अंकल सैम का स्वार्थ बनाम आत्मघाती विपक्ष का भोंथरा हथियार - संजय अवस्थी



अमेरिका बिना किसी गौरवशाली इतिहास के एक शुद्ध व्यापारिक देश रहा है।उसके लिए उसका व्यापार सर्वोपरि है, एक सशक्त लोकतंत्र और शक्तिशाली इस राष्ट्र के लिये अपनी अर्थव्यवस्था एवं नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है,एक भी नागरिक को कोई भी कष्ट हो और रोकड़े का नुकसान उसे बर्दाश्त नहीं। एक तो पूरी तरह व्यवसायिक देश ऊपर से 2016 में राष्ट्रपति बन गया एक सनकी खरबपति व्यवसायी।


शीत युद्ध को समाप्त हुये अरसा हो गया,टूट चुका वामपंथी सोवियत रूस,पुनः राष्ट्रपति पुतिन के नेतृत्व में अपनी धाक और खोई साख स्थापित करने में लगा है।ऐसे में अमेरिका गहन आर्थिक संकट में हैं, रोजगार घट रहे हैं, चीन की आक्रमक व्यवसायिक नीतियां ,संतुलन डीगाये हुए है।उधर अफगानिस्तान में रूस के बाद ,2001 से खुद का वर्चस्व स्थापित करने का अमेरिकी प्रयास अब दम तोड़ने लगा है, निरन्तर अमेरिकी सैनिक मारे जा रहें हैं, लादेन को घर मे घुस कर मारने के बाद भी तालिबानी रक्तबीज, निरन्तर बढ़ता जा रहा है।2020 में चुनाव हो रहे हैं, ऐसे में अमेरिकी जनता निरन्तर,अपने सैनिकों के अफगानिस्तान में मारे जाने से क्षुब्ध है, जनता की इस नाराजी से राष्ट्रपति ट्रम्प वाकिफ हैं, अभी तक 2016 की चुनावी गड़बड़ी की आंच ठंडी नहीं हुई ऐसे में ट्रम्प को लगने लगा है कि वे दूसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन पाएंगे, इसलिये,अफगानिस्तान से सर उठा के वापसी हेतु ,अमेरिका का तालिबान से समझौते का प्रयास,वहां की चुनी हुई,भारत प्रेमी सरकार को किनारे कर ,चल रहा है।


वो तो प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली और विदेश नीति है जिसके कारण विश्व की आर्थिक और सामरिक महाशक्तियों के राष्ट्राध्यक्षों से बराबरी के सम्बंध हैं,जिसके कारण,अमेरिका अपने व्यसायिक हितों को किनारे कर ,भारत का विश्व के मंचो पर ,पाकिस्तानी आतंकवाद सहित कई मुद्दों पर समर्थन करता है, जबकि भारत से व्यवसायिक हितों पर तनातनी चल रही है।


यहाँ, मैं एक बात मानता हूँ कि जब आपको इतना समर्थन मिल रहा है तो भारत सरकार को भी अमेरिकी व्यवसायिक हितों का ध्यान रखना चाहिए।


अब आएं,टूटती और गिड़गिड़ाती अर्थव्यवस्था,भिक्षा को आतुर,आंतरिक कलह से जूझते पाकिस्तान पर।पाकिस्तान के बिना,अमेरिका की अफगानिस्तान से सुरक्षित वापसी, जिसमे तालिबान के शासन आने पर क्षेत्रीय शांति की चिंता भी शामिल है, सम्भव नहीं है।


अब भिखारी पाकिस्तान जो ट्रम्प के सामने भाटगिरी करने आतुर था,ट्रम्प भी अपने हितों को देखते हुए लाभ लेना चाहते थे,ऐसे में UAE के राष्ट्राध्यक्ष की मदद रंग लाई।


इमरान को अपनी सत्ता बचाने, अमेरिकी भीख चाहिए और अमेरिका को अपनी नाक बचाने, पाकिस्तान का साथ।


ऐसे में झूठ बोलने के आदी ट्रम्प की जुबान फिसल गई और एक और झूठ बोल गए कि मोदीजी ने उनसे कश्मीर मामले में मध्यस्थता हेतु कहा है।


बुरी तरह से दो चुनाव में लताड़ी गई कांग्रेस और मोदी -शाह की आक्रमक राजनीति से पस्त सम्पूर्ण विपक्ष को ट्रम्प की मजबूरी ने मौका दे दिया।अब गिद्ध तो जानवर के मरने का ही इंतज़ार करते हैं।विपक्ष को मौका सनकी ट्रम्प ने दे दिया।इन्हें अपने प्रधानमंत्री पर विश्वास नहीं, दूसरे के झूठ पर विश्वास है।


विपक्ष का कार्य ,सरकार का सकारात्मक विरोध करना है, यह ओछी राजनीति, और कितना गर्त में विपक्ष को ले जाएगी,इसका इन्हें इल्म नहीं।
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