शिवपुरी अंचल का सबसे साहसी डाकू – अमृतलाल, जिसे उसकी अय्यासी ने मारा |



चंबल के बीहड़ों में डकैतों के किस्सों का सिलसिला बहुत लंबा है। एक से बढ़कर एक दुस्साहसी, एक से बढ़कर एक खूंखार एक से बढ़कर एक निशानेबाज। लेकिन चंबल के बीहड़ों के बीहड़ों में डाकुओं के किस्सों में एक डाकू ऐसा भी है जिसे पुलिस फाईलों में “चालाक लोमड़ी” कहा गया, आमजन में वह “दिल्ली वाला बाबू” था, तो एक आई.जी. उसे “साहूकार डाकू” का संबोधन देते थे । आजादी के पूर्व 1916 में ग्वालियर रियासत की पोहरी जागीर के एक छोटे से गाँव गणेशखेडा के एक किरार परिवार में जन्मा था यह दुस्साहसी और चंबल का सबसे शातिर डकैत “अमृतलाल”, जिसने अपने दिमाग के दम पर एक दो साल नहीं लगभग चौथाई सदी तक चंबल में आतंक मचाए रखा | 

बीहड़ों में खाकी का खौंफ हर किसी बागी या डकैत को होता है। मुठभेड़ हो तो भी डाकू पुलिस से बच निकलने की कोशिश करते है, लेकिन अमृतलाल एक ऐसा डकैत था, जिसको पुलिस का कोई खौंफ नहीं था। यहाँ तक कि उसने कई बार सीधे पुलिस थाने भी लूटे | चंबल में पकड़ यानि अपरहण को डाकुओं की कमाई का जरिया बनाने की शुरूआत भी अमृतलाल से ही मानी जाती है। 

आठवीं पास कर अमृतलाल एक स्कूल में मास्टर बना तो बूढ़े बाप भगवानलाल बहुत खुश हुए, पर यह खुशी जल्द ही काफूर हो गई, जब अमृतलाल चोरी के जुर्म में पहली बार पकड़ा गया | शायद छोटी मोटी सजा होती, लेकिन उसने तो पौहरी थाने के लॉकअप में ही एक पुलिस सिपाही को काबू किया और 26जून 1939 को हिरासत से निकल भागा और साथ में थाने से दो दुफैरा बन्दूक और कारतूस लूट कर ले गया। बीहड़ में पहुंचा और डाकू रूपा के गेंग में शामिल हो गया | गैंग में आते ही उसने लूट और डकैती के लिए योजना बनाने का जिम्मा अपने कंधों पर उठा लिया। फिर शुरू हुआ एक के बाद एक साहसिक वारदात का सिलसिला । इटावा के डीएम एस के भाटिया आईसीएस के घर को लूटकर उसने गिरोह पर अपनी धाक जमा ली | 

उसने एक नई रणनीति बनाई कि हर वारदात के बाद सब डाकू कुछ दिन के लिए गायब हो जाते । खुद अमृतलाल तो बीहड़ों से निकल कर बस और ट्रेन के सहारे दूर दूर के दिल्ली मुम्बई जैसे बड़े शहरों में लंबा वक्त बिताता और फिर वापस चंबल में पंहुच जाता । इसी कारीगरी से उसने एक के बाद एक कई डकैती डाली । हथियारों की जरूरत थी, तो कानपुर में एक मिल पर धावा बोलकर हथियार लूट लिए। 1942 में ईटावा के जसवंतनगर में दो बडी डकैतियां डाली। 1943 में अमृतलाल अपने सरदार के साथ ग्वालियर में एक बड़ी डकैती डालने पहुंचा लेकिन मुठभेड़ में गोपी गिरफ्तार हो गया। गोपी की गिरफ्तारी के साथ ही गैंग की कमान अमृतलाल ने संभाल ली। अमृतलाल ने गैंग की कमान संभालते ही ताबड़तोड़ डकैतियां डाली और कत्ल किए। हर मौका ए वारदात पर अमृतलाल अपने गैंग के साथ मौजूद रहा। 

