राफेल की ठंडी आग पर रोटियाँ सेकने की असफल कोशिश - संजय अवस्थी


सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दिए जाने और सीएजी की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत कर दिए जाने के बाद तो राफेल विवाद का पटाक्षेप हो जाना चाहिए था, लेकिन कांग्रेस पार्टी और उसके स्वनामधन्य अध्यक्ष जी क्या करें, उन्हें विगत पांच वर्षों में सरकार के खिलाफ कोई और मुद्दा मिला ही नहीं, अतः उनकी विवशता है कि इस बेमतलब के विवाद की आग में ही, अपनी राजनैतिक रोटियाँ सेकने की कोशिश करें । ये अलग बात है कि इस ठंडी आग में सिकी राजनैतिक रोटी स्वाभाविक ही कच्ची होगी और अपच ही पैदा करेगी, जैसा कि हो भी रहा है और जनता के मन में “राफेल” सुनते ही जुगुप्सा का भाव आ जाता है | 

राहुल गांधी के बयानों तक तो मामला सामान्य था, किन्तु अंग्रेजी समाचार पत्र “द हिन्दू” के मालिक एन राम की रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद प्रकरण अतिशय गंभीर हो गया | तीन कड़ियों में धारावाहिक प्रकाशित इस रिपोर्ट का आधार था, राफेल सौदे को लेकर रक्षा विभाग और पीएमओ के बीच चली नोट शीट की कतिपय टिप्पणियाँ । इस फाईल के कुछ पन्नों की चोरी से फोटोकॉपी हासिल कर, उसके आधार पर यह लेखमाला “द हिन्दू” अखबार में प्रकाशित की गई थी | ये टिप्पणियाँ उतनी महत्वपूर्ण नहीं हैं, जितना रक्षा विभाग जैसे अति संवेदनशील विभाग से किसी फाईल का लीक हो जाना | जब एक समाचार पत्र तक कोई गोपनीय दस्तावेज पहुँच सकता है, तो विदेशी जासूसों की भी वहां पहुँच संभव है | अतः उस काली भेड़ या जयचंद को ढूंढा जाना और उसे दण्डित किया जाना राष्ट्रहित में अत्यंत ही आवश्यक है | 

यह अत्यंत खेद का विषय है कि हिन्दू अखबार के मालिक अपने उस सूत्र का खुलासा नहीं कर रहे हैं, जिसने उन्हें यह जानकारियाँ उपलब्ध कराईं | ध्यान देने योग्य बात है कि भारत में Official Secrets Acts 1923 लागू है, जिसके अनुसार अत्यंत संवेदनशील पत्र/दस्तावेज/सूचनाएं, जो रक्षा से जुड़ी हुईं हों तथा जिनके जाहिर होने से दुश्मन देश को लाभ हो,उसे गलत तरीके से हासिल करना संगीन अपराध है, जिस पर 3 से 14 साल तक की सज़ा हो सकती है। अब,आप राफेल की क्रय प्रक्रिया की गोपनीय और अत्यंत संवेदनशील जानकारी न केवल चोरी से फोटो कॉपी कर हासिल कर रहें हैं, बल्कि उसे सार्वजनिक भी कर रहे हैं, इसे देशद्रोह नहीं तो क्या कहा जाए ? 

इन्हीं लेखों को आधार बनाकर प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा आदि ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया | स्मरणीय है कि यशवंत सिन्हा ने पहले आईएएस रहते सत्ता का सुख भोगा, फिर सोशलिस्ट बन,राजनीति में आये, फिर बीजेपी में शामिल हुए, सत्ता का सुख भोगा, मोदी ने मंत्रि नही बनाया तो बागी हो गए | इसी प्रकार अरुण शौरी पत्रकार से मंत्री बने, सत्ता सुख भोगा, मोदी ने नहीं पूछा तो नाराज । कुल मिलाकर राहुल जी से लेकर पूर्व भाजपाईयों तक, सब व्यक्तिगत खुन्नस का मामला है | 

तृतीय विश्व के देश रक्षा सौदे में दलाली के लिये कुख्यात रहे हैं, भारत भी इससे अछूता नहीं। 67 साल तक शासन करने वाली कांग्रेस ,इस खेल की माहिर खिलाड़ी रही है। उनके समय में राफेल का सौदा इसी दलाली के चक्कर में चक्करघिन्नी होता रहा लेकिन बात नहीं बनी | चूंकि वे दलाली खाते रहे हैं अतः उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा कि मोदी सरकार ने यह सौदा बिना किसी लाभ के किया होगा | अतः शुद्ध मानसिकता के साथ, राष्ट्र हित में तेज गति से पूरी की गई राफेल क्रय प्रक्रिया उन्हें संदिग्ध लग रही है। सत्ता वियोग उन्हें तड़पा रहा है, हाय हसन हम न हुए ! 

