हाशिमपुरा काण्ड और सुब्रमण्यम स्वामी



आज सुब्रमण्यम स्वामी का एक ट्वीट पढ़कर भूलेबिसरे हाशिमपुरा काण्ड की याद ताजा हो गई | कुछ लोगों को हैरत होगी कि हाशिमपुरा में हुई मुस्लिमों की हत्या के मामले में स्वामी लगातार संघर्ष करते रहे हैं, और आखिर हत्या के आरोपियों को सजा दिलाने में सफल हुए | 

तो आईये जानते हैं कि क्या है यह हाशिमपुरा काण्ड – 

फरवरी 1986 में केंद्र सरकार ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने का आदेश दिया, तो उत्तर प्रदेश का माहौल गरमा गया था। मेरठ, मोरादाबाद, कानपुर, इलाहाबाद और कई अन्य शहरों में दंगों की आग फ़ैल गई | कई लोगों की हत्या हुई, तो दुकानों और घरों को आग के हवाले कर दिया गया था। कई शहरों में कर्फ्यू भी लगाना पड़ा। 

14 अप्रैल 1987 से मेरठ में धार्मिक उन्माद शुरू हुआ। जब मई तक माहौल शांत नहीं हुआ और दंगाई लगातार वारदात करते रहे, तो शहर को सेना के हवाले कर दिया गया । इसके साथ ही बलवाइयों को काबू करने के लिए 19 और 20 मई को पुलिस, पीएसी तथा सेना के जवानों ने सर्च अभियान चलाया । हाशिमपुरा, शाहपीर गेट, गोला कुआं, इम्लियान सहित अन्य मोहल्लों में पहुंचकर सेना ने मकानों की तलाशी लीं। इस दौरान भारी मात्रा में हथियार और विस्फोटक सामग्री मिली । सर्च अभियान के दौरान हजारों लोगों को पकड़ा गया और गिरफ्तार करके जेल भेज दिया था। 

इसी दौरान 22 मई की रात हाशिमपुरा में एक ह्रदयविदारक काण्ड हुआ। आरोप है कि यहां रहने वाले किशोर, युवक और बुजुर्गों सहित कई सौ लोगों को ट्रकों में भरकर पुलिस लाइन ले जाया गया था। उनमें से एक ट्रक को दिन छिपते ही पीएसी के 19 जवान दिल्ली रोड पर मुरादनगर गंग नहर पर ले गए थे। उस ट्रक में करीब 50 लोग थे। वहां ट्रक से उतारकर लोगों को गोली मारने के बाद एक एक करके गंग नहर में फेंका गया। कुछ लोगों को ट्रक में ही गोलियों से भूनकर ट्रक को गाजियाबाद हिंडन नदी पर ले गए और शवों को नदी में फेंक दिया गया । कुछ लोग जो गोली लगने के बावजूद जिन्दा बच गए, उनके कारण हाशिमपुरा कांड पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया । 

ख़ास बात यह थी कि उस समय केंद्र में राजीव गांधी तो उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के ही वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे। 1987 के मेरठ दंगों और तत्कालीन सरकारों की उदासीनता ने ही वह पटकथा लिखी जिसके चलते उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह राज्य के राजनीतिक परिदृश्य से लुप्त होती चली गई | 1985 के विधानसभा चुनावों में पार्टी के 269 विधायक जीते थे और कांग्रेस सरकार बनी थी। किन्तु 1989 में कांग्रेस के केवल 94 विधायक जीते और मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। जबकि भाजपा ने 57 सीटें हासिल की। आज हालत यह है कि बीजेपी ने 325 सीटें हासिल की हैं और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं जबकि कांग्रेस के महज 7 विधायक हैं । 

हाशिमपुरा नरसंहार के एक महीने बाद, 23 जून को पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने न्यायमूर्ति राजिंदर सच्चर, आईके गुजराल, एएम खुसरो, दिलीप स्वामी और केसी गुप्ता द्वारा सामूहिक रूप से तैयार एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई और कांग्रेस पार्टी की भूमिका को संदेह से परे बताया गया । मोहसिना किदवाई उस समय मेरठ से सांसद थीं । वह केंद्र में शहरी विकास मंत्री भी थीं । उनसे जब पीड़ितों के परिजन मिले, तो उन्होंने महज सैयद शाहबुद्दीन से संपर्क करने सलाह देकर पल्ला झडका लिया । तत्कालीन केंद्रीय पर्यटन मंत्री और जम्मू-कश्मीर में पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद ने उत्तर प्रदेश में हुए दंगों के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 

भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करने हेतु मेरठ से दिल्ली की यात्रा निकाली और तत्कालीन गृह राज्य मंत्री पी चिदंबरम के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए । 2012 में जब न्यायालय ने संदेह का लाभ देते हुए आरोपियों को बरी कर दिया, तब स्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की , जिसका हवाला आज के ट्वीट में दिया गया है । 

Delhi HC has accepted my plea to set aside the Tiz Hazari special court acquittal of 16 PAC jawans in the 1987 Hashimpura genocide case. 

1987 हाशिमपुरा नरसंहार प्रकरण में 16 पीएसी जवानों को मुक्त करने के तीस हजारी स्पेसल कोर्ट के आदेश को निरस्त करने की मेरी याचिका पर आज दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला दे ही दिया | 

स्मरणीय है कि अब इन 16 जवानों को आजन्म कारावास की सजा भुगतनी होगी |
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