इसी बीच 1946 में अवैध असलहे के साथ अमृतलाल आगरा की पुलिस के हत्थे चढ़ गया। पहचान होने पर अमृतलाल पर डकैती के मुकदमों की झड़ी लग गई और 18 साल की कड़ी सजा सुनाई गई। अमृतलाल पर अलग अलग शहरों में डकैतियों के चार्ज थे लिहाजा पुलिस उसको लेकर अलग-अलग शहर जाती थी। ऐसी ही एक पेशी शिवपुरी में भी हुई। और फिर कोलारस के थाने की हिरासत से अमृतलाल भागने में कामयाब हो गया। इस बार भी अमृतलाल अकेला नहीं गया। अपने गैंग के दो डाकुओं माता प्रसाद और साधुराम को तो साथ ले गया उसके साथ-साथ तीन दूसरे कैदियों को भी साथ लेकर निकल भागा। 

दो साल तक अमृतलाल ने फिर पूरे इलाके में ताबड़तोड़ वारदात की। लेकिन एक बार फिर ग्वालियर शहर की पुलिस के हत्थे च़ढ़ गया। अवैध हथियारों के साथ गिरफ्तार अमृतलाल को सजा काटने के लिए जेल भेज दिया गया। लेकिन अमृतलाल ने तो जैसे जेल की दीवारों को खिलौना मान रखा था। 1949 में एक दिन अमृतलाल यहां से भी हैरतअंगेज तरीके से फरार हो गया। 

ग्वालियर से फरार होने के बाद अमृतलाल एक दम से बदल गया। गैंग ने बेगुनाह लोगो को मारना और जिंदा जलाना भी शुरू कर दिया। 1950 में मैनपुरी जिले के एक गांव में पांच लोगों को डकैती के दौरान जिंदा जला दिया। एक के बाद एक डकैती। चंबल के बीहड़ों के बाहर अमृतलाल का नाम दहशत का नाम बन रहा था लेकिन चंबल के बीहड़ों के अंदर अमृतलाल का नाम एक दूसरी वजह से बिगड़ रहा था। अमृतलाल की अय्याशियां उसके गैंग के लोगो की निगाह में भी चढ़ने लगी थी।

चंबल के डकैतों ने अपने कुछ उसूल बनाएं हुए थे जिनको वो आसानी से या फिर लोगो की नजरों के सामने कभी तोड़ना नहीं चाहते थे। और सबसे पहला उसूल था कि गैंग के सदस्यों के परिवार पर कोई बुरी नजर नहीं रखेगा। लेकिन अमृतलाल की अय्याशियों ने बीहड़ के सारे उसूलों को धता बता दी। अपने ही गैंग के जेल गए हुए सदस्यों के परिवार की महिलाओं के साथ अमृतलाल अवैध रिश्ते बनाने लगा। 

अमृतलाल की अय्याशियां पूरे चंबल में सुर्खियां बटोर रही थी। साथ ही लूट और डकैतियों के साथ साथ उसने कमाई का आसान जरिया ढूंढ लिया - पकड़ को अपना मुख्य औजार बना लिया। वो धनिकों को बंधक बनाकर जंगल में ले जाता और जबतक एक मोटी रकम हासिल नहीं होती उन्हें नहीं छोड़ता था। एक ऐसी ही वारदात में शिवपुरी शहर के एक प्रसिद्ध मंदिर में पूजा करने गए चालीस लोगो में से 26 लोगो का अपहरण करके वो पालपुर के जंगलों में दाखिल हो गया। एक दो दस दिन नहीं बल्कि महीनों तक पुलिस उनको छुड़ाने के लिए एडी-चोटी का जोर लगाती रही लेकिन अमृतलाल के शिकंजे से किसी भी पकड़ को बिना फिरौती रिहा नहीं करा पाई। पकड़ रिहा हुई और शिवपुरी पहुंची तो पुलिस के होश ठिकाने नहीं रहे जब किसी भी पकड़ ने अपने अपहरण की बात मानने से ही इंकार कर दिया। 

