गायत्री मन्त्र की व्याख्या !
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स्व. रूद्र शेखर |
महज 24 वर्ष की आयु में संसार से विदा ले गए थे स्व. रूद्र शेखर ! 2013 तक वे सोशल मीडिया पर अत्यंत प्रसिद्ध हो चुके थे | यहाँ तक कि उनके बीमार होने का समाचार पाकर स्वयं प्रधानमंत्री मोदी जी ने उनके पिताश्री से जानकारी ली व दिल्ली में उनके उपचार की व्यवस्था करवाई | रूद्र जी की प्रखर बौद्धिक क्षमता को प्रदर्शित करने वाला यह आलेख निश्चय ही पठनीय है -
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्स्वितुरवरेण्यम
भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात
...ऋग्वेद (iii /62/10)....
गायत्री वस्तुतः एक संस्कृत काव्यात्मक छंद है जिसकी तीन पंक्तियों में से प्रत्येक में आठ अक्षर समाहित हैं | यही कारण है कि अनेकों गायत्री मन्त्र हैं, किन्तु विशेषतः उक्त गायत्री मंत्र सर्वाधिक प्राचीन व प्रसिद्ध है |
हिन्दू धर्म में प्रत्येक देवी देवता के लिए उनसे सम्बंधित गायत्री मन्त्र हैं | यहाँ गणेश गायत्री, शिव गायत्री, दुर्गा, विष्णु लक्ष्मी और इसी प्रकार अन्य देवताओं की प्रार्थना के लिए गायत्री मन्त्र विद्यमान हैं | अधिकाँश लोग इस तथ्य से अनभिज्ञ हैं, इसी कारण जब हिन्दू गायत्री मन्त्र की चर्चा करते हैं तो उपरोक्त मन्त्र से ही उनका अभिप्राय होता है, जो कि सावित्री अर्थात सूर्य से सम्बंधित है | प्रथम पंक्ति जो हम देखते हैं “ॐ भूर्भुवः स्वः” वस्तुतः गायत्री मन्त्र का भाग नहीं है | यह व्याहृति नामक एक विशेष प्रारम्भिक पद है जिसे इस प्रसिद्ध गायत्री के साथ जोड़ दिया गया है | यह व्याहृति स्वयं में महत्वपूर्ण है
गायत्री मन्त्र का प्रथम भाग, जिसे कि मैंने प्रारम्भ में मन्त्र से प्रथक निरूपित किया है, “ॐ भूर्भुवः स्वः” अर्थात व्याहृति स्वयं में परिपूर्ण मन्त्र है | यह मन्त्र न केवल गायत्री मन्त्र के साथ दोहराया जाता है, बल्कि हवन व यज्ञ आदि में प्रथक से भी उपयोग होता है |
ॐ शब्द अनेकों प्रार्थनाओं के प्रारम्भ में की जाने वाली एक शुभ ध्वनि है | भुर भुवः और स्वः की अभिव्यक्ति तकनीकी है, किन्तु सामान्यतः इसे “निर्माण आह्वान” के रूप में समझा जा सकता है, जिसका निहितार्थ है कि जिस प्रकार सूर्य की रश्मियाँ (परमेश्वर की आभा), पृथ्वी (भुर), आकाश (भुवः) और अंतरिक्ष (स्वः) को प्रकाशित करती है, उसी प्रकार "वह प्रकाश मुझे भी दीप्तिमान करे" |
