राहुल गांधी और विपक्ष को अभी कश्मीर यात्रा नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि यह यात्रा कतई राष्ट्र हित में नहीं थी । विपक्ष के नेता अनुच्छ...
राहुल गांधी और विपक्ष को अभी कश्मीर यात्रा नहीं करनी चाहिए थी, क्योंकि यह यात्रा कतई राष्ट्र हित में नहीं थी । विपक्ष के नेता अनुच्छेद-370 हटने के बाद कश्मीर के हालात जानने नहीं, वह पूरे देश को अग्निकांड में झुलसाने का छद्म प्रयास कर रहे है । विपक्ष को कश्मीर ही नहीं पूरे देश में कहीं पर भी जाने की आज़ादी है___पर जब समस्या राष्ट्र हित की हो तब विपक्ष के नेताओं का दायित्व और अधिक बढ़ जाता है कि वह कोई भी नकारात्मक कदम ना उठाएं । जिससे हमारा विरोधी नापाक राष्ट्र लाभ ले सके।
किंतु अज्ञानी, अनुभवहीन अपरिपक्व नेता राहुल गांधी, सीताराम येचुरी, गुलाम नबी आज़ाद देश की भावनाओं को समझने में त्रुटि कर रहे हैं। वह नकारात्मक पहल कर रहे हैं जो निंदनीय है। उनकी किस्मत उनसे क्या-क्या करा रही है ? उनका नकारात्मक दृष्टिकोण देश के सामने प्रकट हो रहा है । जो चिंतनीय हैं। कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए विवेक की आवश्यकता है। प्रत्येक गांठ को जब बौद्धिक कौशल से खोला जाए तो वह सहज रूप से खुल जाती है। केंद्र सरकार ने - मोदी और अमित शाह ने, धारा 370 और 35 ए की गांठ को जितनी सहज रूप से खोला वह स्वागत योग्य कदम है।
प्रत्येक शुभ कार्य का मंगलचरण कर वंदन करना चाहिए। प्रत्येक शुभ कार्य को जब-जब ईर्ष्या-द्वेष के कारण अग्नि की आंच से प्रज्जवलित किया जाता है ,तो वहां अग्निकांड के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता। अग्नि का गुणधर्म ही यही है कि वह प्रज्वलित होने के बाद घास-फूस को तो जलाती ही है, लोहे जैसी धातु तक को पिघला देती है। अग्नि हिंदू और मुस्लिम में भेद नहीं करती। अग्नि केवल अशुभ, अशुद्ध, अमंगल, अनाचार विचारों को ही जलाए ऐसा तो हो नहीं सकता। वह तो अपने आलिंगन में आई सभी वस्तुओं को भस्मसात् कर देती है।
विपक्ष के नेतागण कश्मीर समस्या को जब तक निरपेक्ष भाव से नहीं देखते या देखने का प्रयत्न नहीं करते तब तक परिणाम अमंगलकारी, अनर्थकारी होने की संभावना है । लगता है ईर्ष्या और द्वेष में अंधे इन लोगों में ज्ञान चक्षुओं से देखने की शक्ति बची ही नहीं। मतभेदों को कलह का रूप दे रहे हैं । उनके प्रयास राष्ट्र को कलहाग्नि मैं घृत डालकर उसे धधकाने के हो रहे है। 70 साल पहले अपने पूर्वज नेहरू जी की भूलों का प्रायश्चित करने की जगह, सब कुछ जानते समझते हुए कैसे अनजान-अज्ञानी बन रहे हैं ।
विपक्षी दल के नेता शांति का संदेश लेकर श्रीनगर नहीं जा रहे थे, वह नापाक इरादों से जाना चाहते थे, जिससे वह बुझी हुई किसी महबूबा को प्यार और अब्दुल्ला को दुलार देकर उस अग्नि को प्रज्जवलित कर सकें। जिस अलगाववादी विचारधारा से कश्मीर पिछले 70 साल से धधक रही हैं , जिनके होंठों पर कोई सद्भावना का प्रस्ताव नहीं है, ऐसे नेता दृष्टि दोषी ही नहीं, साक्षात दृष्टिहीन हैं। इन राजनेताओं की योजना समस्या के समाधान में सहायक बनने की नहीं, समस्या को बनाए रखने में है।
कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी सत्ता लोभ की ऐसी रतौंधी बीमारी से ग्रस्त है, जिसमें दिन हो या रात, दिखाई देना ही बंद हो जाता है । उन्होंने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए अपने उस युवराज राहुल गांधी को श्रीनगर भेजा ,जो कश्मीर समस्या क्या – किसी भी समस्या का समाधान करने में पूर्णत: घोषित अयोग्य है । किसी राजपरिवार में जन्म लेने से ही व्यक्ति योग्य हो जाते तो बात ही क्या थी । धृतराष्ट्र का पुत्र दुर्योधन राजकुल में जन्मा था। योग्य होता तो महाभारत नहीं होती। इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री के पुत्र होने के नाते राहुल गांधी योग्य हों, इस बात की गारंटी नहीं। क्या दृष्टिहीन विपक्ष के कंधों पर चढ़कर एक मानसिक अपाहिज कश्मीर को दिशा दे सकता है । कोई भी राजनेता कैसा भी कर्म कर सकता है। उसके कर्म, वाणी, विचार वंदनीय या निंदनीय हो सकते हैं। वंदनीय कर्म करेगा तो उसकी वंदन देश की माटी के चंदन से होगा और निंदनीय कर्म करेगा तो उसकी सर्वत्र निंदा की जाएगी ।
इतिहास में पूर्वजों की उपलब्धियां और भूल वर्तमान में टीका टिप्पणी का कारण बनती हैं। ऐतिहासिक दर्पण में समस्त घटना चक्र का प्रतिबिंब होता है । वस्तुतः समग्र रूप से भावी पीढ़ी ही ऐतिहासिक दर्पण में अंकित आकृतियों का वास्तविक सम्यक दृष्टि से मूल्यांकन करती है।
विश्व पटल पर असहाय, कमजोर,दृष्टिहीन, लाचार पाकिस्तान कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद अलगाववाद की लकड़ी से अग्निकांड की ज्वाला, महबूबा, अब्दुल्ला रूपी गंधक से प्रज्जवलित करना चाहता है। और यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कुछ जयचंद उसके इस मंसूबे में सहयोगी बनना चाहते हैं | किन्तु सौभाग्य से वर्षा ऋतु के इस मौसम में केंद्र सरकार की राष्ट्रवादी नीतियों के कारण पाकिस्तान और पाकिस्तान परस्तों - महबूबा, अब्दुल्ला व उनके सुर में सुर मिलाने वालों की माचिस गीली हो चुकी है। ना तो कश्मीरी आवाम उनके साथ है और ना ही देश का मुसलमान भयभीत । यह समय संयम का है। देश को हर देश विरोधी ताकत की गतिविधियों से सावधान रहना चाहिए । ऐसी ताकतें देश के बाहर भी हो सकती हैं और देश के अंदर भी ।
धारा 370 और 35 ए हटने के बाद कश्मीर और देश की आवाम पूर्व शासकों का अंतिम संस्कार और योग्य उत्तराधिकारी का शपथ संस्कार देखेगी।
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