दुस्साहसी अमृतलाल ने गुना के नजदीक उमरी के राजा की गढ़ी लूटने का कारनामा अंजाम दिया । रियासत के तत्कालीन राजा (बाद में कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे शिवप्रसाद सिंह के पिता) अपनी गढ़ी में दीवाली पूजन की तैयारी कर रहे थे, कि तभी अमृतलाल ने धावा बोला | लक्ष्मीपूजन के लिए रखे सारे गहने लूटकर जाने लगा तभी नजर ससुराल से मायके आई राजा साहब की बेटी पर पड़ी, जो आंसू बहा रही थी | उसने पुछा – बहना तू क्यों रो रही है ? जबाब मां ने दिया, बोली तुम्हारे लुटे गहनों में इसके गहने भी हैं, ससुराल में क्या जबाब देगी | 

अमृतलाल ने सारे गहने वापस सामने उड़ेल दिए और कहा – बहना, अपने गहने चुन ले, मुझे तो राजा साहब से हिसाब चुकता करना था, तुझे नहीं लूटूंगा | साफ़ है कि अमृतलाल की दो निगाहें थीं - एक में महिलाओं के लिए इज्जत थी तो दूसरी में वासना |

बाद में अमृतलाल गढ़ी के दो नौकरों के सिर पर ही सामान लदवा कर फरार हो गया। अमृतलाल का हौंसला आसमान पर था और पुलिस को कुछ सूझ नहीं रहा थ। इसी बीच एक दिन अमृतलाल जा धमका राजस्थान के बारा जिले के कस्बा थाने में और दिनदहाड़े थाने के हथियार और गोलियां लूटी और आराम से चलता बना। 1954 में उसने बैराड़ थाना लूटने की कोशिश की, लेकिन पुलिस सजग थी, अतः अमृतलाल गैंग को भारी गोली बारी का सामना करना पड़ा। अमृतलाल थाने को लूटे बिना ही वापस हो गया। 

ऐसा ही एक प्रसंग है मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी से जुड़ा हुआ | एक बार शूटिंग के सिलसिले में दिल्ली जाते समय शिवपुरी के नज़दीक मीना कुमारी और उनके निर्देशक पति कमाल अमरोही की कार में पैट्रोल ख़त्म हो गया | अमरोही ने कहा कि हम रात कार में सड़क पर ही बिताएंगे |

आधी रात के बाद करीब एक दर्जन डाकुओं ने उनकी कारों को घेर लिया | उन्होंने कारों में बैठे हुए लोगों से कहा कि वो नीचे उतरें. कमाल अमरोही ने कार से उतरने से इंकार कर दिया और कहा कि जो भी मुझसे मिलना चाहता है, मेरी कार के पास आए.'

'थोड़ी देर बाद एक सिल्क का पायजामा और कमीज़ पहने हुए एक शख़्स उनके पास आया और पूछा, 'आप कौन हैं ?' अमरोही ने जवाब दिया, 'मैं कमाल हूँ और फिल्म शूटिंग के सिलसिले में इस इलाके से गुजर रहा था कि तभी हमारी कार का पैट्रोल ख़त्म हो गया और दूसरी कार में मीना कुमारी भी बैठी है | यह सुनते ही तुरंत संगीत, नाच और खाने का इंतेज़ाम कराया गया | उन्हें आराम से सोने की व्यवस्था हुई और सुबह उनकी कार के लिए पेट्रोल भी मंगवा दिया | चलते चलते सरदार ने मीना कुमारी से कहा कि वो नुकीले चाकू से उसके हाथ पर अपना ऑटोग्राफ़ दे | जैसे तैसे मीना कुमारी ने यह ऑटोग्राफ़ दिया | यह शख्स और कोई नहीं अमृतलाल ही था |

श्योपुर के नजदीक पाली घाट के पास शादी के लिए जा रही एक पूरी बारात को ही उसने लूट लिया | इतना ही नहीं तो दूल्हे और उसके भाई को अपहरण कर ले गया और फिरौती की रकम लेकर ही बाद में छोड़ा । पुलिस की नाक में दम करते हुए अमृतलाल ने अपने 25 आदमियों के गैंग के साथ धामर में एक बडे़ ठाकुर के घर डकैती डाली और लाखों रूपए के साथ हथियार भी लूट कर ले गया। लूट के साथ ही दो लोगो को भी पकड़ के तौर पर अपने साथ ले गया। 

