हुकुमदेव नारायण यादव - उत्कृष्ट सांसद पुरष्कार समारोह में दिया गया दिल को छूने वाला अद्भुत भाषण !



कांग्रेस शासनकाल में सरकार द्वारा दिए जाने वाले पुरष्कारों पर महज तथाकथित सभ्रांत वर्ग का ही कब्जा हुआ करता था | किन्तु भाजपा शासन आने के बाद स्थिति में कुछ बदलाव आया | जब बिहार के सांसद हुकुमदेव नारायण को उत्कृष्ट सांसद सम्मान दिया गया, तो संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित भव्य समारोह में रुंधे कंठ से उन्होंने अपनी भावनाओं को कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया – 

महामहिम राष्ट्रपति जी, आदरणीय उपराष्ट्रपति जी, गाँव-गरीब-किसान-मजदूर के ह्रदय सम्राट भारत के प्रधान मंत्री जी, लोकसभा की माननीया अध्यक्ष जी, और इस सभागार में उपस्थित सभी सम्मानित सांसद, भूतपूर्व सांसद और आमंत्रित सभी को मैं सादर नमस्कार करता हूँ | 

मुझे यह उत्कृष्ट कैसे समझा गया, न मेरा बाप उत्कृष्ट, न मेरी मां उत्कृष्ट, न मेरे खानदान में कोई उत्कृष्ट, न मुझ पर किसी का अनुग्रह, न किसी की अनुकम्पा, न किसी का मेरे पीछे नाम, फिर भी मुझे उत्कृष्ट चुना गया, मैं चुनने वाले को ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ | 

आपने गाँव के कीचड़ में से हीरे को कैसे पहचान लिया ? अब तक तो कितने पाँव लगे, कितनी ठोकर लगीं, कितने अपमान सहे | मैं मेरी पत्नी भी राजनीति में सक्रिय है, तो कभी कभी हम लोग भी शंकर पार्वती जी की तरह संवाद करते रहते हैं | वह मुझसे कहा करती थी, क्या आपको कभी उत्कृष्ट सांसद का पुरष्कार मिलेगा ? कोशिश करिए | 

तो मैं कहता था – मैं कोशिश क्या करूंगा ? कभी कुलदेवी काली माई सोचेगी तो कर देगी | 

लेकिन जब सिलीगुड़ी के एक मजदूर, मुसलमान भाई को पद्मभूषण का सम्मान मिला, तो उस दिन मेरे मन में यह भाव जगा कि अब उत्कृष्ट सांसद का पुरष्कार मैं अवश्य ले लूँगा | यह अंतर्मन से बोध हुआ | मैंने सोचा कि जब यहाँ दिल्ली से बैठे बैठे, प्रधान मंत्री जी और पद्म पुरष्कार देने वाले लोगों की द्रष्टि वहां सिलीगुड़ी के एक चाय बागान में काम करने वाले एक गरीब मुसलमान को देखकर चुन सकती है, तो मैं तो उनके पास हमेशा रहता हूँ, मुझको कैसे नहीं देखेंगे ? 

मैं साहब धन्य हूँ, भाग्यशाली हूँ कि आखिर देख लिया गया | और आज मेरे गाँव के लोग, टीवी पर देख रहे होंगे उनकी छाती कितनी फूलती होगी ? आपने मुझे सम्मानित नहीं किया है, हिन्दुस्तान के करोड़ों निर्धन, निर्बल, पिछड़े दलित, उपेक्षित, उपहासित, पीड़ित, प्रताड़ित, वो गरीबनी मां, जो कीचड़ में चलती थी, कभी जीवन में सनलाईट और लाईफबॉय साबुन नहीं देखा, ऎसी मां की गोद से निकले हुए एक किसान के पुत्र को आपने उत्कृष्ट सांसद बनाया है | 

जिस दिन नरेंद्र मोदी प्रधान मंत्री बने थे, उस दिन मुझे प्रेरणा मिली थी, कि जब एक साधारण गरीब मां से जन्मा हुआ, फुटपाथ पर सोने वाला, चाय बेचने वाला भारत का प्रधान मंत्री बना है, तो ये उत्कृष्ट सांसद का पुरष्कार क्या उससे बड़ा है ? मुझे क्यों नहीं मिल सकता है ? 

ये राजनाथ जी बैठे है, एक बार हम दोनों गाडी में जा रहे थे, कि तभी दुर्घटना हुई, गाडी में आग लग गई | हो सकता था मर ही जाते, पर भगवान को बचाना था | अगर गाडी में जलकर मर गए होते तो आज उत्कृष्ट सांसद पुरष्कार कैसे मिलता ? 

डॉ. लोहिया ने मुझे कहा था कि हुकुमचंद तुम अटूट निष्ठा के साथ मेरी बात को मानकर आगे बढ़ते जाओ, एक न एक दिन ऐसा आएगा, जब हिन्दुस्तान में गरीब मां की कोख से जन्मा हुआ, अति पिछड़ा बेटा भारत का प्रधान मंत्री बन सकता है | मुझे यहाँ तक लाने में बहुतों का योगदान है | आपको अचम्भा होगा कि मैं तो 1950 का संघ का स्वयंसेवक हूँ | विडम्बना देखिये कि इधर तो शाखा जाता था और उधर कोलेज में युवजन सभा का काम करते हुए डॉ. लोहिया का झंडा लेकर चलता था | ना तो समाजवादी पूछते थे कि संघ के स्वयंसेवक हो तो कैसे यहाँ आते हो, न शाखा पर कोई पूछता था कि समाजवादी पार्टी में जाते हो तो यहाँ क्यूं आते हो | दोनों में कोई नहीं पूछते थे | आजादी के साथ में काम किया | 

मं धन्यवाद दूंगा डॉ. लोहिया, चौधरी चरणसिंह का, वे और बासी भात खाने वाले, नाई का बेटे बिहार के कर्पूरी ठाकुर मेरे नेता थे | इन तीनों के साथ साथ पंडित दीनदयाल जी उपाध्याय के जीवन का भी मुझ पर बड़ा असर पड़ा | गरीबी में रहते हुए उन्होंने देश को जो प्रकाश दिया था, उसका मुझ पर असर है | लोगों को यह आश्चर्य लगता है कि मैं आल इन वन कैसे बन गया | स्वयंसेवक भी बन गया, समाजवादी भी बन गया, लोहियावादी भी बन गया, चरण सिंह के साथ भी, कर्पूरी ठाकुर के साथ भी, और दीनदयाल जी का भी गीत गाता हूँ | तो भाई हिन्दुस्तानी हूँ मैं | इस देश में सर्वधर्म समभाव है | सर्व समाज समभाव है | दीनदयाल जी कहते थे समरस समाज, लोहिया कहते थे समता समाज, जिसे मैंने अपने जीवन में अंगीकार किया है | इन सबके गीत मैं गाता हूँ | आप सबका हार्दिक आभार, आपका अनुग्रह है कि आपने मुझे उत्कृष्ट सांसद बनाया | मैं बयालीस वर्ष तक संसद के गुम्बद के नीचे घूमता रहा, अब ओ शायद चुनाव भी नहीं लड़ने वाला हूँ, बयालीस वर्ष इस संसद में रहने के बाद, आपने अंतिम समय में उत्कृष्टता का पुरष्कार देकर मेरा विदाई समारोह मनाया, उसके लिए एक बार फिर आप सबका आभार |
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