पाकिस्तान के एजेंडे पर चलने वाले नेताओं का हिंदुस्तान के टुकड़े करने का मंसूबा !

इस बार के लोकसभा चुनाव में भारत की जनता भारत के नेताओं का असली चेहरा देख कर हैरान है | वोटों के लालच में पाकिस्तान परस्त भारत के नेता अपनी असलियत जाहिर कर रहे है | कांग्रेस अपने मेनिफेस्टो में देशद्रोह कानून खत्म करने, सेना और सुरक्षाबलों के विशेषाधिकार को कम करने के वादे कर रही है, उमर अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के लिए अलग प्रधानमंत्री बनाये जाने वाला बयान सार्वजानिक रूप से दे रहे है, मध्यप्रदेश में राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस कार्यालय से सुरक्षाकर्मियों को हटाए जाने की हरकत कांग्रेस सरकार कर रही है, वहीँ मेहबूबा मुफ़्ती अनुच्छेद 370 या 35ए की डेडलाइन तय करते हुए जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने की बात कर रही है या यूँ कहें कि मेहबूबा जिन्ना की राह पर चल रहीं है ? जिन्ना का द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत भी तो प्रकारांतर से यही था | तो आईये आज महबूबा मुफ़्ती का इतिहास जानें |

22 मई 1959 को जन्मी मेहबूबा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी हैं। वैसे मेहबूबा को एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा जम्मू और कश्मीर की तेरहवीं और एक महिला के रूप में जम्मू कश्मीर राज्य की प्रथम मुख्यमंत्री के रूप में जाना जाता है परन्तु निश्चित रूप से इतिहास में मेहबूबा को उनकी पाकिस्तान परस्ती के लिए जाना जाएगा | इस द्रष्टि से विकिपीडिया देखना प्रासंगिक होगा -

https://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%AC%E0%A5%82%E0%A4%AC%E0%A4%BE_%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%80) | 

आतंकवादियों से भी बातचीत करने की पैरवी

मेहबूबा हमेशा अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहीं है | मेहबूबा मुफ़्ती कश्मीर में शांति के लिए आतंकवादियों से वार्ता की पक्षधर रहीं है | महबूबा मुफ्ती पत्रकार वार्ता आयोजित कर ऑपरेशन ऑलआउट को रोककर आतंकवादियों से वार्ता करने की बात कह चुकी है | इस पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा था कि - 'वे हमेशा से कहती रही हैं कि स्थानीय आतंकवादी कश्मीर की मिट्टी के बच्चे हैं| हमारी कोशिश उन्हें बचाने की होनी चाहिए | महबूबा ने कहा कि मुझे लगता है कि बातचीत में जम्मू-कश्मीर में सिर्फ हुर्रियत ही नहीं बल्कि जो लड़के बंदूक उठाए हुए हैं, उन्हें भी जोड़ना चाहिए, लेकिन इस वक्त नहीं |' 

जेएनयू प्रकरण पर दाखिल चार्जशीट पर कहा कि ये सिर्फ बीजेपी का खेल 

जेएनयू मामले में दाखिल चार्जशीट पर महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 2019 का चुनाव जीतने के लिए बीजेपी ये खेल खेल रही है| महबूबा मुफ्ती ने कहा कि 2014 के चुनाव से पहले इसी तरह कांग्रेस ने अफजल गुरु को फांसी दी थी | कांग्रेस ने सोचा था कि शायद इसी तरह से उनको कामयाबी मिलेगी | आज बीजेपी वही दोहरा रही है | उन्होंने कन्हैया, उमर खालिद के अलावा जम्मू-कश्मीर के 7-8 स्टूडेंट्स के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की है | चार्जशीट पर महबूबा ने कहा कि ये बिलकुल गलत है. ऐसा महसूस हो रहा कि 2019 के चुनाव की तैयारी में जम्मू-कश्मीर के लोगों को फिर से मोहरा बनाया जा रहा है | उनको इस्तेमाल किया जा रहा है | वोट की राजनीति हो रही है | 

