चिटफंड संग खड़ा देश का विपक्ष - प्रवीण गुगनानी

एक अंग्रेजी कहावत है – I never see what has been done; I only see what remains to done. यहां इसके अर्थ यह है कि मैं यह नहीं देख रहा कि मोदी हटाओ अभियान में विपक्ष क्या कुछ कर-गुजर चुका है, देखना यह है कि “मोदी हटाओ” अभियान में विपक्ष क्या कुछ कर गुजरने वाला है!! 

एक बेहद सनसनीखेज और हाई वोल्टेज ड्रामे के बाद उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णय दिया और कहा कि सीबीआई कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजिव कुमार के बयान तो ले किंतु बलपूर्वक कोई कार्यवाही न करे। और इसके बाद ममता बनर्जी ने कोलकाता में चल रहा अपना नाटकीय धरना समाप्त कर दिया। ममता बनर्जी अपने स्वभाव के अनुरूप यह कहते हुए धरने से उठी कि मोदी सरकार को सत्ता से बाहर करने तक उनका संघर्ष जारी रहेगा। शारदा चिट फंड मामले में प्रथम दृष्टया ही दोषी दिख रहे कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के लिए ममता इतनी चिंतित क्यों है ? यह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है क्योंकि शारदा चिट फंड और ममता की पार्टी तृण मूल के मध्य बड़े ही स्थापित, स्पष्ट और जगजाहिर सम्बन्ध रहें हैं। आश्चर्य है कि राजीव कुमार के पक्ष में भ्रष्टाचार विरोध की पुरोधाई करने वाले अरविन्द केजरीवाल भी धरने पर दिखे। परस्पर तार ऐसे जुड़े कि धरने से उठने के बाद ममता ने तुरंत ही कांग्रेस द्वारा चिटफंड कंपनी को दिए गए समर्थन के बदले हिसाब बराबर करते हुए, मनी लांड्रिंग के गंभीर आरोपों को झेल रहे प्रियंका वाड्रा के पति और गांधी परिवार के दामाद राबर्ट वाड्रा के साथ खड़ी दिखाई दी। ममता ने कहा कि वह प्रवर्तन निदेशालय द्वारा नव धनाड्य बने रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ का विरोध करती हैं। इसके बाद हुआ यह कि जो राहुल गांधी कभी बंगाल जाकर सारदा चिटफंड घोटाले को लेकर ममता को घेरते दिखते थे वे, तेजी से हजारों करोड़ की पूँजी बनाते अपने जीजा को ममता द्वारा दिए समर्थन के एवज में चिटफंड घोटाले में ममता संग खड़े दिखाई देने लगे। इसके बाद ममता ने जो कहा वह उनके अराजक व्यक्तित्व, लोकतंत्र विरोधी होने और सत्ता प्राप्ति हेतु संविधान की धज्जियां उड़ाने तक जाने की मानसिकता का परिचायक है ममता ने आर्मी और केंद्र व राज्यों के सुरक्षा बलों का आव्हान किया कि वे मोदी सरकार का विरोध करें और उनके धरने को समर्थन दें। ममता संवैधानिक संस्थानों से ऐसा आग्रह करके भारत में किस भयानक राजनैतिक परम्परा की नींव डाल रहीं हैं इसका उन्हें तनिक भी आभास नहीं हो यह उनकी व्यक्तिगत समस्या हो सकती है किंतु बाकी के विरोधी दल भी ममता बनर्जी के इस बयान का विरोध नहीं कर पाए यह आश्चर्य का विषय है। इस पूरी भयंकर कवायद में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती, राज ठाकरे, सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, महबूबा मुफ्ती, आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव,तेजस्वी यादव, एमके स्टालिन और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू आदि आदि ममता बनर्जी के साथ खड़े दिखे।

