भाजपा की पराजय का एक कारण करचोरी को रोकना भी !


यह तो सभी जानते हैं कि जितने भी विकास कार्य होते हैं, सड़क, पुल, पुलिया, बाँध, मेट्रो आदि सब करदाताओं द्वारा दिए गए टेक्स से ही बनते हैं, देश का रक्षा तंत्र भी उससे ही मजबूत होता है | अतः जितना ज्यादा टेक्स कलेक्शन उतना ही ज्यादा विकास, यह सीधा समीकरण है | किन्तु दुर्भाग्य से आजादी के बाद देश में टेक्स अदा न करने की प्रवृत्ति ने जड़ें जमा ली | किन्तु मोदी सरकार ने योजनाबद्ध रूप से इस प्रवृत्ति को बदलने का प्रयास किया | इस द्रष्टि से इस बार के वित्त मंत्रालय के आंकड़े ध्यान दिए जाने योग्य हैं – 

2014 के पूर्व डायरेक्ट टेक्स देने वालों की कुल संख्या थी – 3.79 करोड़ | अगर यह माना जाए कि परिवार में केवल एक व्यक्ति ही कमाता है, शेष व्यक्तियों की कोई आय नहीं होती, तो भी सवा सौ करोड़ की आबादी वाले भारत में कमाने वालों की कुल संख्या हुई लगभग पच्चीस करोड़ | इन पच्चीस करोड़ में से महज 3.79 करोड़ ही टेक्स के दायरे में थे | किन्तु नोट बंदी के बाद जब लोगों को बिस्तरों में और बाथरूम में छुपाकर रखा हुआ धन विवश होकर बाहर निकालना पड़ा, उनकी आय का खुलासा हुआ, तो मार्च 2018 तक यह संख्या बढ़कर हो गई – 6.84 करोड़ | अब ये जो 3.05 करोड़ लोग अब तक कोई टेक्स दे ही नहीं रहे थे, किन्तु अब उन्हें टेक्स देना पड रहा है, क्या ये खुश होंगे ? 

इनके अतिरिक्त अब बात करते हैं इनडायरेक्ट टेक्स की | जीएसटी के पहले यह टेक्स कस्टम ड्यूटी और सेल्सटेक्स के रूप में लिया जाता था, जो व्यापारी अदा करते थे | इन व्यापारियों की संख्या महज पेंसठ से सत्तर लाख के बीच हुआ करती थी, किन्तु जीएसटी के बाद बढ़कर हो गई – एक करोड़ दस लाख | अर्थात लगभग चालीस पैंतालीस लाख की वृद्धि | 

नोटबंदी के बाद तीन लाख फर्जी कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द हुआ, बैंक खाते जब्त हुए, जिनका मुख्य धंधा हवाला ही था | ख़ास बात यह कि इनमें से ज्यादातर कम्पनियां अपनी संपत्तियों को माँगने भी नहीं आईं | स्वाभाविक ही अगर आते तो सरकार उनसे पूछती कि भाई आप पर ये पैसा कहाँ से आया और आप करते क्या थे | यह राशि कोई छोटी मोटी नहीं थी, सेंतीस हजार करोड़ रुपये सीधे सीधे सरकार को मिल गए | 

बेशक भारत सरकार को पहली बार दस लाख करोड़ रूपये की भारी भरकम राशि टेक्स के रूप में प्राप्त हुई और अब भविष्य में सरकार किसी की भी रहे, टेक्स तो बढ़कर ही मिलता रहेगा, इसमें कमी नहीं होने वाली, किन्तु अब तक कोई टेक्स न देने की आदत बना चुके जिन लगभग चार करोड़ लोगों को पहली बार यह टेक्स देने को विवश होना पड़ा, क्या वे खुश होंगे ? उनके परिजन खुश होंगे ? 

विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 31.8 प्रतिशत वोट हासिल किये थे | इनमें उपरोक्त चार करोड़ लोगों में से भी कम से कम दो करोड़ लोगों ने तो वोट दिए ही होंगे, क्योंकि भाजपा का कोर वोटर व्यापारी वर्ग को ही माना जाता है | 

देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किये गए मोदी सरकार के कार्यों को निश्चय ही भविष्य में इतिहास के प्रष्टों पर स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा | किन्तु फिलहाल तो लगता है कि टेक्स के झमेले में फंसे लोग देश हित की जगह स्व-हित को ही महत्व दे रहे हैं | तीन राज्यों के चुनाव परिणाम की यह भी प्रतिध्वनि है | 

मजे की बात यह कि विपक्षी पार्टियां जीएसटी को गब्बर सिंह टेक्स बताकर आरोप लगा रही हैं कि आपसे बसूला गया पैसा नीरव मोदी और विजय माल्या जैसे भगोड़ों को दिया गया | कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता कि इन लोगों को कांग्रेस शासनकाल में लोन दिया गया था और मोदी सरकार ने तो इन पर शिकंजा कसा, जिसके कारण वे दुम दबाकर भागने को मजबूर हुए और उनकी भी प्रत्यर्पण की कार्यवाही जारी है | देर सबेर वे सिकंजे में होंगे | विपक्ष यह भी नहीं बताता कि क्या वे सत्ता में आने के बाद जीएसटी को हटा देंगे ? 

खैर आशा की जानी चाहिए कि 2019 का चुनाव आते आते आमजन में देशभक्ति का भाव जागृत होगा और मोदी सरकार के कदमों से हुए लाभ को समझकर ही जनता अपना निर्णय देगी | टेक्स चोरी की तुलना में टेक्स देकर राष्ट्र निर्माण में योगदान देना, अधिक श्रेयस्कर है, यह करदाता भी जल्द ही समझ जायेंगे और उनके गाढे खून पसीने की कमाई से भरे देश के खजाने की चाबी वे किसी घोषित चोर को तो कतई नहीं देंगे |

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