मस्जिद बनी तो मुस्लिमों के लिए अच्छा

राम मंदिर पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारुक अब्दुल्ला के जवाब की प्रतिक्रिया में महबूबा ने कहा कि अगर कोर्ट का फैसला बाबरी मस्जिद के हक में आता है जो कि पहले गिरा दी गई थी, अगर उसे फिर से बनाया जाता है तो ये मुस्लिमों के लिए अच्छा होगा | 

करती रही हैं आतंकियों की पैरवी

महबूबा मुफ्ती इससे पहले भी कई बार स्थानीय आतंकवादियों का पक्ष लेते हुए ऑपरेशन ऑलआउट पर सवाल उठाती रही हैं | जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री रहते हुए भी उन्होंने कई बार आतंकवादियों को मारने का खुलकर विरोध किया था | 

एयर स्ट्राइक का विरोध 

महबूबा मुफ्ती पाकिस्तान से युद्ध की पैरवी करने वालों को असली जाहिल करार दे चुकी है | इस पर वे कहती है कि चाहे मुझे देश विरोधी कहें, लेकिन मैं वायुसेना की स्ट्राइक या इसके बाद युद्ध का समर्थन नहीं करती हूं। मेहबूबा ने वायुसेना की एयर स्ट्राइक के बारे में कहा था कि इससे लोगों में युद्धोन्माद है | ज्यादातर लोग अनजान है, लेकिन पढ़े लिखे लोगों का युद्ध को लेकर उत्साह दिखाना ही असली जहालत है | मैं ऐसे लोगों से सहमत नहीं हूं, जो युद्ध की मांग कर देशभक्ति का सुबूत देने के लिए कह रहे हैं। जब पाकिस्तान अपने इलाके में कोई मौत न होने का दावा कर संकेत दे रहा है कि वह सुलह के मूड में है तो उस समय हालात और बिगाड़ना सही नहीं है। अगर ऐसा हुआ तो इसका सबसे अधिक नुकसान कश्मीरियों को होगा।

महबूबा मुफ्ती को कोसते उनके शौहर

जावेद इकबाल पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती के शौहर रहे हैं। करीब 20 साल पहले दोनों में तलाक हो गया था। तबसे ही जावेद इकबाल अपने पूर्व ससुर यानी मुफ्ती मोहम्मद सईद और पत्नी के खिलाफ हर चुनाव में कोसने का कोई भी मौका नहीं छोड़ते। कहते हैं कि जावेद के मन में महबूबा को लेकर खुंदक इसलिए है क्योंकि तलाक होने के बाद महबूबा ने हमेशा यह कोशिश की कि उनकी दोनों बेटियों अपने पिता से न मिलें।जावेद इकबाल, मेहबूबा को पाक परस्त से लेकर घूसखोर तक कहते है | जावेद इकबाल ने पहली मर्तबा मुफ्ती के खिलाफ उस वक्त खुलकर प्रचार किया था जब वे मुजफ्फरपुर से लोक सभा का चुनाव लड़े थे। उन्हें लालू यादव ने जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़वाया था। तब जावेद इकबाल कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे थे।

महबूबा मुफ्ती ने आधी रात अपने ही चाचा से कर लिया था निकाह

20 साल पहले महबूबा मुफ्ती ने अपने पति जावेद इकबाल को तलाक दे दिया था। जावेद इकबाल उनके पिता के कजिन थे यानि रिश्ते में छोटे भाई थे। जावेद इकबाल करोड़पति बिजनैसमैन हैं। दोनों की मुलाकात प्यार में बदल गई और एक दिन आधी रात को दोनों ने निकाह करने का फैसला महबूबा के पिता को सुनाया। जावेद इकबाल का बड़ा बिजनेस था। वहीं महबूबा भी राजनीति में कदम रख चुकी थीं। इसी दौरान उनकी एक बेटी हो गयी। जिसका नाम दोनों ने इल्तिजा रखा। यहां तक दोनों की लाइफ ठीक चल रही थी। इसके बाद दोनों की दूसरी बेटी हुई जिसका नाम दोनों ने इर्तिका रखा। इसके बाद से ही दोनों के संबंध बिगड़ने शुरू हो गये। महबूबा मुफ्ती ने अपने पति से बिहड़ते रिश्तों की वजह से अपनी राहें अलग कर ली थीं। महबूबा का कहना था कि उनका पति जावेद दोनों बेटियों और परिवार की ओर ध्यान ही नहीं देता है। इस वजह से महबूबा ने तलाक ले लिया। हालांकि इसके बाद जावेद ने पूरे परिवार से खूब दुश्मनी निभाई और हर जगह महबूबा और उनके पिता का विरोध किया | 

