भिण्ड से घोषित कांग्रेस प्रत्याशी देवाशीष जरारिया बनाम चम्बल अंचल में सिंधिया जी का घटता दबदबा - दिवाकर शर्मा

पूरे देश में लोकसभा चुनाव को लेकर प्रत्येक राजनैतिक दल अपने अपने प्रत्याशियों का चयन करने में जुटी हुई है | यह सामान्य बात है, लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस की गुटीय राजनीति अपने चिर प्रतिद्वंदी भाजपा से मुकाबला करने के स्थान पर आपस में अपने ही दल के वरिष्ठ राजनेताओं को निबटाने की साजिश में अधिक व्यस्त दिखाई दे रही है | यह जाना माना तथ्य है कि ग्वालियर चम्बल अंचल में सिंधिया राजवंश का प्रभाव जन मानस पर रहता है | यहाँ तक कि अगर उन्होंने किसी अनजाने व्यक्ति को भी अपना समर्थन देकर लड़ाया, तो वह आसानी से जीतता रहा है | एक पुताई करने वाले सामान्य मजदूर को लड़ाकर जिताने का करतब भी उन्होंने किया है | लेकिन इस बार स्थिति बदली हुई नजर आ रही है |

पहले तो दिग्विजय जी ने चाल चली और मुख्यमंत्री कमलनाथ से बयान दिलवाया कि वरिष्ठ नेताओं को अपनी परंपरागत सीटों के स्थान पर कठिन सीटों से लड़कर भाजपा से सीटें छीनना चाहिए | इस तरह दिग्विजय सिंह जी ने एक तीर से दो शिकार किये | दस वर्षों के राजनैतिक वनवास और पांच वर्षों की राज्यसभा सांसदी के चलते उन्हें मोदी लहर में राजगढ़ सीट जीतना कठिन प्रतीत हो रहा था, और राजगढ़ से लड़कर हारने से उनके राजनैतिक भविष्य पर सवालिया निशान लग सकता था | अतः राजनीति के चतुर खिलाड़ी दिग्गी राजा ने भोपाल से लड़कर हारने का खेल खेला, ताकि पराजय सम्मानजनक लगे |

दूसरी और ज्योतिरादित्य जी पर दबाब बनवाया गया कि वे इंदौर से लड़कर पराजित हों, ताकि कांग्रेस के दोनों महारथी समान स्तर के प्रतीत हों | स्वाभाविक ही ज्योतिरादित्य जी इस चक्रव्यूह में नहीं फंसे | किन्तु चतुर राजनेता दिग्विजय सिंह जी ने यहाँ भी अपनी गोटियाँ चल दीं | उन्होंने आलाकमान के सामने सिंधिया जी के अंक इतने कम कर दिए कि कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें केवल गुना संसदीय क्षेत्र तक ही प्रभावी मान लिया व अंचल की शेष सीटों पर उनके समर्थकों के स्थान पर दिग्विजय समर्थकों को टिकिट  थमा दिए |

सबसे ज्यादा हद्द तो भिंड लोकसभा क्षेत्र में हुई, जहाँ कांग्रेस का टिकिट जेएनयू के कुख्यात कन्हैया कुमार के नजदीकी - भारत तेरे टुकडे होंगे - इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह - गेंग के सदस्य देवाशीष जरारिया को दे दिया गया | आईये इस कहानी की प्रष्ठभूमि पर नजर दौडाएं और जानें भिंड के कांग्रेस प्रत्यासी की पृष्ठभूमि |

इस बार के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन न होने पर गुजरात में जिस तरह से जिग्नेश मेवाणी को दलित चेहरा बना कर प्रस्तुत किया था उसी तर्ज पर भिण्ड में देवाशीष जरारिया को मध्य प्रदेश का 'जिग्नेश मेवाणी' कह कर कांग्रेस जनता के सामने प्रस्तुत कर रही है | देवाशीष जरारिया मध्यप्रदेश में अनुसूचित जाति, जनजाति कर्मचारी संगठन (अजाक्स) के महासचिव डॉ. पी.सी. जाटव के बेटे हैं। 26 साल के देवाशीष जरारिया दिल्ली में रहकर आईएएस की तैयारी करते समय कन्हैया कुमार के संपर्क में आये और फिर अपनी राजनैतिक महत्वकांक्षा के चलते उन्हें बसपा में अपना भविष्य दिखाई दिया | वे बसपा प्रवक्ता के रुप में टीवी चेनलों पर हिस्सा लेते रहे | 

