एक हिन्दू लड़की श्रेया गुप्ता ने एक मुस्लिम नौजवान फैजान करीम के साथ शादी कर ली | ऐसे समाचार अक्सर सामने आते रहते हैं, तो इसमें असामा...
एक हिन्दू लड़की श्रेया गुप्ता ने एक मुस्लिम नौजवान फैजान करीम के साथ शादी कर ली | ऐसे समाचार अक्सर सामने आते रहते हैं, तो इसमें असामान्य क्या है ?
यह शादी दो प्रकार से ख़ास है | एक तो यह कि वधू श्रेया गुप्ता भाजपा के संगठन महामंत्री रामलाल की भतीजी हैं और जिनसे यह विवाह संपन्न हुआ वे फैजान करीम गोरखपुर की कांग्रेस नेता डॉ. सुरहिता चटर्जी करीम के बेटे हैं |
लेकिन इस शादी में एक और ख़ास फेक्टर भी है, और वह यह कि यह शादी वैदिक रीति-रिवाज के साथ संपन्न हुई। जबकि आम तौर पर हिन्दू लड़की और मुस्लिम लडके का विवाह नहीं बल्कि इस्लामी पद्धति से निकाह होता है | निकाह के पूर्व लड़की का धर्मांतरण भी जरूरी होता है, अर्थात उसे पहले कलमा पढ़कर मुसलमान बनना होता है |
स्मरणीय है कि फैजान की मां स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुरहिता चटर्जी करीम यूपी कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता हैं। वह 2012 में कांग्रेस की टिकट पर गोरखपुर से मेयर का चुनाव लड़ चुकी हैं। गोरखपुर उपचुनाव में कांग्रेस ने उन्हें प्रत्याशी बनाया था।
जबकि फैजान के पिता डा. वजाहत करीम गोरखपुर के एक हास्पिटल के मालिक, सर्जन और फिल्म निर्माता हैं। इन्होंने ‘सोच’ नामक फिल्म बनाई थी जिसमें कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने भी काम किया था। डा. सुरहिता चटर्जी की गोरखपुर मेडिकल कालेज में डॉ. करीम से मुलाकात हुई। उसके बाद दोनों ने शादी कर ली।
लखनऊ में आयोजित विवाह कार्यक्रम में भाजपा और कांग्रेस - दोनों ही दलों के नेताओं ने नव दंपति को आशीर्वाद दिया। समारोह में पहुंचने वालों में राज्यपाल राम नाईक, केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा, मुख्तार अब्बास नकवी, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव के अलावा कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी भी शामिल थे। स्वयं रामलाल देर रात तक मेहमानों की आवभगत करते रहे।
फैजान करीम बॉलीवुड में सक्रिय हैं। श्रेया और फैजान की मुलाकात भी मुंबई में ही हुई थी।
जो भी हो भाजपा संगठन मंत्री की भतीजी की एक मुस्लिम नौजवान से हुई इस शादी को लेकर सोशल मीडिया पर आलोचना और प्रशंसा के रंग दिखाई दे रहे हैं | अब चूंकि रामलाल संघ प्रचारक भी हैं, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी फब्तियां कसी जाना स्वाभाविक है | लेकिन इन फब्तियों में भी एक स्वयंसेवक ने काल्पनिक रूप से संघ अधिकारियों की जो प्रतिक्रिया दी है, वह रोचक भी है, और यथार्थपरक भी –
संघ किसी के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप नहीं करता, न किसी को यह बताता है कि उसे क्या करना है| संघ केवल व्यक्ति को देश-धर्म के हितार्थ कार्य करने हेतु प्रस्तुत होने के लिए तैयार करता है| संघ समाज से बाहर का नहीं है बल्कि उसी का भाग है| जो समाज में परिलक्षित हो रहा है, वो किसी स्वयंसेवक के जीवन या परिवार में दृष्टिगत हो जाए तो कैसा आश्चर्य| वैसे भी संघ मुस्लिमों को बाहर का नहीं मानता| वो इसी मातृभूमि की संतान हैं, पूजा-पद्धति का अंतर केवल बाह्य अंतर है| हमें उन्हें स्वीकारना ही होगा और फिर हम उन्हें उसी तरह पचा जायेंगे जैसे शकों-हूणों को पचा गए|
इसे भले ही व्यंग के रूप में प्रस्तुत किया गया हो, किन्तु जरा विचार कीजिए कि अगर हिन्दू-मुसलमान को साथ साथ इसी देश में रहना है, तो यही आदर्श सामजिक मानसिकता हो सकती है | यह मानसिकता बनने में अभी शायद बहुत बख्त लगेगा | जहाँ तक उक्त विवाह का प्रश्न है, मुस्लिम कट्टरपंथी तो इसे संभवतः विवाह ही नहीं मानेंगे | वैदिक पद्धति से हुए एक विवाह को आखिर वे कैसे स्वीकार कर सकते हैं ? देख लीजिये विरोध के स्वर और फैजान को इस्लाम से बेदखल करने की खबर आने ही वाली है |
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