आज मुझे हनुमान जी से सम्बंधित दो पंक्तियाँ हठात याद आ रही है ! पहली तो है, जिसमें बजरंग बली स्वयं के विषय में विभीषण को जानकारी दे रहे हैं...
यह त्रेता युग के प्रसंग हैं, जब व्यक्ति जन्म से नहीं, कर्म से महान होता था ! यह वह दौर था जब जघन्य पातक करने वाला पापी भी सोच बदलते ही, महापुरुष बन जाया करता था ! याद कीजिए कि विश्वामित्र जी ने क्रोधावेश में महर्षि वशिष्ठ के पुत्रों का वध कर दिया, उनके आवास को तहस नहस कर दिया, किन्तु उनके ह्रदय में ज्ञानदीप जलते ही, आत्मवोध होते ही, महर्षि वशिष्ठ ने उन्हें गले लगाकर ब्रह्मर्षि कहकर सम्मानित किया ! वे पलक झपकते क्षत्रिय से ब्राह्मण के रूप में समाज मान्य हो गए !
मध्यप्रदेश समाचार
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