तकनीकी “व्याहृति” ध्यान योग क्रिया को अभिव्यक्त करती है | यह प्रथ्वी सामान्यतः अस्तित्व के अनेकों धरातलों में से एक है | वस्तुतः इस प्रथ्वी से ऊपर छः धरातल (लोक) हैं, जिन्हें स्वर्ग कहा गया | इस प्रकार प्रथ्वी सहित सात लोक(स्वर्ग) ऊपर और सात लोक(नरक) नीचे हैं, प्रथ्वी मध्य में है | जैसा कि आपने कभी सुना ही होगा कि “वह सातवें आसमान (स्वर्ग) पर है” | आपको समझ में आ गया होगा कि यह स्वर्ग की हिन्दू मान्यता के अनुरूप ही है | सातवाँ स्वर्ग सबसे ऊपर का स्वर्ग है | प्रारम्भ के तीन लोक, प्रथ्वी से प्रारम्भ कर भुर, भुवः और स्वः कहलाते हैं | इस प्रकार भुर भुवः स्वः की उक्ति अस्तित्व के तीन धरातलों को दर्शाने वाली है जहां ध्यानावस्था में एक योगी पहुँच सकता है |
तत – वह (भगवान)
सवितुर – सूर्य को
वरेण्यम – सर्वोत्तम (चयन करने योग्य)
भर्गो (भर्गास) – प्रकाश दीप्ति
देवस्य – दैवीय
....धीमहि – हम ध्यानस्थ हों
धियो (धियः) – विचार
यो – जो
नः – हमें
प्रचोदयात – प्रेरित करे
गायत्री मन्त्र का अर्थ -
जो प्रकाश, सूक्ष्म, परिपूर्ण और सामान्य इन तीनों लोकों को दीप्तिमान करता है, हम उसकी महिमा का चिंतन करते हैं |
...
मैं शक्ति, प्रेम, उज्ज्वल प्रकाश और सार्वभौमिक बुद्धि के रूप में परमात्मा की कृपा का अनुभव कर रहा हूँ |
हमारे मस्तिष्क को प्रदीप्त करने के लिए हम दैवीय प्रकाश की आराधना करें |
ॐ – प्राचीनतम ध्वनि
भुर – भौतिक जगत
भुवः – मानसिक जगत
स्वः – आध्यात्मिक जगत
तत – वह, ईश्वर, जगदाधार परमात्मा
सवितुर – सूर्य, कर्ता, संरक्षक
वरेण्यम – आराध्य
भर्गो – आभा, प्रभा
देवस्य – दैदीप्यमान सर्वोच्च भगवान
धीमहि – हम ध्यान करते हैं
धियो – बुद्धि, विवेक
यो – इस प्रकाश में
नः – हमारा
प्रचोदयात – प्रेरणा, मार्गदर्शन मिले
यह है क्या ?
गायत्री विश्व के सर्वाधिक प्राचीन शास्त्र “वेद” में वर्णित सार्वभौमिक प्रार्थना है | जिसमें सर्वकालिक और सर्वोत्कृष्ट दैवीय शक्ति “सविता” अर्थात 'जहाँ से यह सब का जन्म होता है', को संबोधित किया गया है | अर्थात यह बौद्धिक क्षमता बढ़ाने हेतु की जाने वाली वैदिक प्रार्थना है |
गायत्री अन्नपूर्णा है, माँ है, जीवन की वृद्धि करने वाली पुष्टिदाता शक्ति है, अतः उसकी उपेक्षा न करे |
गायत्री को वेदसार कहा जाता है | वेद अर्थात ज्ञान, और यह प्रार्थना ज्ञान की वृद्धि करने वाली है | तथ्यात्मक रूप से चारों वेदों में निहित चार महावाक्य सार तत्व के रूप में इस गायत्री मंत्र में निहित हैं |
गायत्री मंत्र (बौद्धिक क्षमता बढ़ाने के लिए वैदिक प्रार्थना) एक पवित्र मन्त्र है जो सृष्टि निर्माण के बहुआयामी एकत्व को प्रदर्शित करता है | इस एकता की मान्यता के माध्यम से हम बहुलता को समझ सकते हैं | जिस प्रकार एक ही मिट्टी से अलग अलग आकृति और आकार के बर्तन बनाये जा सकते है, सोने के गहने विविध प्रकार के निर्मित किये जा सकते हैं, जबकि स्वर्ण एक ही है, यह आत्मा (दैवीय तत्व) भी सबमें एक ही है | गाय का रंग जो भी हो दूध हमेशा सफेद ही रहता है |
Tags :
धर्म और अध्यात्म
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