मिलन भार्गव – भोपाल के राजनैतिक क्षितिज पर उभरता एक सितारा !

श्री मिलन भार्गव 

जन्म दिनांक 13 दिसंबर 1986
जन्म स्थान सुल्तानिया अस्पताल भोपाल 

परिवार – माता, पिता, एक छोटी बहिन, पत्नी और एक दो माह का पुत्र |

सुदर्शन और सौम्य व्यक्तित्व के धनी मिलन भार्गव का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ, जहाँ उन्हें बचपन से ही अध्यात्म और आधुनिकता का अद्भुत समन्वय मिला | परिजनों के बीच समसामयिक राजनैतिक और सामाजिक विषयों पर खुलकर चर्चा होती थी, जिसे बाल मिलन भी बड़े मनोयोग से सुनते और आत्मसात करते थे | पिताजी ने इतिहास से एमए किया था, और उन्हें पढ़ने का अत्याधिक शौक था | वे पढ़कर कहानियां बच्चों को सुनाया करते थे | अतः विवेकानंद जी, महाराणा प्रताप, राणा सांगा, राजा दाहिर और शिवाजी, सबकी गाथाएँ परिवार के बच्चों को याद थीं | घर में चंदामामा, नंदन, कोमिक्स का भण्डार था | 

मिलन विवेकानंद जी से अत्याधिक प्रभावित रहे | वातावरण के प्रभाव से तरुणावस्था आते आते कंसेप्ट क्लियर होने लगे | जब ग्यारहवीं क्लास में थे, तब एक दिन चाचाजी ने पूछा कि मिलन आगे क्या सोचा है ? पढ़लिखकर सरकारी नौकरी करोगे या क्या करोगे |

मिलन का जबाब था – चाचा सरकारी नौकरी करने से तो सरकार बन जाना ज्यादा बेहतर है | जहाँ नीतियाँ बनती हैं, वहां जाकर बैठना ज्यादा बेहतर है | 

जब बारहवीं कक्षा में पढ़ते थे, तब कम्प्युटर प्रशिक्षण के लिए जिस संस्थान में प्रवेश लिया, उसके ठीक सामने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रांत कार्यालय स्थित था | आते जाते सहज जिज्ञासा होती कि क्या होता है यहाँ | तो एक दिन बड़ी ही मासूमियत के साथ कार्यालय में जा पहुंचे | एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने बड़े स्नेह से इनसे बातचीत की, परिचय लिया | संघ के विषय में घर पर चर्चा होती ही रहती थी, यह अपनत्व मिला तो लगाव और भी बढ़ गया | फिर तो नियमित आना जाना शुरू हो गया | जब बड़े बड़े संघ अधिकारी इनसे परिचय कर इन्हें मिलन जी संबोधन देते तो इन्हें बड़ा ही अच्छा लगता | मिलनसार तो ये भी थे, किन्तु संघ अधिकारियों की सहजता और सरलता ने इन्हें अभिभूत कर दिया | 

मिलन के चाचा अमित जी मुम्बई फिल्म जगत के जाने माने अभिनेता और निर्देशक है, वे प्रारंभ से ही इनके प्रमुख मार्गदर्शक व सलाहकार रहे थे | उनसे अक्सर चर्चा होती थी कि समाज को प्रभावित करने वाले क्षेत्र कौन कौन से हैं | चर्चा में निकला कि कानून की समझ के लिए वकालत का महत्व है, साथ ही मीडिया भी समाज को काफी हद तक प्रभावित करता है | जहाँ तक राजनीति का सवाल है, तो उसमें प्रभावशाली राजनेता बनने के लिए तो काफी समय लगता है | उसके बाद इन्होने मीडिया के क्षेत्र में हाथ अजमाने का तय किया और प्रयत्न किया तो दूरदर्शन में केजुअल जॉब भी मिल गया |

लम्बे समय तक दूर दर्शन में काम करते हुए कई चीजें नजदीक से देखीं समझीं जानी, आत्म विश्वास भी बढ़ा | नये संपर्क सम्बन्ध भी बने | फिर माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्व विद्यालय में भी पत्रकारिता प्रशिक्षण हेतु मास कम्यूनिकेशन में प्रवेश ले लिया | साथ में संघ शाखा जाना भी जारी रहा | परिवार के लोगों को बड़ा अटपटा लगा कि ये कर क्या रहे हैं | जो प्रचलित है उस अनुसार एमबीए इत्यादि न करते हुए, ये कहाँ के झंझट में उलझ रहे हैं | पिताजी ने खासतौर पर पूछा | पडौसी भी पूछते कि तुम्हें ये क्या भूत लग गया | कम्प्युटर कोर्स करने के बाद लोग नौकरी करने या उच्च शिक्षा के लिए मेट्रो सिटी का रुख करते हैं और तुम क्या ये खाकी चड्डी और शर्ट में घूमते हो | 

