मोदी जी ने पंद्रह अगस्त पर बोलने के लिए मांगे सुझाव, तो मैं लिख रहा हूँ कि इस बार नेताओं से करो कुछ आग्रह !





परम आदरणीय नरेंद्र भाई मोदी जी, 

मैं आपका लम्बे समय से समर्थक ही नहीं, वरन अंध भक्त भी हूँ | उस ज़माने से जब आप महज गुजरात के मुख्यमंत्री थे व आपको प्रधान मंत्री पद का दावेदार ना बनने देने के लिए भाजपा में ही अनेक प्रमुख लोग सक्रिय थे | उस समय भी मैं आपकी विरुदावली गाते हुए लिख रहा था - 

किसके निमंत्रण का करते हैं इंतज़ार | 
पलक पांवड़े बिछा हम सब है तैयार || 

झूठ के मुलम्मे से थक हार ऊबे हैं | 
आपकी अगुआई में सत्यपथ मंसूबे हैं || 

दीपक की ज्योति बुझे मुरझाये कमल 
इसके पहले हे नर पुंगव उठ, तन, चल 
राष्ट्रघाती नीतियों से जन है विकल । 

आज भी आशा के दीप बुझे नहीं हैं, या यूं कहें कि केवल और केवल आपसे ही आशा है कि आप देश में व्याप्त असमानता को पाटेंगे, गरीबों की स्थिति में सुधार होगा, अमीरों को अनावश्यक और अधिक अमीर बनाने की नीति पर रोक लगेगी | इसीलिए जब आपने 15 अगस्त पर किस विषय पर बोला जाए, यह जन सामान्य से ही पूछा, तो मुझे रंच मात्र भी हैरत नहीं हुई | क्योंकि मैं जानता हूँ कि आप सच्चे अर्थों में जन नायक हैं | इसी भावना से यह किंचित आलोचनात्मक सुझाव आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ, इस आशा के साथ कि आप अन्यथा नहीं लेंगे और मेरी भावना को सही परिप्रेक्ष में ही समझेंगे | 

आप हर बार पंद्रह अगस्त पर आमजन से अपेक्षा करते हैं, उनसे आग्रह करते हैं और जनता मानती भी है | चाहे स्वच्छता अभियान को जन आन्दोलन बनाना हो, या गैस सब्सिडी छोड़ने का मामला, आपके आग्रह का व्यापक असर हुआ और देश का हित हुआ | 

किन्तु मेरा निवेदन है कि इस बार आप आमजन के स्थान पर नेता बिरादरी से कोई आग्रह करें ताकि आमजन को यह ज्ञात हो सके कि उस जमात में आपके आग्रह का कितना प्रभाव होता है | हो सकता है समय समय पर आप पार्टी बैठकों में अपनी पार्टी के नेताओं से आग्रह करते हों, या शायद करते ही होंगे, किन्तु सार्वजनिक रूप से आपके द्वारा किये गये किसी आग्रह का उनपर पड़ने वाला असर देखने और समझने योग्य होगा | 

क्षमा प्रार्थना के साथ कहना चाहूंगा कि वर्तमान में नेता शब्द किसी गाली के समान माना जाने लगा है | एक ऐसा वर्ग जिसकी अर्थ पिपासा असीम है, भूख सीमातीत है – महाभारत के नायक महाबली भीम के समान, जिनसे जब देवता ने वर माँगने को कहा तो उन्होंने माँगा भी तो क्या – 

खाऊँ मैं और पेट दुखे शकुनी का | 

आज के परिप्रेक्ष में इसे यूं कहा जा सकता है कि खाते नेता हैं और कष्ट उठाती जनता है | 

आज राजनेताओं पर मुक्त हस्त से नियामतें वरसाई जाती हैं | शासकीय खर्चे पर बेशुमार सुख सुविधाएँ उन्हें प्रदान की जाती हैं | मुझे स्मरण आता है कि आपातकाल के दौरान सेन्ट्रल जेल ग्वालियर में बंद राजनेताओं के द्वारा हर शनिवार को एक कार्यक्रम आयोजित होता था - मेरे सपनों का भारत | 

उस कार्यक्रम में एक शनिवार को तत्कालीन विधायक स्वर्गीय परमानन्द जी गोविन्दजीवाला ने एक सुझाव दिया कि अगर हमारी सरकार बनी तो हम सांसदों और विधायकों की पेंशन पर रोक लगायेंगे | 

कार्यक्रम तो अनौपचारिक ही था, उसका कोई कानूनी महत्व तो था नहीं, लेकिन इसके वावजूद कई विधायकों, पूर्व विधायकों को लगा, मानो यह निर्णय कल से ही अमल में लाया जाने वाला है और हंगामा खड़ा हो गया | एक पूर्व मंत्री तो गुस्से में बोले कि तुम तो रहीस परिवार से हो, पूर्वज ख़ासा कमा कर रख गए हैं, अन्य व्यवसाय भी चलते हैं, इसलिए ऐसी बात कर रहे हो, अरे हमसे पूछो कि राजनीति के अलावा अन्य कोई काम है ही नहीं | तुम क्या चाहते हो बुड्ढे होकर रिटायर्मेंट के बाद हम फुटपाथ पर भीख मांगें ? 

खैर बात आई गई हो गई | लेकिन आज हो क्या रहा है – हरियाणा में अगर कोई व्यक्ति तीन बार विधायक बना तो उसे पूर्व विधायक की तीन पेंशन मिल रही हैं | अगर वह वर्तमान में भी विधायक है तो विधायक के वेतन भत्ते अलग से | क्या यह जनधन की लूट नहीं है ? 

