भारतीय शौर्य की अनुपम गाथा - पुर्तगालियों को रोंदकर आजाद किया गोवा !


कहने को तो भारत 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया था परन्तु इसके बाद भी भारत के कई राज्यों को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं हुई थी और इन राज्यों को भारत का अंग बनाने के लिए कई प्रयास करने पड़े | ऐसा ही एक राज्य है गोवा, जो आज ही के दिन पुर्तगालियों से वर्ष 1961 के दिन 22 भारतीय रणबांकुरों की शहादत के बाद भारत का अंग बन पाया था | आइये जानते है गोवा पर पुर्तगाली आक्रमण से लेकर गोवा की आजादी तक की कहानी |

गोवा का इतिहास

महाभारत में गोवा का उल्लेख गोपराष्ट्र यानि गाय चरानेवालों के देश के रूप में मिलता है। दक्षिण कोंकण क्षेत्र का उल्लेख गोवाराष्ट्र के रूप में पाया जाता है। संस्कृत के कुछ अन्य पुराने स्त्रोतों में गोवा को गोपकपुरी और गोपकपट्टन कहा गया है जिनका उल्लेख अन्य ग्रंथों के अलावा हरिवंशम और स्कंद पुराण में मिलता है। गोवा को बाद में कहीं कहीं गोअंचल भी कहा गया है। अन्य नामों में गोवे, गोवापुरी, गोपकापाटन औरगोमंत प्रमुख हैं। टोलेमी ने गोवा का उल्लेख वर्ष 200 के आस-पास गोउबा के रूप में किया है। अरब के मध्युगीन यात्रियों ने इस क्षेत्र को चंद्रपुर और चंदौर के नाम से इंगित किया है जो मुख्य रूप से एक तटीय शहर था। जिस स्थान का नाम पुर्तगाल के यात्रियों ने गोवा रखा वह आज का छोटा सा समुद्र तटीय शहर गोअ-वेल्हा है। बाद में उस पूरे क्षेत्र को गोवा कहा जाने लगा जिस पर पुर्तगालियों ने कब्जा किया।

जनश्रुति के अनुसार गोवा जिसमें कोंकण क्षेत्र भी शामिल है (और जिसका विस्तार गुजरात से केरल तक बताया जाता है) की रचना भगवान परशुराम ने की थी। कहा जाता है कि परशुराम ने एक यज्ञ के दौरान अपने बाणो की वर्षा से समुद्र को कई स्थानों पर पीछे धकेल दिया था और लोगों का कहना है कि इसी वजह से आज भी गोवा में बहुत से स्थानों का नाम वाणावली, वाणस्थली इत्यादि हैं। उत्तरी गोवा में हरमल के पास आज भूरे रंग के एक पर्वत को परशुराम के यज्ञ करने का स्थान माना जाता है।

गोवा के लंबे इतिहास की शुरुआत् तीसरी सदी इसा पूर्व से शुरु होता है जब यहाँ मौर्य वंश के शासन की स्थापना हुई थी। बाद में पहली सदी के शुरुआत में इस पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश के शासकों का अधिकार स्थापित हुआ और फिर बादामी के चालुक्य शासकों ने इस पर वर्ष 580 से 750 तक राज किया। इसके बाद के सालों में इस पर कई अलग अलग शासकों ने अधिकार किया। वर्ष 1312 में गोवा पहली बार दिल्ली सल्तनत के अधीन हुआ लेकिन उन्हें विजयनगर के शासक हरिहर प्रथम द्वार वहाँ से खदेड़ दिया गया। अगले सौ सालों तक विजयनगर के शासकों ने यहाँ शासन किया और 1469 में गुलबर्ग के बहामी सुल्तान द्वारा फिर से दिल्ली सल्तनत का हिस्सा बनाया गया। बहामी शासकों के पतन के बाद बीजापुर के आदिल शाह का यहाँ कब्जा हुआ जिसने गोअ-वेल्हा को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।

1510 में, पुर्तगालियों ने एक स्थानीय सहयोगी, तिमैया की मदद से सत्तारूढ़ बीजापुर सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को पराजित किया। उन्होंने वेल्हा गोवा में एक स्थायी राज्य की स्थापना की। यह गोवा में पुर्तगाली शासन का प्रारंभ था जो अगली साढ़े चार सदियों तक चला।

1843 में पुर्तगाली राजधानी को वेल्हा गोवा से पंजिम ले गए। मध्य 18 वीं शताब्दी तक, पुर्तगाली गोवा का वर्तमान राज्य सीमा के अधिकांश भाग तक विस्तार किया गया था।

पर 19 दिसंबर 1961 को, भारतीय सेना ने गोवा, दमन, दीव के भारतीय संघ में विलय के लिए ऑपरेशन विजय के साथ सैन्य संचालन किया और इसके परिणामस्वरूप गोवा, दमन और दीवभारत का एक केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना। 30 मई 1987 में केंद्र शासित प्रदेश को विभाजित किया गया था, और गोवा भारत का पच्चीसवां राज्य बनाया गया। जबकि दमन और दीव केंद्र शासित प्रदेश ही रहे।