मिलन ने अपने मुख्य सलाहकार चाचा जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि मिलन तुम अपने मातापिता के एकमात्र पुत्र हो, उस नाते तुम्हें ऐसा कार्य करना चाहिए कि मातापिता से दूरी न रहें | तुम एमबीए करके कहीं बड़े शहर या विदेश चले गए, शादी की, अलग परिवार बनाया, तो क्या मातापिता के साथ न्याय होगा ? क्या उन्होंने तुम्हें इसीलिए पैदा किया है कि तुम बुढापे में उन्हें अकेला छोड़ जाओ ? इसलिए संघ के वरिष्ठ अधिकारियों के आत्मीय स्नेह की पूंजी के साथ तुम जिस दिशा में बढ़ रहे हो, वही उचित है | पापा को हम समझा देंगे, और पडौसियों की चिंता करने की जरूरत नहीं है |

चाचा जी ने पिताजी को स्वयं का उदाहरण देकर समझाया कि मेरे सामने उस समय उदरपोषण की समस्या थी, इसलिए आजीविका मुख्य थी और मुझे मुम्बई जाना पड़ा | आज हम लोग उस स्थिति से ऊपर आ चुके हैं और मिलन के साथ वह स्थिति नहीं है कि हम उससे कहें कि पढो और नौकरी करो | आज वह स्थिति भी नहीं है कि वह नौकरी करेगा, तभी हमारे घर का चूल्हा जलेगा | आज अगर वह सही दिशा में सोच रहा है, सही दिशा में जा रहा है, तो अच्छा होगा कि हम उसका मनोबल कमजोर न करें, उसका समर्थन करें | अंततः बात पिताजी को भी समझ में आ गई | और फिर तो संघ के प्राथमिक प्रशिक्षण वर्ग व संघ शिक्षा वर्ग करने में भी कोई व्यवधान नहीं आया | माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के छात्र नेता के रूप में भी इन्होने ख्याति प्राप्त की | मिलन के साथ के कई छात्र आज लोकसभा टीवी या विभिन्न मीडिया हाउसों में कार्यरत हैं, किन्तु इन्होने जो एक बार नौकरी न करने का तय किया, तो उस पर ही अडिग रहे |

अप्रैल 2013 में संघ के वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लेकर मिलन ने देशभक्ति और सांस्कृतिक जीवन मूल्यों पर भरोसा रखने वाले संगठन भाजपा की सदस्यता ले ली और भारतीय जनता युवा मोर्चा में सक्रिय हुए | वहां सह मीडिया प्रभारी की भूमिका में जो लोकप्रियता अर्जित की, उसके कारण आज भारतीय जनता पार्टी के भी पेनलिस्ट बनाए गए हैं | 

ख़ास बात यह है कि मिलन भार्गव की कोई राजनैतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं है | चाचा अमित जी कहते हैं कि हमारे पिताजी झांसी से स्थानांतरित होकर भोपाल आये थे | अनजान भोपाल में एक अनचीन्हा परिवार आकर बसा | मात्र पैर की चप्पल ही वाहन थी | लेकिन दिमाग में था कि एक दिन यह शहर बोले कि ये हमारे लोग हैं | आज परिवार की वह आकांक्षा मिलन पूरी कर रहे हैं | शहर के जानेमाने लोग उन्हें जानते हैं | प्रदेश के कई शहरों में उनकी टीम खडी है | परिवार को लगता है कि न केवल शहर बल्कि पूरा प्रदेश ही अपना हो गया है | प्रदेश के किसी भी शहर में जाएँ तो मिलन को जानने वाले मिल ही जाते हैं | परिवार के तौर पर देखा जाए तो यह बहुत बड़ी सफलता है | संघ और भाजपा की बात करें तो असली लोकतंत्र यहाँ है | बिना किसी पारिवारिक पृष्ठभूमि के, एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार का व्यक्ति, केवल कार्य के आधार पर प्रतिष्ठा और लोकमान्यता यहाँ प्राप्त करता है |

मिलन भार्गव पुरानी पीढी के नेताओं में अटल जी से बहुत प्रभावित थे | उनकी बीमारी के दौरान केवल उनसे मिलने के लिए दिल्ली भी गए थे | आज राष्ट्रीय फलक पर मोदी जी तो उनके अत्यंत प्रिय नेता हैं ही, प्रादेशिक स्तर पर वे नरेंद्र सिंह तोमर जी के प्रशंसक है | उनका संतुलित संवाद, केवल जहाँ जरूरी हो वहां बोलना, नरेंद्र सिंह जी का यह स्वभाव उन्हें प्रभावित करता है |

मिलन जी का लक्ष्य है बिना किसी महत्वाकांक्षा के संगठन जो जिम्मेदारी दे उसे पूरी निष्ठा से निभाना और जो भी कोई जरूरत मंद मदद के लिए आये, उसकी यथासंभव सहायता करना | फिर वह मदद चाहे चिकित्सकीय हो, चाहे प्रशासकीय |

श्री अमित भार्गव के साथ क्रांतिदूत सम्पादक दिवाकर शर्मा के साक्षात्कार पर आधारित आलेख

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