आखिर कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य जैसे जेएनयू के भारत विरोधियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू होने में तीन साल क्यूं लगे ?
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अप्रैल 2016 में हुए एक विरोध प्रदर्शन में भाग लेते कन्हैया कुमार, उमर खालिद, शेहला राशिद और अन्य छात्र |
यह आमतौर पर आलोचना का विषय है कि बहुचर्चित जेएनयू प्रकरण में आखिर देशद्रोही नारे लगाने वालों पर पुख्ता कानूनी कार्यवाही केवल शुरू होने भर में तीन साल का लम्बा समय क्यूं लगा ? जब चार्जशीट दाखिल होने में तीन साल लगे हैं, तो इन लोगों को इनके किये की सजा तो निश्चित ही तीस चालीस साल में मिल पाएगी ? तब तक तो ये लोग वृद्धावस्था की दहलीज पर पहुँच चुके होंगे |
जो भी हो दिल्ली पुलिस का कहना है कि राजद्रोह के मुख्य तीन आरोपी कन्हैया कुमार, उमर खालिद और अनिर्बान भट्टाचार्य के अलावा अन्य वांछित लोगों की जानकारी लेने के लिए कई बार जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश जाना पड़ा । गोपनीय ढंग से इन लोगों के सम्बन्ध में पुख्ता जानकारियाँ जुटाई गईं, कई लोगों से पूछताछ की गई – इसी करण देशद्रोह मामले में आरोप पत्र प्रस्तुत करने में लगभग तीन साल लग गए।
दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि –
हमने 9 फरवरी, 2016 की घटना के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए युवा पुलिस अधिकारियों की एक टीम बनाई, जिन्होंने छात्रों के रूप में जेएनयू में दाखिला लिया । वे परिसर में होने वाले कार्यक्रमों में भी शामिल होते थे और विरोध प्रदर्शनों से संबंधित वार्तालापों पर नजर रखते थे। इससे सात संदिग्धों से जुड़े लिंक को ट्रेस करने में मदद मिली । हमने उनके कॉल डिटेल्स को ट्रेस किया और संदिग्धों के साथ उनके लिंक की पुष्टि होने के बाद, उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया गया। इस तरह हमने उनकी पहचान की और उन्हें ट्रैक किया।
हमारे इन अधिकारियों ने सात संदिग्धों के बारे में जानने वाले छात्रों की गुप्त रूप से तस्वीरें खींची और उन लोगों से संदिग्ध छात्रों का विवरण प्राप्त किया ।
हमारी नौ सदस्यीय टीम ने उन दो प्रतिभागियों की पहचान करने के बाद पिछले दो वर्षों में जम्मू-कश्मीर की 13 बार यात्रायें की, जिनके बारे में संदेह था कि उन्होंने अन्य नारों के साथ भारत विरोधी नारे भी लगाए ।
पुलिस ने कहा कि बुरहान वानी की हत्या के बाद हुई हिंसा के कारण, जम्मू-कश्मीर में उनकी जांच प्रभावित हुई और उसके चलते लगभग सात से आठ महीने की देरी हुई।
“हमारे जांचकर्ताओं को विरोध प्रदर्शन की एक वीडियो क्लिप मिली, जिसमें एक कश्मीरी का चेहरा पहचाना गया, क्योंकि विरोध प्रदर्शन के बाद उसने अपने चेहरे से नकाब हटा दिया था । अधिकारी ने कहा कि उसकी पहचान गाजियाबाद मेडिकल कॉलेज के छात्र अकीब हुसैन के रूप में हुई ।
पुलिस ने हुसैन से पूछताछ की | शुरुआत में तो उसने खुद को बेकसूर बताया, किन्तु जब उसे फुटेज और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य बताये गए, तो उसने इस घटना में भाग लेने की बात स्वीकार की। विडियो क्लिप में हुसैन भारत विरोधी नारे लगाता दिखाई दे रहा है । ”
हुसैन के ही समान छह अन्य कश्मीरियों की पहचान की गई । पुलिस ने यह भी कहा कि चूंकि आरोपी जमानत पर थे, इसलिए उनके लिए चार्जशीट दायर करने की कोई समय सीमा नहीं थी।
यह देश का दुर्भाग्य ही है कि भारत विरोधी तत्वों को अविलम्ब राजनैतिक संरक्षण मिल जाता है और देखते ही देखते वे टटपून्जिये से महत्वपूर्ण राजनैतिक हस्ती बन जाते हैं | और फिर स्वाभाविक ही पुलिस को फूंक फूंक कर कदम रखना पड़ता है | इस मामले में भी ऐसा ही हुआ है | राहुल गांधी जैसे नेता भी इन लोगों के समर्थन में तुरंत जंतर मंतर जा पहुंचे थे | उसके बाद पुलिस जाँच में तो देर लगना ही थी !
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