अगर आप उस पूरी रिपोर्टिंग को पढ़ें तो एक ही बात समझ में आती है कि निहित स्वार्थों के कारण तिल का ताड़ बनाया जा रहा है | केवल एक उद्देश्य समझ में आता है कि कुछ नॉटिंग्स के आधार पर राफेल की उस क्रय प्रक्रिया को पटरी से उतारने की कोशिश की जा रही है, जिसे सर्वोच्च संवैधानिक संस्थाएं - सर्वोच्च न्यायालय और सीएजी पूर्णतः वैधानिक घोषित कर चुकी हैं | निश्चय ही “एन राम” की इस प्रकार की पत्रकारिता दल विशेष को लाभ पहुंचाने हेतु प्रतीत होती है।

जहाँ तक कार्यालयों में नोटशीट में प्रतिकूल नॉटिंग्स की बात है, तो भारतीय आफिस सेटअप में इस तरह की नॉटिंग्स आम बात है।दरअसल आईएएस के मध्य बहुत अधिक अहम का टकराव होता है | अहम का टकराव ,अन्य शासकीय अधिकारी एवं कर्मचारियों में भी आम बात है, पर सर्वोच्च शिखर पर बैठे नीति नियंताओं में ये अहम का टकराव,सरकारी काम को बुरी तरह प्रभावित करता है। अतः संभव है कि जो आईएएस अधिकारी पीएमओ में बैठा है, उसी के बराबर वरीयता का अधिकारी रक्षा मंत्रालय में बैठा है, रक्षा मंत्रालय के साहब को अपनी बराबर वरीयता या कम वरीयता के पीएमओ के साहब की दखलंदाजी बर्दाश्त नहीं हुई होगी, इसलिए नोट शीट के आदानप्रदान में पीएमओ द्वारा राफेल खरीद में भूमिका निभाना, उन्हें नागवार गुजरा और रक्षा मंत्रालय के साहब ने समानांतर नेगोसिएशन पर आपत्ति जता दी होगी।

अब पूरी फाइल को बिना देखे,कुछ नोटशीट के आधार पर प्रक्रिया को गलत बताना, जबकि ये मात्र अधिकारियों के मध्य अहम का टकराव है और कहां तक उचित है ? निश्चय ही सर्वोच्च न्यायालय और सीएजी ने पूरी फाईल का अवलोकन कर ही निष्कर्ष निकाला होगा और सौदे को क्लीन चिट दी होगी | 

और सबसे बड़ी बात कि जब भारत सरकार की सीधे फ्रांस सरकार से डील हो रही है तो राफेल डील को पीएमओ को हाथ मे लेना,क्या गलत है ? फिर नेगोसिएशन के लिये बनी टीम की सभी बातें मानी गई, तो फिर बैंक गारंटी पर क्यों अड़ना ? और वह भी तब जब फ्रेंच सरकार सॉवरेन गारंटी दे रही हो।

जहाँ तक फाइल के कुछ पन्नो की चोरी से फोटोकॉपी का मामला, यह है तो बहुत गम्भीर , चोर और उपयोगकर्ता दोनों ही अपराधी हैं।वैसे भारत के कार्यालयों में कर्मचारीयों का अपने अहम की लड़ाई और आपसी वैमनस्य में महत्वपूर्ण दस्तावेजों को चोरी से फ़ोटोकॉपी करना एवं आपसी दुश्मनी भजाने में दुरपयोग करना आम बात है। पर राफेल की खरीद से जुड़ा ये अपराध अत्यंत संगीन एवं भविष्य के खराब संकेत देता है।

मुख्य बात यह है कि राफेल ,वायु सेना को चाहिए, जल्दी से जल्दी चाहिए । मिग 21,अपग्रेड होने के बाद भी नए युद्धक विमानों की बराबरी नहीं कर सकते। मिराज हैं, पर राफेल की बात ही कुछ और है। मिराज हमारे पास कई वर्षों से है पर बॉर्डर के निकट से उन्हें उड़ाने हेतु आवश्यक सुविधा हमारे पास नही, इसलिए हमें पाकिस्तान के एफ़16 के खिलाफ मिग का उपयोग करना पड़ा। कांग्रेस की सरकारों ने रक्षा खरीद और सुविधाओं को खड़ा करने हेतु बहुत धीरे कार्य किया, इसलिए मिराज हो कर भी हम उसका उपयोग f16 के खिलाफ नही कर पाए।

विपक्ष को चाहिए कि वो संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान करें और राफेल पर विवाद कर ,पाकिस्तान या अन्य दुश्मन देशों के हाथों में न खेले। 

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