रूबिया सईद अपहरण कांड

मेहबूबा की बहिन रूबिया सईद का 8 दिसंबर 1989 को अपहरण हो गया था | इसके बदले 13 दिसंबर को सरकार को पांच आतंकवादी छोड़ने पड़े थे। उस समय मेहबूबा के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद भारत के पहले मुस्लिम गृहमंत्री थे। अलगाववादी नेता हिलाल वार ने अपनी किताब ‘ग्रेट डिस्क्लोजरः सीक्रेट अनमास्क्ड’ में बताया है कि किस पीडीपी नेता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने गृहमंत्री रहते हुए अपनी बेटी रूबिया सईद का अपहरण की साजिश रच आंतकवादियों को छुड़वाया और इसके बाद किस तरह बिगड़ गए कश्मीर के हालात।

अलगाववादी नेता हिलाल वार ने अपनी पुस्तक में पूरे घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया है। उन्होंने लिखा है कि कश्मीर को अस्थिर करने की पटकथा बहुत पहले लिखी जा चुकी थी। इसका असली काम शुरु हुआ 13 दिसंबर 1989 को। 90 के दशक में इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो कश्मीर के हालत ठीक-ठाक थे। हिलाल वार के अनुसार आतंकवाद की शुरुआत करने वाले रुबिया सईद अपहरण कांड एक ड्रामा था। इसे राजनीतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए खेला गया था। इसके बाद कश्मीर के हालात बिगड़ते चले गए। आईसी 814 विमान को हाईजैक, संसद हमला और घाटी में बड़ी आतंकी घटनाएं इसी अपहरण कांड के बाद से ही शुरु हुईं।

आतंकियों की रिहाई से पहले भारत सरकार ने शर्त रखी थी कि आतंकवादियों की रिहाई के बाद कोई जुलूस नहीं निकाला जाएगा।
लेकिन जब ये जेल से छूटे तो लोग सड़कों पर उतर आए।
हर तरफ आजादी-आजादी के नारे लग रहे थे। उस दिन पूरी रात कश्मीर में जश्न मनाया गया।
रूबिया के अपहरण की सफलता के बाद कश्मीर घाटी में अपहरण और हत्या का सिलसिला चल निकला।
कश्मीर विश्वविद्यालय के वीसी प्रोफेसर मुशीरुल हक और उनके सेक्रेटरी अब्दुल गनी का अपहरण स्टूडेंट लिबरेशन फ्रंट के लोगों ने किया।
एचएमटी के जनरल मैनेजर एचएल खेड़ा का अपहरण जेकेएलएफ ने किया।
हिजबुल मुजाहिदीन ने इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर दुरई स्वामी को किडनैप किया। 

जरा विचार कीजिए के एक और कश्मीर के उमर अब्दुल्ला और मुफ्ती जैसे नेता, दूसरी और अलगाववादी और तीसरी और कश्मीर को लेकर कांग्रेस घोषणा पत्र में उल्लेख (370 यथावत, सुरक्षा बलों में कमी, अफास्मा का खात्मा), सवाल उठना लाजिमी है कि कश्मीर कब तक भारत का अंग रहेगा ? अगर यही नीति रही तो कश्मीर ही क्यों - इण्डिया देट इज भारत में भारत ही कब तक रहेगा ? वोट परस्त राजनेताओं की मानसिकता को देखते हुए उसे टुकडे टुकडे होने से कौन बचाएगा ?

जागो भारत जागो !

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