व्हिसलब्लोअर डॉ. आनंद राय ने पिछले दिनों इंदौर में अपने निवास पर देवाशीष जरारिया की मुलाकात कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह से करायी। और उसके बाद इस अति महत्वाकांक्षी नौजवान ने बसपा से पल्ला झडकाकर कांग्रेस का दामन थाम लिया | देवाशीष की सक्रियता 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद के दौरान भी नजर आई थी | 

दो अप्रैल के उपद्रव से जुड़ा हुआ है देवाशीष का नाम 

भिंड लोकसभा से कांग्रेस के प्रत्याशी देवाशीष जरारिया का नाम दो अप्रैल के उपद्रव से जुड़ा हुआ है। देवाशीष का नाम भिंड से फाइनल हो जाने के बाद कांग्रेस की समाज के विघटनकारी तत्वों को संरक्षण देने की मानसिकता का पता चल रहा है। मूलत: ग्वालियर के मेला क्षेत्र के रहने वाले देवाशीष जरारिया छात्र राजनीति का चोला उतारकर माकपा से चुनाव लड़ रहे कन्हैया कुमार एवं गुजरात के विधायक विधायक जिग्नेश मेवाणी की टीम के सदस्य हैं। यह सभी लोग विधानसभा चुनाव के पूर्व बड़े ही सुनियोजित तरीके से कांग्रेस का प्रचार करने ग्वालियर में चेंबर भवन आए थे।

जरारिया जहां रामकृष्ण आश्रम में स्कूली शिक्षा के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने के साथ टीवी चैनलों पर बहस में भी शामिल रहते हैं। वे पहले बसपा में थे, लेकिन 2 अप्रैल के उपद्रव कांड के बाद कांग्रेस में आ गए। जिससे उन कांग्रेस नेताओं को धक्का लगा है जो वरिष्ठता के नाते वहां से अपना नाम फाइनल मानकर चल रहे थे। 2 अप्रैल का उपद्रव कांड भले ही ग्वालियर में हुआ था,लेकिन यह कांड पूरे देश में विघटनकारी शक्तियों के नाम से जाना गया। 

देवाशीष का नाम प्रत्याशी के तौर पर सामने आने के बाद भिंड सीट के प्रबल दावेदार और लंबे समय से सियासी बिसात बिछा रहे कांग्रेस नेता महेंद्र सिंह बौद्ध और महेंद्र जाटव ने बगावती झंडा बुलंद करना प्रारंभ कर दिया था | हाल ही में बहुजन संघर्ष दल छोड़ कांग्रेस का दामन थामने वाले नेता फूल सिंह बरैया भी कांग्रेस के इस कदम से नाराज होते दिख रहे थे और इसके लिए पार्टी नेताओं ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक अपनी विरोधी आवाज बुलंद करने तेज कर दिया था | परन्तु कन्हैया कुमार की पैरवी के बाद राहुल गाँधी ने पार्टी के सभी असंतुष्टों को दरकिनार कर देवाशीष का नाम फाइनल कर दिया  |

तो यह है कांग्रेस की आतंरिक सत्ता संघर्ष की गाथा | देखना दिलचस्प होगा कि दिग्विजय सिंह की कुटिल कुचालों से ज्योतिरादित्य सिंधिया किस प्रकार पार पाते हैं | स्मरणीय है कि विगत दिनों जब राहुल गांधी ने अमेठी से अपना नामांकन दाखिल करते समय रोड शो किया था, तब उत्तर प्रदेश के तथाकथित प्रभारी सिंधिया जी को अपने साथ चुनावी रथ पर स्थान नहीं दिया था | और वे उनके पीछे पीछे चलते दिखाई दिए थे | देखना दिलचस्प होगा कि अपमान के ये कड़वे घूँट सिंधिया राजवंश के ये क्षत्रप कब तक चुपचाप पीते रहेंगे ?

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