिसे अस्वीकार किया गया, क्योंकि इससे देश की विनिर्माण क्षमता में कोई वृद्धि नहीं होने वाली थी । अब लॉकहीड ने अपनी पूरी एफ -16 उत्पादन लाइन भारत को पेश की है, यह सौदा न केवल प्रौद्योगिकी उन्नयन संभावना के द्वार खोलता है, बल्कि वियतनाम और मलेशिया जैसे तीसरे देशों में (भारत द्वारा निर्मित) एफ -16 के लिए बाजार मिलता है। इसके लिए भारतीय वायु सेना को मिलने वाले लगभग 300 आधुनिक एफ -16 विमानों के के अलावा निर्यात के लिए भी लगभग 200 और विमानों को जोड़ा गया है । 

तो अब एक बार फिर साजिशें रची जा रही हैं | 

जागो भारत जागो |
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