ऐसे मिली गोवा को आजादी

भारत ने 1947 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त की, भारत ने अनुरोध किया कि भारतीय उपमहाद्वीप में पुर्तगाली प्रदेशों को भारत को सौंप दिया जाए।किंतु पुर्तगाल ने अपने भारतीय परिक्षेत्रों की संप्रभुता पर बातचीत करना अस्वीकार कर दिया। ऐसे में 18 दिसंबर 1961 को ऑपरेशन विजय की कार्रवाई शुरू हुई। भारतीय सैनिकों ने गोवा में प्रवेश किया और युद्ध शुरू हुआ। बताया जाता है कि 36 घंटे से भी ज्यादा समय तक चले इस युद्ध में 19 दिसंबर को भारत ने गोवा को आजाद करा लिया। वो दिन कोई भूल नहीं सकता. किस तरह भारतीय सेना ने अपनी बहादुरी दिखाई | भारतीय सेना ने गोवा बॉर्डर में जैसे ही इंट्री की उसके तुरंत बाद शुरू हुई दोनों तरफ से फायरिंग और बमबारी। भारतीय सेना के सामने 6000 पुर्तगाली टिक नहीं पाए। भारतीय सेना ने जमीनी, समुद्री और हवाई हमले किये। पुर्तगाली बंकरों को तबाह कर दिया गया। भारतीय वायुसेना ने डाबोलिम हवाई पट्टी पर बमबारी की। 

पुर्तगालियों को उम्मीद नहीं थी कि शांतिप्रिय भारत उन पर हमला भी कर सकता है। लेकिन जब पुर्तगाली प्यार और समझाने से नहीं माने तो भारत को उग्र रूप धारण करना पड़ा। भारत की बमबारी के बीच दो पुर्तगाली विमान भागने में कामयाब रहे। लेकिन सिर्फ दो विमान में सभी पुर्तगाली का आना नामुमकिन था। परिणाम पुर्तगालियों को भारतीय सेना का सामना करना पड़ा। अपनी हार देखते हुए पुर्तगाली सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया। 36 घंटे की बमबारी को पुर्तगाली सह नहीं पाए और उनके गर्वनर जनरल वसालो इ सिल्वा ने भारतीय सेना प्रमुख पीएन थापर के सामने सरेंडर कर दिया।

इस तरह से 19 दिसंबर को भारतीय सेना का ऑपरेशन विजय सफल हुआ और गोवा का भारत में विलय हो गया।

उसी दिन गोवा दमन और दीव के साथ केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया। लेकिन 30 मई 1987 को गोवा को दमन और दीव से अलग कर दिया गया और पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया। पुर्तगाल में आज भी एक कहावत है कि जिसने गोवा देख लिया उसे लिस्बन (पुर्तगाल की वर्तमान राजधानी) देखने की जरूरत नहीं है। ऑपरेशन विजय में 30 पुर्तगाली मारे गए थे, जबकि 22 भारतीय जवान बलिदान हुए थे। इस ऑपरेशन में 57 पुर्तगाली सैनिक जख्मी हुए थे, जबकि जख्मी भारतीय सैनिकों की संख्या 54 थी। इस पूरे ऑपरेशन के दौरान भारत ने 4668 पुर्तगालियों को बंदी बनाया था।

बताया जाता है कि गोवा की आजादी के लिए लिए 1950 के आसपास प्रदर्शन जोर पकड़ा। 1954 में भारत समर्थक गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों ने दादर और नागर हवेली को मुक्त करा लिया। यहां से आंदोलन और तेज हुआ। 1955 में करीब 3000 से अधिक सत्याग्रहियों ने गोवा की आजादी के लिए आंदोलन शुरू कर दिया। इसके बाद पुर्तगाली सेना ने आंदोलन को कुचलने के लिए हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। इस हिंसा में बड़े पैमाने पर लोग मारे गए। लेकिन अब चिंगारी आग का रूप ले चुकी थी। तनाव बढ़ा और भारत ने पुर्तगाल से सभी राजनयिक संबंध खत्म कर लिए। साथ ही भारत ने अंतररराष्ट्रीय मंच पर भी इस मामले को उठाया। हालांकि भारत की इस कोशिश का कोई फायदा नहीं हुआ और बाद में भारत को सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी।

1967 में गोवा के आजाद होने के बाद भी उसे राज्य का दर्जा नहीं दिया गया | गोवा को राज्य का दर्जा 30 मई 1987 को प्राप्त हुआ | इस तरह से आजादी के करीब 14 साल बाद आजाद होकर भारत में शामिल हुआ गोवा भारत का एक नया राज्य बना। वहीं गोवा के साथ आजाद हुए दमन और दीव केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बने हुए हैं।

गोवा करीब करीब 500 साल तक पुर्तगाली शासन के आधीन रहा, इस कारण यहाँ यूरोपीय संस्कृति का प्रभाव बहुत महसूस होता है। गोवा की लगभग 60% जनसंख्या हिंदू और लगभग 28% जनसंख्या ईसाई है। गोवा की एक खास बात यह है कि, यहाँ के ईसाई समाज में भी हिंदुओं जैसी जाति व्यवस्था पाई जाती है। गोवा के दक्षिण भाग में ईसाई समाज का ज्यादा प्रभाव है लेकिन वहाँ के वास्तुशास्त्र में हिंदू प्रभाव दिखाई देता है। सबसे प्राचीन मन्दिर गोवा में दिखाई देते है। उत्तर गोवा में ईसाइ कम संख्या में हैं इसलिए वहाँ पुर्तगाली वास्तुकला के नमूने ज्यादा दिखाई देते है। संस्कृति की दृष्टि से गोवा की संस्कृति काफी प्राचीन है। 1000 साल पहले कहा जाता है कि गोवा "कोंकण काशी" के नाम से जाना जाता था। हालाँकि पुर्तगाली लोगों ने यहाँ के संस्कृति का नामोनिशान मिटाने के लिए बहुत प्रयास किए लेकिन यहाँ की मूल संस्कृति इतनी मजबूत थी की धर्मांतरण के बाद भी वो मिट नहीं पाई।

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