सारदा मामले में सीबीआई का रूख बड़ा ही स्पष्ट रहा था।टकराव की स्थिति बनने के बाद सीबीआई सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और मांग की कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार सारदा को घोटाले की जांच में सहयोग करने के निर्देश दिए जाएं। सुप्रीम कोर्ट में लगाई अपनी याचिका में सीबीआई ने कहा कि कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को कई बार तलब किया गया लेकिन उन्होंने सहयोग नहीं किया बल्कि वे जांच में रोड़ा अटका रहे थे। ममता की शह से राजीव कुमार एक लोकसेवक होकर एक निरंकुश शासक सा व्यवहार करते दिखे। राजीव कुमार से पूछताछ के उद्देश्य से उनके आवास पर गई सीबीआई अधिकारियों की टीम को वहां तैनात पुलिस कर्मियों ने अंदर जाने से रोक दिया। केंद्र एवं राज्य के पुलिस बलों के बीच यह टकराव की अभूतपूर्व स्थिति थी और समूचा विपक्ष इस दृश्य में मोदी विरोध में अंधा होकर इस निरंकुश हो गए पुलिस अधिकारी और उसे शह दे रही घोर अलोकतांत्रिक मुख्यमंत्री के साथ खड़ा था।ममता बनर्जी ने अराजकता फैला रहे पुलिस कमिश्नर के पक्ष में धरने पर बैठने के साथ ही इस मामले ने देश की राजनीति में एक नया काला अध्याय लिख दिया। देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब सबसे बड़ी जांच एजेंसी के पांच अधिकारियों को किसी राज्य की पुलिस ने हिरासत में ले लिया हो। वस्तुतः ममता बनर्जी ने बड़ी चतुराई से दो सरकारी विभागों की लड़ाई को पालिटिकल माइलेज पाने हेतु उपयोग किया। पूरा घटनाक्रम ऐसा रहा कि - सारदा चिट फंड घोटाले की जांच कर रही सीबीआई टीम कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर पहुंची। पुलिस कमिश्नर के घर पर तैनात पुलिस बल ने सीबीआई टीम को अंदर नहीं जाने दिया और सीबीआई टीम के ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया। दूसरी तरफ कोलकाता पुलिस ने सीबीआई के रिजनल दफ्तर को घेर लिया। उसके महज 10 मिनट बाद ही राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के बचाव के लिए स्वयं कमिश्नर निवास पहुंच गई। सवाल यह है कि इतनी प्रिय या टकराव वाली स्थिति में एक निर्वाचित मुख्यमंत्री किसी दोषी अधिकारी के विरुद्ध हो रही कार्यवाही का विरोध करने और उस अधिकारी की वकालत करने उसके निवास पर क्या सोच कर पहुँच जाती है?! ममता बनर्जी के पालिटिकल माइलेज को नापने हेतु बंगाल पुलिस ने सीबीआई के अधिकारियों के साथ हाथापाई भी की और उसी दौरान, बनी बनाई स्क्रिप्ट के अनुसार ममता बनर्जी मेट्रो चैनल के पास धरने पर बैठ गई। उसके लगभग पांच मिनट बाद सीबीआई दफ्तर के बाहर से पुलिस का पहरा हटा लिया गया और सीबीआई के गिरफ्तार अधिकारियों को छोड़ दिया गया। किंतु योजनाबद्ध तरीके से बंगाल पुलिस ने पश्चिम बंगाल राज्य में कलह का नया वातावरण उत्पन्न कर दिया और टीएमसी के कार्यकर्ता जगह जगह प्रदर्शन करने लगे और अराजकता का वातावरण निर्मित करने लगे। इस पुरे घटना क्रम में कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर को एक किले में तब्दील कर दिया गया, जहां बिना इजाजत परिंदा भी पर न मार सके। कोलकाता में सीबीआई अधिकारियों की सुरक्षा ऐसी खतरे में पड़ी की तत्काल केंद्र सरकार को सीआरपीएफ बल को तैनात पड़ा। यदि सीआरपीएफ की तैनाती नहीं होती पता नहीं सीबीआई के अधिकारियों का क्या होता?

प्रश्न यह है कि आज समूचा विपक्ष चिट फंड घोटाले की आरोपी उस सारदा चिटफंड कंपनी के साथ खड़ा है जो बंगाल के आम लोगों को ठगने के लिए बदनाम और प्रथम दृष्टया आरोपी रही है। सागौन के बॉन्ड्स में निवेश से 25 साल में रकम 34 गुना करने, वहीं आलू के कारोबार में निवेश के जरिए 15 महीने में रकम दोगुना करने का सब्जबाग दिखाने के बाद बंगाल के 20 लाख आम लोगों से 20 हजार करोड़ की ठगी करने की आरोपी कंपनी के साथ कमिश्नर राजीव कुमार स्वयं को प्राप्त कुछ लाभों के एवज में खड़े थे किंतु विपक्ष इस सारदा चिटफंड कंपनी के साथ क्यों खड़ा है यह आश्चर्य का विषय है? बंगाल में ममता बनर्जी की शरण में पल रही इस कंपनी ने गत विधानसभा चुनावों के दौरान घोषित तौर पर ममता बनर्जी की कई सारी व्यवस्थाएं संभाली थी और बड़ी राशियों के भुगतान किये थे। गरीब जनता बाद में चिट फंड घोटाले की जांच के लिए स्पेशन इन्वेस्टिगेशन टीम यानी एसआईटी का अध्यक्ष पुलिस कमिश्नर राजिव कुमार बनाया गया था। जांच के दौरान उन पर धांधली करने के आरोप लगे थे।रिपोर्ट्स के अनुसार चिट फंड घोटाले से जुड़े अहम दस्तावेज राजीव कुमार के एसआईटी प्रमुख रहने के दौरान गायब हो गए थे। इन दस्तावेजों में चिटफंड घोटाले में शामिल कुछ बड़े लोगों के नाम होने की आशंका है। 

इस समूचे प्रसंग एक ही प्रश्न उभरता है कि आज देश का लगभग समूचा विपक्ष एक चिटफंड कंपनी के साथ खड़े होने की विडंबना को देश झेलने को क्यों मजबूर है?

प्रवीण गुगनानी 


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