कमलनाथ की अग्नि परीक्षा – अनुभव हीन मंत्री, आतुर कांग्रेस कार्यकर्ता ! - रामभुवन सिंह कुशवाह



मध्यप्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो चुका है । पूरा शासन,प्रशासन तंत्र अस्तव्यस्त । इधर बच्चों की परीक्षा तो उधर तबादलों का दौर । लगता है कमलनाथ कुछ जल्दी में हैं। और क्यों न हों ?, चुनाव सर पर है । चर्चा है कि दिल्ली की 'डिमांड'ज्यादा है। चुनाव की व्यवस्थाएं जो करनी हैं। पूरा देश और सरकारें गिने चुने प्रदेशों में | 

कांग्रेस कार्यकर्ताओं को भी कुर्सियों पर सेट करना है। माना कि नेता तो पहले से ही मालामाल थे पर सामान्य कार्यकर्ताओं की भी तो चिंता करनी है। 15 साल से बेचारे इन्हीं दिनों के इंतजार में थे।उनकी चिंता कमलनाथ नहीं करेंगे तो कौन करेगा ? 

पता नहीं मुख्यमंत्री को यह किसने सलाह दी या फिर उनका सहृदय स्वभाव था, सभी मंत्रियों को कैबिनेट स्तर का मंत्री बना दिया।अब सभी केबिनेट मंत्री कौन किससे कम ,अधिकांश को सत्ता का अनुभव नहीं, बड़े अधिकारियों के सर पर तबादले की तलवार, वे नई पदस्थापना का इंतजार करने लगे इसी बीच निवर्तमान मंत्रियों का निजी स्टाफ नए बॉसों की तलाश में जुट गया।वे अनुभवी थे,भाजपा के मंत्रियों को चलाते थे इन 'अनुभवहीन' मंत्रियों को वश में करना उनके लिए कौन बड़ी बात थी ? तरह तरह की सलाह मिलनी शुरू हुईं परिणामस्वरूप मंत्रियों को मिली अयाचित सलाहें और उसके अनुरूप आदेश-निर्देश सत्ता के गलिआरों में चटकारों के साथ सुनाई दे रहे हैं। 

बेचारे मुख्यमंत्री को एक समस्या हो तो उससे निपटें | मंत्रिमंडल का विस्तार करना है । लेकिन वहां एक अनार तो सौ बीमार! अपने असंतुष्टों को सम्हालें या सपा,बसपा और निर्दलीयों को संतुष्ट करें ? केबिनेट मंत्री से कम कोई बनने को तैयार नहीं। भला इस अवसर का कौन लाभ नहीं उठाना चाहेगा ? कोई भी निगम -मंडल में क्यों जाना चाहेगा ? 

ऐसी हालत में छुटभैया नेताओं की महत्वाकांक्षा उफान मार रही है। कई स्थानीय नेता सीधे या वरिष्ठ नेताओं के माध्यम से मुख्यमंत्री के पास पहुंचना चाहते हैं | बड़े नेता टालने को कह देते हैं कि पहले अपने लिए कुर्सी तलाश लो, नियुक्तियां हो जाएंगी। परिणाम स्वरूप मध्यम श्रेणी के छुटभैया नेता निगमों, मंडलों और प्रधिकारणो की खाली पड़ीं कुर्सियों की ओर दौड़ पड़े हैं। इन निगमों और संस्थानों के अधिकारी - कर्मचारी परेशान हैं। कोई भी नेता आकर धौंस जमाता है कि उसकी नियुक्ति यहां होनेवालीं है। वह कार्यपद्धति और वित्तीय स्थिति से परिचित होना चाहता है। अधिकारी मना भी नहीं कर पाते। 

भोपाल के एक अर्ध- शासकीय संस्थान में एक पूर्व निगमाध्यक्ष तीन चार बार चक्कर लगा चुके हैं। कामकाज सीखना चाहते हैं, वित्तीय स्थिति से परिचित होना चाहते थे, इसी बीच उस पर आंख गढ़ाए दूसरे नेता को पता चला तो उसने भी वहां की गतिविधियों में रुचि लेने शुरू किया। अधिकारियों ने मजा लिया और एक दूसरे को लड़ा दिया। पता चला है कि मुख्यमंत्री जी ने दोनों को आश्वासन दे रखा था। एक पक्ष चुनाव लड़कर हार चुका था, तो उसने दूसरे के 'सेबोटेज' की शिकायत कर दी। 

यह एक संस्थान का मामला नहीं है, ऐसी अनेक कहानियां सत्ता के गलियारों में चल पड़ीं हैं। बीच का सुविधाजनक मार्ग ढूंढा जा रहा है। हो सकता है कि कोई सरल मार्ग निकल भी आये। सचमुच कमलनाथ की अग्नि परीक्षा जारी है – पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर सामान्य कार्यकर्ता तक सबको साधना । 

भोपाल के महाविद्यालयों में अनेक आईएएस अधिकारियों की पत्नियां, प्रभावशाली लोगों के परिवार जन जमें थे | उच्च शिक्षामंत्री जीतू पटवारी ने आव न देखा ताव, एक झटके में उनकी प्रतिनियुक्तियाँ रद्द कर दीं। कभी राहुल गांधी उनकी मोटर सायकल पर घूमें थे,कमलनाथ की भी हिम्मत नहीं कि रोक सकें। उन्हें क्या मालूम कि असल सरकार तो आईएएस लॉबी ही होती है | लेकिन उनका ठहरा क्रांतिकारी मिजाज, आखिर राहुल गांधी से निकटता जो ठहरी ! 

इसी तरह अनेक साहित्यक,सांस्कृतिक संस्थाओं में प्रतिनियुक्तियाँ समाप्त कर दी गईं ।अशासकीय लोग थे वे तो अपने घर चले गए पर शासकीय कर्मचारी अधिकारी क्या करें ? वे तो भाजपा या संघ के नहीं थे,अपनी गुणवत्ता से आए थे ।उन पर पक्षधरिता के आरोप मढ़े जा रहे हैं। कहाँ जाएं ? समझ में ही नहीं आता।
इस तरह की अनेक समस्याएं ,चर्चाएं हर दिन सुनने को मिलतीं हैं।इस बीच दो नियुक्तियां पत्रकारों और रसूखदारों को राहत का काम करेंगी।मुख्यमंत्री ने अपना ओएसडी उपाध्यक्ष श्री भूपेंद्र गुप्ता 'आगम', को बनाया है और मुख्यमंत्री के 'सदा,सहयोगी' श्री राजेन्द्र मिगलानी औपचारिक रूप से सलाहकार नियुक्त हो गए हैं ।
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