शक्ति का आलेख होता है इतिहास - संजय तिवारी



बीबीसी हो या तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और मैगसेसे पुरस्कार विजेता संदीप पांडेय, समूची भारत विरोधी गेंग आजकल पूरी तरह सक्रिय दिखाई दे रही है | बीबीसी फर्जी खबरों के माध्यम से तो संदीप पांडे जैसे लोग 'स्टैंड फॉर कश्मीर' के नाम पर देश में अशांति फैलाने की व्यूह रचना कर रहे हैं | इस गंभीर विषय पर प्रस्तुत है लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार श्री संजय तिवारी का यह विचार प्रधान आलेख – 

यकीन मानिए , भारत जब भी हारा है, भीतर के दुश्मनों से ही हारा है। जिस तरह यहां हर युग मे अभारतीय तत्वों को जगह मिलती रही है वही हमारी सबसे बड़ी समस्या है। इसका ताजा उदाहरण अभी देखिये। जिस बलिया की धरती से चित्तू पांडेय और मंगल पांडेय जैसे अमर बलिदानी सामने आए और बिटिश हुकूमत की चूलें हिला दीं, उसी बलिया से आजकल एक और सज्जन आ गए है। अभारतीय मैगसायसाय लेकर घनघोर अभारतीयता फैलाने वाले संदीप पांडेय। अब इनसे कोई पूछे कि कोई व्यवसाय नहीं, नौकरी नही, खेती नही फिर भी शानदार जीवनशैली , असंख्य यात्राएं, इन सबके लिए धन कहां से पाते हो भाई। इनको उस हर कदम का विरोध करना है जो भारतीय मूल्यों की रक्षा में उठाया जाता है। ताजा मामला धारा 370 के खात्मे के विरोध में। ऐसे लोगो की उपस्थिति ने ही इस राष्ट्र को कायर बन जाने दिया था। अब जब देश का स्वाभिमान जग रहा है तो ऐसो को तकलीफ होने स्वाभाविक है। यह एक उदाहरण भर है। ऐसे लोगो की लंबी कतार है । टुकड़े टुकड़े गैंग, प्रेस्टीट्यूट मीडिया के नामचीन और कई विश्वविद्यालयों के स्लीपर सेल। राष्ट्र अब सभी को भली प्रकार से समझ चुका है। रमन मैगसायसाय वालो को भी और बीबीसी वालो को भी। 

इतिहास केवल शक्ति का आलेख होता है। शक्तिहीनो का कोई इतिहास होता ही नही। आपके पास अथाह ज्ञान है, अकूत संपत्ति है, असीम आध्यत्मिक क्षमता है, अनगिनत उपलब्धियां है लेकिन यदि शक्ति नही है तो यकीन मानिए आपको इतिहास में कोई स्थान नही मिल सकता। इतिहास ही सबसे बड़ी अदालत है जिसमे आपका मूल्यांकन होगा लेकिन तब जब आपकी शक्ति साथ होगी। इसका सबसे बड़ा प्रमाण खुद अपने महान राष्ट्र में मिल जाएगा। जब भारत पर शकों, हूणों, यवनों, मुगलो आदि के आक्रमण हो रहे थे उस समय न हमारे पास धन की कमी थी, न ज्ञान की। अकूत संपत्ति के मालिक थे हम। सोने की चिड़िया। ज्ञान के सागर। सुखी। सम्पन। आध्यात्मिक। लेकिन इन सारी उपलब्धियों पर आक्रांताओं के छोटे छोटे समूह भारी पड़ते गए। वे बहुत थोड़ी सी संख्या में यहां आते लेकिन यही के जन को जोड़ कर अपनी सेना बना लेते थे। वही सेना हम पर विजय पा लेती थी और इस तरह हम गुलाम दर गुलाम होते गए। इतने बड़े गुलाम हो गए कि जब मूल शासक यहां से जाने लगे तो उन्होंने गुलामो को ही गद्दी दे दी और एक गुलाम वंश ही भारत का शासक बन गया।

इसकी सबसे बड़ी वजह यह कि हमने कभी भी न तो अपने इतिहास से कुछ सीखा और न ही अपनी शक्ति का आकलन किया। हमारे पास शक्ति की कमी नही थी लेकिन हमने उसे संजोया नही। यहां तक कि हमने यह जान लेने की कोशिश तक नही की कि दुनिया को हैम किस तरह चलाया करते थे । धन, संपदा, संस्कृति, कला , विज्ञान आदि में हम कितना आगे हुआ करते थे । यह सब यदि जान लेते तो भारत कब का विश्वगुरु बन चुका होता। क्या आपको पता है कि इस धरती पर सबसे सुंदर और सबसे बड़ी इमारत अंकोरवाट में है। क्या आपको मालूम है कि यह एक मंदिर है। क्या आपको मालूम है कि इसको तमिलनाडु के एक राजा ने बनवाया। इसके निर्माण में केवल तमिल कारीगरों और मजदूरों ने काम किया। इस धरती पर इससे बड़ा और इससे सुंदर कोई अन्य भवन नही है। लेकिन अपने इस इतिहास को न तो हम जान पाते हैं और न ही अपनी नई पीढ़ी को इसके बारे में बता पाते हैं।

इसी तरह लीबिया में चार हजार वर्ष से भी पुराने भवन है जो वस्तुतः मंदिर हैं । अद्भुत कलात्मक भवन। भारत की उपस्थिति के अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज। कंबोडिया के अलावा और भी कई देशों में भारतीय अभिलेख और मोनुमेंट्स सुरक्षित हैं। लेकिन उन सबको सहेजने और उनके बारे में बात करने की फुरसत कहाँ। हमको तो जे एन यू और इलाहाबाद विश्वविद्यालयों के इतिहासकारों ने जो लिख दिया उतना ही पढ़ना है। हम यह भी नही सोच पाते कि इलाहाबाद , कोलकाता, मद्रास , दिल्ली, आदि विश्वविद्यालय स्थापित किसलिए हुए। ये नालंदा, तक्षशिला की तरह भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए नही बल्कि अंगेजी शासन के लिए बाबू पैदा करने स्थापित हुए थे जिनको आजादी के बाद स्वरूपतः बदल जाना चाहिए था, जो हमारी सरकारों को करना था लेकिन उन्हीने इसलिए नही किया क्योंकि वे खुद अंग्रेजो के उत्तराधिकारी बन शासन करने लगे।

किन्तु अब स्थिति बदल रही है | एक बार पुनः भारत अपनी मूल शक्ति को पहचान कर उठ खड़ा हुआ है, तो स्वाभाविक ही अंग्रेजों के मानस पुत्रों में खलबली है | अतः अब समय आ गया है आस्तीन में छुपी हुई जयचंदी परंपरा पर जन-जागृति का शब्दभेदी वाण चलाने का | अब चुपचाप सुनने के स्थान पर हिम्मत के साथ गलत को गलत और सही को सही कहना होगा | 

जागो भारत जागो !
एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें