पुलिस अधीक्षक की नेक नीयत पर भारी राजनेताओं की नीति।



शिवपुरी पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह चंदेल ने पदभार ग्रहण करते ही कट्टू वाहन की धरपकड़ कर अपने नेक इरादे जाहिर कर दिये थे। लगने लगा था कि शिवपुरी वासी जैसे पुलिस अधीक्षक की प्रतीक्षा लंबे समय से कर रहे थे, वह मिल चुका है, किन्तु अब स्थानीय राजनीति उनकी नेक नीयत पर भारी पड़ती नजर आ रही है । 

शिवपुरी पुलिस अधीक्षक राजेश सिंह ने कटने जा रहे मूक गौवंश से भरे वाहनों को पकड़ कर और नोजवानो को नशे के शिकंजे में जकड़ने वाले स्मेक के विरुद्ध अभियान छेड़, अपनी पारी की बेहतर शुरूआत की । उनका व्यवहार सज्जनों के लिए सज्जन और दुर्जनो के लिए कठोर दण्डदाता के रूप में दिखने से आमजन का विश्वास एक बार फिर पुलिस के प्रति बढ़ा। जैसा कि पुलिस अधीक्षक ने अपनी पहली पत्रकार वार्ता में स्पष्ट किया था कि जनता के मन मे पुलिस के प्रति विश्वास कायम करना उनकी प्राथमिकता रहेगी, उस वायदे पर प्रारम्भिक तौर पर वे खरे उतरते और अपनी छाप छोड़ने में वह कामयाब भी रहे। लम्बे समय से किसी पुलिस अधिकारी का जनता के साथ संवाद कायम करना और उनकी परेशानियों को हल करने के लिए तत्परता दिखाना, जैसे दिखना बन्द हो गया था, परन्तु उसी परम्परा को पुनः स्थापित राजेश सिंह जी ने किया। 

पर जिले के एक थाने के नगर निरीक्षक को अनुशासन हीनता के आरोप में लाइन अटैच के निर्णय को चौबीस घंटे में ही बदल देने से उनकी नेक नीयत पर राजनेताओं का दबाब भी स्पष्ट दिखा है । जन चर्चा है के अनुसार इसके पीछे एक बड़े नेता जी का हाथ है, जिसके कारण पुलिस अधीक्षक को अपना निर्णय बदल देना पड़ा, और उसका असर कल एक व्यक्ति को जबरन थाने में बिठाए जाने के रूप में भी सामने आया है। यानी कि जनता के साथ जो सम्वाद और विश्वास का सम्बन्ध पुलिस अधीक्षक कायम करना चाह रहे है उसमे भी कही न कही बाधा बनकर सामने ये घटना आयी है। 

जिम्मेदार और अपने हिसाब से टीम बना कर कोई अधिकारी अच्छे निर्णय सामने ला सकता है, परन्तु उन निर्णयों में राजनीतिक दबाब अधिकारी की योजना को बिगाड़ भी सकता है, ये हाल ही के एक घटना चक्र से सामने आ गया है। हम न किसी की वकालत के पक्ष में हैं और न ही किसी के विरोध में, बल्कि जो सच है उसको प्रस्तुत करना अपनी जिम्मेदारी मान कर चलते है। सभी ने कट्टू वाहन पर रोकथाम और स्मेक के प्रति कार्यवाही देखी है, जो कानून की दृष्टि से शिवपुरी की दो बड़ी समस्या थी। अगर उन पर अंकुश लगा है तो तारीफ करनी ही पड़ेगी। किन्तु जब कसावट में कमजोरी नजर आएगी, उसे भी सामने लाना पत्रकार का धर्म है । अभी जिस नीति की हम बात कर रहे है, वह लिखना इस लिए भी जरूरी है, क्योंकि ये आम जन से जुड़ा विषय हो चुका है।जब अधिकारी अपनी सहजता और सरलता से आदर्श स्थापित कर सकता है, तो उसी विभाग का निरीक्षक क्यों नही उसी परिपाटी को आगे बढ़ा सकता है? किसी व्यक्ति को थाने में जबरन बिठा क्यों उन आदर्शों को खत्म करता है? केवल किसी राजनेता का संरक्षण होना आपको हठधर्मिता का लाइसेंस नही देता,बल्कि इसे गाइड लाइन का उल्लंघन ही कहा जायेगा । और पुलिस अधीक्षक महोदय अपनी स्थापित लाइन पर ही चलकर ऐसे तत्वों के विरुद्ध कार्यवाही कर, बेहतर परिणाम लाने का भरोषा दिला सकते है। नेक नीयत पर अनैतिक दबाब का प्रभाव नही पड़ना चाहिए यही जनता की अपेक्षा और आशा रहती है।
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