भिंड लोकसभा - पराजित विरोधियों पर मेहरवान होती रही है भाजपा !


चम्बल नदी के बीहड़ के लिए पूरे देश में अलग पहचान रखने वाला भिंड जिला अपनी कलात्मक सौंदर्य और वास्तु सौन्दर्यता के लिए बहुत प्रसिद्द है | ऐसी मान्यता है कि भिंड का नाम भिंडी ऋषि के नाम पर रखा गया है | भिंड जहाँ अपनी अपनी प्राकृतिक सौंदर्य के लिए पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र है वहीँ यह बीहड़ के डाकुओं के लिए बदनाम भी रहा है | 2011 की जनगणना के मुताबिक भिंड की जनसंख्या 2489759 है | यहां की 75.3 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्र और 24.7 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है | भिंड में 23.1 फीसदी आबादी अनुसूचित जाति की है और .85 फीसदी आबादी अनुसूचित जनजाति की है | चुनाव आयोग के आंकड़े के मुताबिक 2014 में भिंड लोकसभा सीट पर 1598169 मतदाता थे. यहां पर 890851 पुरूष और 707318 महिला मतदाता थे. 2014 के चुनाव में इस सीट पर 45.62 फीसदी वोटिंग हुई थी |

भिंड की जनता तोड़ चुकी है सिंधिया परिवार के अपराजेय होने का मिथक 

आज कहा जाता है कि मध्यप्रदेश के ग्वालियर चम्बल संभाग में सिंधिया परिवार की तूती बोलती है एवं इस परिवार का सदस्य भिंड, मुरैना, ग्वालियर, गुना, शिवपुरी में चुनाव नहीं हारता, लेकिन भिंड की जनता ने सिंधिया परिवार का यह मिथक वर्ष 1984 में चुनाव में तोड़ दिया था, जब इस सीट पर सिंधिया परिवार की वसुंधरा राजे सिंधिया चुनाव हार गयीं थी |

भिंड का लोकसभा चुनाव इतिहास

भिंड में पहला लोकसभा चुनाव साल 1962 में हुआ था. इस चुनाव में यह सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित थी. यहां पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के सूरज प्रसाद ने जीत हासिल की थी.परिसीमन के बाद 1967 में यह सीट सामान्य हो गई. जनसंघ के वाई.एस कुशवाहा ने यहां पर विजय हासिल की.

इसके आगे की दास्तान अत्यंत ही रोचक है | 1971 के चुनाव में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने कांग्रेस के नरसिंह राव दीक्षित को हराया था. 1977 के चुनाव में तो जनता दल की आंधी ही थी, तो रघुवीर सिंह मछंड आसानी से जीत गए | लेकिन 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की और कालीचरण शर्मा ने जीत हासिल की. 1984 के चुनाव में बीजेपी ने इस सीट से वसुंधरा राजे सिंधिया को उतारा, लेकिन उन्हें स्थानीय प्रत्यासी व दतिया नरेश किशन सिंह के सामने पराजित होना पड़ा | 

1989 के चुनाव में बीजेपी ने पहली बार विरोधी खेमे में सेंध लगाने का प्रयोग किया और पूर्व में राजमाता के खिलाफ चुनाव लड़ चुके नरसिंह राव दीक्षित को अपना प्रत्यासी बनाया | प्रयोग सफल रहा और नरसिंहराव विजई हुए | ये बीजेपी की यहां पर पहली जीत थी. इसके अगले चुनाव 1991 में बीजेपी ने अपना उम्मीदवार बदला और योगानंद सरस्वती को टिकट दिया. उन्होंने कांग्रेस के उदयन शर्मा को हराया. 1996 के चुनाव में बीजेपी फिर यहां से उम्मीदवार बदला और रामलखन सिंह को मैदान में उतारा. उन्होंने पार्टी के फैसले को सही साबित किया और यहां के सांसद बने. वह 1998, 1999 और 2004 के चुनाव में लगातार विजई होते रहे |

2009 में परिसीमन के बाद यह सीट एक बार फिर अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित हो गई. हालांकि इसका असर बीजेपी पर नहीं पड़ा. 1996 से जीत का जो सिलसिला बना हुआ था वह 2009 के चुनाव में भी जारी रहा. 2009 के चुनाव में भी बीजेपी के अशोक अर्गल ने जीत हासिल की. उन्होंने तब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े डॉ. भागीरथ प्रसाद को हराया था.

2014 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ चुके डॉ. भागीरथ प्रसाद को उतारा. 2009 में हारने के बाद डॉ. भागीरथ प्रसाद को यहां पर मोदी लहर में जीत मिली. उन्होंने कांग्रेस की इमरती देवी को हराया. भिंड लोकसभा सीट के अंतर्गत विधानसभा की 8 सीटें आती हैं. यहां पर अटेर, भिंड, लहार, मेहगांव, गोहद, सेवढ़ा, भाण्डेर, दतिया विधानसभा सीटें हैं.

इन 8 विधानसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस, 2 पर बीजेपी और 1 पर बसपा का कब्जा है. यहां के राजनीतिक इतिहास को देखें तो बीजेपी ने यहां पर सबसे ज्यादा जीत हासिल की है. बीजेपी को यहां पर 8 चुनावों में और कांग्रेस को सिर्फ 3 चुनावों में जीत मिली. ऐसे में यह सीट बीजेपी के दबदबे वाली सीट है.

2014 के चुनाव में बीजेपी की ओर से मैदान में उतरने वाले भागीरथ प्रसाद को इस बार जीत मिली और वे सांसद बने. डॉ. भागीरथ प्रसाद को 404474(55.48 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं इमरती देवी को 244513(33.54 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर 159961 वोटों का था. वहीं बसपा 4.64 फीसदी वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी.

इससे पहले 2009 के चुनाव में भी यहां पर बीजेपी को जीत मिली थी और अशोक अर्गल सांसद बने थे. उन्होंने तब कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े डॉ. भागीरथ प्रसाद को हराया था. अशोक अर्गल को जहां 227376(43.41 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं भागीरथ प्रसाद को 208479(39.8 फीसदी) वोट मिले थे. दोनों के बीच हार जीत का अंतर का 18897 वोटों का था. बसपा 11.61 फीसदी वोटों के साथ इस चुनाव में तीसरे स्थान पर रही थी. 

देखना दिलचस्प होगा कि 1989 से लगातार अपराजेय रही भाजपा इस बार क्या गुल खिलाती है |

विधानसभा चुनाव की स्थिति 

अटेर (भाजपा) अरविन्द भदौरिया ने कांग्रेस के हेमंत कटारे को 4978 मतों से पराजित किया
भिंड (बसपा) संजीव सिंह ने बीजेपी के राकेश चतुर्वेदी को 35896 मतों से पराजित किया
लहार (कांग्रेस) गोविन्द सिंह ने बीजेपी के रसाल सिंह को 9073 मतों से पराजित किया
मेहगांव (कांग्रेस) OPS भदौरिया ने बीजेपी के राकेश शुक्ला को 25814 मतों से पराजित किया
गोहद (कांग्रेस) रणवीर जाटव ने बीजेपी के लालसिंह आर्य को 23989 मतों से पराजित किया
सेवड़ा (कांग्रेस) घनश्याम सिंह ने बीजेपी के राधेलाल बघेल को 33268 मतों से पराजित किया
भांडेर (कांग्रेस) राकेश सिरोनिया ने बीजेपी के रजनी प्रजापति को 39896 मतों से पराजित किया
दतिया (भाजपा) नरोत्तम मिश्रा ने राजेंद्र भारती को 2656 मतों से पराजित किया

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