कांग्रेस किसी निरक्षर को आबकारी मंत्री बनाए, कोई हर्ज नहीं, किन्तु अपने ही 31 नेताओं की हत्या के षडयंत्र में संदिग्ध को बनाये तो ?



आज की चर्चित शख्सियत हैं श्री कवासी लखमा | श्री लखमा छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद से ही लगातार कांग्रेस टिकिट पर जनजाति के लिए आरक्षित विधानसभा सीट कोंटा से बड़े अंतर से जीतते आ रहे हैं | हालही में उन्हें छत्तीसगढ़ सरकार में मंत्री पद से नवाजा गया है | आजकल उनकी चर्चा इसी बात को लेकर है | वे चुनाव भले ही जीतते आ रहे हों, किन्तु पूर्णतः निरक्षर हैं | यहाँ तक कि वे मंत्रीपद की शपथ भी नहीं पढ़ सके, तो राज्यपाल श्रीमती आनंदी बेन पटेल ने पूरी शपथ स्वयं बोलकर, उनसे दोहरवाई | इसके बाद भी वे कई शब्दों का उच्चारण नहीं कर पाए | मजे की बात यह है कि उन्हें आबकारी जैसा प्रमुख मंत्रालय दिया गया है | 

खैर हमें इससे कोई लेना देना नहीं है, यह कांग्रेस का विशुद्ध आतंरिक मामला है | किन्तु हर देशभक्त भारतीय नागरिक का कर्तव्य है कि कोई संदिग्ध व्यक्ति सत्ता के सिंहासन तक न पहुँच पाए, इस पर नजर रखे | विकी पीडिया पर जो कुछ जानकारी श्री कवासी लखमा के विषय में अंकित है, वह अत्यंत चोंकाने वाली और गंभीर है | मैं उसे यहाँ ज्यूं का त्यूं लिख रहा हूँ – 

Kawasi Lakhma is MLA from Chhattisgarh, India and was one of the survivors of 2013 Naxal attack in Darbha valley. His name was widely discussed as his own party men expressed doubt about his integrity and questioned his role in the naxal attack. When other Congress leaders were shot dead in the attack, Kawasi Lakhma was spared and this has raised doubts. 

(कवासी लखमा भारतीय राज्य छत्तीसगढ़ के विधायक हैं और 2013 में हुए दरभा घाटी नक्सली हमले में जीवित बचे लोगों में से एक हैं । उस समय उनके नाम की व्यापक रूप से चर्चा हुई थी और उनकी अपनी पार्टी के लोगों ने उन पर संदेह जताते हुए, नक्सली हमले में उनकी भूमिका पर सवाल उठाये थे । सवाल उठा था कि जब हमले में अन्य कांग्रेस नेताओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई, तो कवासी लखमा को क्यूं बख्श दिया गया ।) 

स्मरणीय है कि दरभा घाटी नक्सली हमले में कांग्रेस नेता महेंद्र कर्मा, श्री विद्याचरण शुक्ल, उदय मुदलियार, सहित 31 लोग मारे गए थे | जिस कार में लखमा बैठे थे, उसमें कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष श्री नंदकुमार पटेल व उनके बेटे भी थे | किन्तु नक्सलियों ने कार के ड्राईवर को भगा दिया और दोनों पिता पुत्रों की ह्त्या कर दी | उस समय समाचार पत्रों ने छापा कि कवासी लखमा को नक्सलियों ने ही मोटर साईकिल उपलब्ध कराई और छोड़ दिया | 

अपने पर लग रहे आरोपों को लेकर लखमा का तर्क था कि चूंकि वे उस क्षेत्र में विकास कार्य कराते हैं, इसलिए नक्सली उनसे प्रभावित थे | भारतीय जनता पार्टी ने उनके नारको टेस्ट की भी मांग की थी, ताकि सचाई का पता चल सके | कांग्रेस में भी कई लोगों का मानना था कि कवासी लखमा पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कट्टर समर्थक हैं, और जोगी ने ही एकमुश्त अपने सभी विरोधियों को निबटा दिया है | किन्तु इसे रमनसिंह सरकार की असफलता ही कहा जा सकता है कि वे अपने शासन काल में सचाई सामने नहीं ला पाए, लखमा का नारको टेस्ट नहीं करा सके | 

और अब तो श्री कवासी लखमा छत्तीसगढ़ के आबकारी मंत्री ही बन चुके हैं | नाकारा राजनेता पराजित हुए, अच्छा हुआ, किन्तु अपराधी राजनेता सत्ता की कुर्सी पर पहुंचे, क्या यह उचित हुआ ? अगर कवासी निर्दोष हैं तो उन्हें स्वयं होकर नारको टेस्ट के लिए स्वयं को प्रस्तुत करना चाहिए, अन्यथा संदेह की उंगली तो उठती ही रहेगी और उठनी भी चाहिए | बैसे केन्द्रीय जांच एजेंसियों की जांच अभी बंद नहीं हुई है | 

आपकी क्या राय है ? क्या संदेह की उंगली नहीं उठना चाहिए ? और कांग्रेस को क्या कहें जो अपने ही वरिष्ठ नेताओं की हत्या के षडयंत्र में संदिग्ध एक व्यक्ति को सिर माथे पर बैठा रही है |

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