इसके बाद उसने राजमार्गों पर ही गाड़ियां रोक कर पकड़ बनाना शुरू कर दिया। ग्वालियर के राष्ट्रीय राजमार्ग से दिन दहाड़े दो बड़े व्यापारियों का अपहरण किया और उनसे फिरौती वसूल कर ली। सुर्खियों में आते जा रहे अमृतलाल ने एक नया धंधा और शुरू कर दिया था. और वो था इलाके ठेकेदारों से चौथ वसूली का। शिवपुरी और गुना के जंगलों में तेंदुपत्ता का हर ठेकेदार उसको वसूली दिया करता था। कोई भी ठेकेदार बिना अमृतलाल को चौथ दिए अपना काम नहीं कर सकता था। 

अमृतलाल के पास इतना पैसा हो गया था कि वो इसको ब्याज पर देने का काम भी करने लगा। इलाके के बडे सेठ उससे ब्याज पर पैसा लेने लगे। चंबल में एक किस्सा ये भी है कि चंबल के सबसे बड़े कातिल माने जाने वाले लाखन सिंह को भी उसने पचास हजार रूपया उधार दिया था। अमृतलाल ने पैसे के दम पर इलाके में पुलिस से बड़ा मुखबिर तंत्र खड़ा कर लिया था। और उन पर अमृतलाल पानी की तरह से पैसा बहाता था। पूर्व पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तमजी ने इस बारे में लिखा कि पचास के दशक के शुरूआत में एक नाई के हेयरकट से खुश होकर अमृतलाल ने उसको 100 रूपए का नोट ईनाम में दिया था। इतना ही नहीं एक मुखबिर ने दस मील साईकिल पर आकर पुलिस के बारे में खबर दी तो अमृतलाल ने उसको 1000 रूपया दिया। 

लेकिन उसकी अय्याशियां उसके खिलाफ जा रही थी। गिरोह के एक एक्टिव मेंबर रथी किरार की मौत के बाद अमृतलाल की नजर उसकी पत्नी नारायणी पर थी। करम का मारा रथी का साला बद्री किरार गैंग में शामिल होने पहुँच गया | अमृतलाल ने उस पर दबाब बनाया कि वह अपनी विधवा बहिन को बुलाये, अन्यथा उसकी और उसके परिवार की खैर नहीं है । मजबूर बद्री उसे अपने गाँव गोपालपुर की ओर ले चला । 

18 अगस्त 1959 को दोपहर में गोपालपुर से कुछ दूर पहले ही महुवा के पेड़ों के नीचे गैंग ने आराम करने का तय किया। गैंग के लोगो के लिए पास के गांव से बकरा लाकर काटा गया और शराब का लंबा दौर चला। खाने के बाद गैंग मेंबर तालाब के किनारे सो गए। बीच में अमृतलाल और मोतीराम सो गए और उनके पास बद्री किरार बैठ गया। बद्री ने तबीयत खराब होने का बहाना कर खाना नहीं खाया था। कुछ देर बाद जब नशे में धुत्त गैंग के लोग सो गए तो बद्री ने सबकी राईफले और बंदूके उठाकर तालाब में फेंक दी और अमृतलाल की राईफल से उसको सटाकर एक गोली चला दी। चंबल में चली लाखों गोलियों में से सबसे कीमती गोली। एक ही गोली में अमृतलाल का काम तमाम हो गया गोली की आवाज से उठे गैंग के मेंबर जैसे ही आगे बड़े । बद्री ने गोलियों की बौंछार कर दी। निहत्थे गैंग के सदस्य जान बचा कर जंगल की ओर भागे। राईफल को कंधे पर टांग कर गोपाल पुर थाने में जाकर पुलिस को सूचना दी ।

पुलिस प्रमुख के एफ रूस्तम जी ने पत्रकारों को कहा कि ये एक चालाक लोमडी़ का अंत है। एंड ऑफ ए क्लेवर फॉक्स। और अमृतलाल की मोटी फाईल में ये आखिरी शब्द दर्ज हो गए। अमृतलाल के हाथ पर चाकू से लिखा गया ऑटोग्राफ "मीना" भी उसके साथ ही अग्नि संस्कार में मिट गया | हाँ नहीं मिटा तो लूटा गया वह धन, जो उसकी रखैलों और मुखबिरों के पास रखा रह गया और उनके वंशज आज उसी धन से समाज मान्य और रसूखदार बने बैठे हैं |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें