राम मंदिर निर्माण हेतु संसद में कानून - आरएसएस सरसंघचालक जी के बयान पर श्री सुब्रमण्यम स्वामी की त्वरित प्रतिक्रिया !



सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के दो टूक कथन – संसद में क़ानून बनाकर अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण किया जाए – पर टाईम्स नाऊ को दी सुब्रमण्यम स्वामी की प्रतिक्रिया – 

जो लोग हिंदुत्व पर आस्था रखते हैं, उनके विचार समान ही होते हैं | वस्तुस्थिति यह है कि राममंदिर प्रकरण लगभग साढ़े सात वर्षों से बिना सुनवाई के लंबित है | जैसे ही इसे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया, कांग्रेस ने मेरी पिटीशन का विरोध शुरू कर दिया कि एक बड़ी संवैधानिक बेंच 1994 के उस आदेश की समीक्षा करे, जिसमें यह निर्णय दिया गया था कि मस्जिद इस्लाम का आवश्यक तत्व नहीं है | इसे तोडा या हटाया जा सकता है क्योंकि नमाज तो कहीं भी पढी जा सकती है | 

यह सीधे तौर पर प्रकरण को लम्बे खींचने का प्रयास था | किन्तु अब सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय हो गया है कि 94 के आदेश की पुनः समीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है | अतः वह निर्णय यथावत है | 

मेरी पिटीशन का मुख्य मुद्दा है कि – राम का जहाँ जन्म हुआ, वहां पूजन व प्रार्थना करना मेरा मौलिक अधिकार है | और इससे भी बढ़कर नरसिंहाराव सरकार न्यायालय को कह चुकी है और जो सर्वोच्च न्यायालय के रिकोर्ड पर है, कि अगर कभी यह प्रमाणित हो कि वहाँ पूर्व में मंदिर था, जिसके स्थान पर मस्जिद बनाई गई, तो यह स्थान हिन्दुओं को मंदिर निर्माण के लिए दे दिया जाए | 

अब इलाहावाद हाईकोर्ट की निगरानी में आर्कियोलोजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है कि जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद थी, वहां पूर्व में एक भव्य मंदिर था | तो अब प्रकरण में कुछ नहीं बचा है, सिवाय विलम्ब के | तो अगर अब भी विलम्ब होता है, तो हमें संसद में आर्डीनेंस की दिशा में विचार करना चाहिए |

यह पूछे जाने पर कि सरसंघचालक के बयान के बाद बीजेपी का अगला कदम क्या होगा, श्री स्वामी ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में बीजेपी नहीं गई है, निजी तौर पर मैं गया हूँ | अब मेरी पिटीशन सूचीबद्ध कर ली गई है और दशहरे के बाद उस पर जल्द ही सुनवाई भी शुरू हो जायेगी | कार्यवाही फास्ट ट्रेक पर होगी, जिसमें विचार का केवल एक बिंदु है - मेरा मौलिक अधिकार | 

क्योंकि यह तो पूर्व में ही निर्णय हो चुका है कि चूंकि मुस्लिम कहीं भी नमाज पढ़ सकते हैं, अतः मुस्लिम को वहां कोई मौलिक अधिकार नहीं है | अतः उसे हटाया या कहीं और शिफ्ट किया जा सकता है | जबकि प्राणप्रतिष्ठा पूजा होने के कारण वहां पूजन करना मेरा मौलिक अधिकार है | अतः यह बहुत कम समय में होने वाली सुनवाई है | और मुझे भरोसा है कि कोर्ट इसी निर्णय पर पहुंचेगी कि वहां मंदिर बनना चाहिए, क्यूंकि नरसिंहाराव सरकार स्वयं यही समाधान सुझा चुकी है | 

किन्तु कांग्रेस पार्टी अगर इसके बाद भी डिले पालिसी अपनाती है तो दिसम्बर में जब संसद शुरू होगी , तब हमें आर्डीनेन्स की दिशा में जाना चाहिए | 

साभार - https://twitter.com/i/status/1052826323813425152

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