एक पूर्व विधायक की पत्नी को उसके स्वर्गवासी पति की विधवा के नाते भी पेंशन मिल रही है, तो साथ ही स्वयं विधायक बन जाने के बाद विधायक का वेतन भी मिल रहा है | 

हरियाणा में पूर्व विधायकों को ५१७५० रु. मासिक पेंशन दी जाती है, किन्तु 39 पूर्व विधायकों को 90,543/- रूपये प्रति माह पेंशन मिल रही है। 

जेल में बंद हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री श्री ओम प्रकाश चौटाला को हर माह 2.22 लाख रूपये पेंशन दी जा रही है, क्योंकि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री की पेंशन भी मिलती है। 

इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की विधवा पत्नी जसमा देवी को अब डबल पैंशन मिल रही है। खुद पूर्व विधायक होने के नाते जसमा देवी को 51,750 रूपये प्रतिमाह तथा पूर्व मुख्यमंत्री की विधवा होने के नाते 99,619 रूपये प्रतिमाह पारिवारिक पैंशन भी मिल रही है। 

हैरत की बात है कि विश्व के सबसे अधिक धनी उद्योगपतियों की सूची में शामिल व जिन्दल ग्रुप की चेयरमैन सावित्री जिंदल को प्रतिमाह 90,563/- रूपये पैंशन मिल रही है। जबकि वह लगभग 642 अरब रूपए (8.8 अरब डॉलर) से भी ज्यादा सम्पति की मालिक हैं। 

इसके अलावा सर्वाधिक मासिक पेंशन 2.38 लाख रूपए रेवाड़ी के पूर्व विधायक कैप्टन अजय सिंह यादव ले रहे हैं। 

दोहरी तिहरी पेंशन लेने वाले एक नहीं कई विधायक हैं | श्रीमति चन्द्रावती 2,22525/- रूपये, 

प्रो सम्पत सिंह 2,14,763/-रूपये, 

ऐलनाबाद के पूर्व विधायक भागीराम 1,91,475/-रूपये, 

शमशेर सिंह सुरजेवाला 1,75,950/- रूपये, 

अशोक अरोड़ा 1,60,425/-रूपये, 

हरमोहिन्द्र सिंह चट्ठा 1,60,425/-रूपये, 

चन्द्रमोहन बिश्नोई 1,52,663/-रूपये, 

धर्मवीर गाबा 1,52, 663/-रूपये, 

खुर्शीद अहमद 1,52,663/-रूपये, 

फूलचंद मुलाना 1,68,188/-रूपये, 

मांगे राम गुप्ता 1,68,188/-रूपये, 

शकुंतला भगवाडिय़ा 1,68,188/- रूपये, 

बलबीरपाल शाह 2,07,000/-रूपये, 

सतबीर कादियान 1,29,375/-रूपये, 

शारदा रानी 1,37,138/-रूपये, 

देवीदास सोनीपत 1,21,613/-रूपये, 

दिल्लू राम कैथल 1,13,850/-रूपये, 

कमला वर्मा 1,13,850/-रूपये, 

कंवल सिंह हिसार 1,21,613/- रूपये, 

निर्मल सिंह अंबाला 1,52,663/- रूपये, 

मोहम्मद इलयास 1,37,138/- रूपये, 

यह तो एक हरियाणा का आंकड़ा सामने आया है, अन्य प्रदेशों में भी ऐसा ही कुछ चल रहा होगा | मुझे अपने एक साथी पूर्व मीसाबंदी विधायक जी का प्रकरण भी ज्ञात हैं जो जेल से छूटने के बाद विधायक बने, विधायकी जाने के बाद एक महाविद्यालय में प्राचार्य रहे और सेवा निवृत्त हुए | उन्हें तीन पेंशन एक साथ आजीवन मिलती रहीं - पूर्व विधायक की पेंशन, शासकीय सेवा से सेवा निवृत्ति के बाद की पेंशन और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दी जाने वाली मीसाबंदी सम्मान निधि | 

जरा विचार कीजिए कि क्या यह उचित है ? 

क्या एक व्यक्ति एक पेंशन का नियम नहीं होना चाहिए ? 

मेरा स्पष्ट मानना है कि जनधन की यह लूट बंद होना चाहिए और देश में एक व्यक्ति एक पेंशन का नियम कडाई से लागू होना चाहिए | मुझे पता है कि यह करना आपके लिए भी आसान नहीं होगा | सुविधा स्वेच्छा से कौन छोड़ना चाहता है ? 

किन्तु आपको यह आग्रह तो करना ही चाहिए | जब आपके आग्रह पर सामान्य जन अपनी गैस सब्सिडी छोड़ सकते हैं, तो क्या करोडपति पूर्व विधायक अपनी दोहरी तिहरी पेंशन नहीं छोड़ सकते ? पेंशन बंद करना तो दूर, इसे स्वेच्छा से छोड़ने का आग्रह भी केवल और केवल आप ही कर सकते हैं | क्योंकि गुड न खाने को वह ही कह सकता है, जो स्वयं गुड न खाता हो | मुझे ज्ञात है कि आप अपने वेतन भत्ते भी राष्ट्र कार्य हेतु अर्पित करते हैं | जनधन की लूट रोकना भी राष्ट्र कार्य ही है आदरणीय मोदी जी और मुझे विश्वास है कि आप यह करेंगे |
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