कांग्रेस को आखिर सावरकर से परेशानी क्यों है ? - दिवाकर शर्मा

गत दिवस दिल्ली विश्वविद्यालय में कांग्रेस की छात्र इकाई NSUI के कार्यकर्ताओं ने स्व. विनायक दामोदर सावरकर की प्रतिमा पर कालिख पोतकर, जूते की माला पहनाई | इस कुकृत्य में कम्यूनिस्टों की छात्र इकाई आल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA) ने भी NSUI का साथ दिया | NSUI एवं AISA के इन कार्यकर्ताओं का कहना था कि विनायक दामोदर सावरकर का स्वतंत्रता में कोई योगदान नहीं था, वह देशभक्त नहीं बल्कि देशद्रोही थे |आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वीर सावरकर के प्रति कांग्रेस और वामदलों की इस घिनौनी मानसिकता को क्या कहा जाए ? शायद इन लोगों की नजरों में आजादी लाने का श्रेय केवल और केवल गाँधी नेहरू परिवार को ही दिया जाना चाहिए | यदि आमजन में किसी अन्य स्वतंत्रता सैनानी का उनसे अधिक महत्व है, तो यह उनकी आँखों में चुभता है | स्वाभाविक भी है, जैसे जैसे कांग्रेस नेताओं के भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं, बैसे बैसे उनकी बेचैनी भी बढ़ती जा रही है | जनता कांग्रेस से दूर होती जा रही है, अतः वे महानायकों को खलनायक और अपने खलनायकों को नायक दर्शाने की जुगत में लगे हुए हैं | 

आजादी के बाद से ही कांग्रेस की यही कोशिश रही है कि स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जुझारू सैनानियों को कुटिलतापूर्बक नेपथ्य में डाल दिया जाए | आजादी के बाद से ही लम्बे समय से सत्ता में रही कांग्रेस ने इसी मानसिकता के साथ पाठ्यक्रमों में से आजादी के वास्तविक नायकों को बाहर कर सिर्फ और सिर्फ गाँधी नेहरू परिवार का ही महिमा मंडन किया | ऐसा नहीं कि कांग्रेस ने केवल विनायक दामोदर सावरकर के विषय में ही यह रवैया अपनाया हो, बल्कि कांग्रेस ने सभी सैनानियों की महत्ता को कम करने की कोशिश की है | फिर चाहें वो लोकमान्य तिलक हों, गोखले हों या सुभाषचंद्र बोस हों | कांग्रेस के इस कुकृत्य के पीछे का मूल तत्व यही है कि उन्हें देश के इतिहास में नेहरू गाँधी परिवार के अतिरिक्त किसी अन्य का नाम आदर के साथ लिया जाना सर्वथा असहनीय है | आज जो DU में सावरकर की प्रतिमा पर कालिख पोत रहे है, उन्हें जूते चप्पल की माला पहना रहे है, वे गाँधी नेहरू परिवार की प्रशंसा में तो लम्बे चौड़े व्याख्यान दे सकते है, परन्तु यदि उनसे पूछ लिया जाए कि लाल-बाल-पाल कौन थे ? उनके पूरे नाम क्या थे ? तो वह निश्चित रूप से गूगल का सहारा लेते नजर आएंगे | फिर यदि उनसे पूछ लिया जाए कि बलवंत फड़के, चाफेकर बंधू, रानाडे, खुदीराम बोस, उधम सिंह और मदन लाल ढींगरा कौन थे ? कूका विद्रोह क्या था ? इन सवालों के जवाब में यह बेशर्म लोग बगलें झाँकते नजर आएंगे | 

अब सबसे महत्वपूर्ण बात करते है कि आखिर इन कॉंग्रेसियों को सावरकर से परेशानी क्या है ? क्यों कांग्रेस को धर्म के आधार पर देश का बंटवारा कराने वाले जिन्ना से कोई आपत्ति नहीं है, देश का बंटवारा स्वीकारने वाले नेहरू चच्चा इनके लिए पूज्यनीय है, लेकिन अखंड भारत की बात करने वाले सावरकर इन लोगों को अस्वीकार्य क्यों है ? दरअसल आज हम जो कुछ देख रहे है वह अचानक नहीं हुआ है | इस माहौल को बाकायदा एक षड़यंत्र के रूप में आजादी के बाद से ही रचा जा रहा था | यह षड़यंत्र रचा जा रहा था, उस भाटचरण वर्ग के द्वारा जिसका उद्देश्य नेहरू गांधी परिवार की महिमा के गुणगान करना था | यह वही वर्ग था जिसने ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर, अपने हिसाब से प्रचारित कर इंदिरा को इंडिया और इंडिया को इंदिरा का पर्याय बना डाला | शायद इस भाटचारण वर्ग की मंशा थी कि इस देश के लोग राहुल बाबा को महान क्रन्तिकारी मानें और प्रियंका को रानी लक्ष्मी बाई के अवतार के रूप में स्वीकार करें | परन्तु वर्ष 2014 के बाद से यह सब कुछ होना बंद हो गया, एक तरफ़ा पढ़ाया जाने वाला इतिहास पढ़ना और पढ़ाना बंद हो गया, रही सही कसर सोशल मीडिया ने पूरी कर दी और नई पीढ़ी क्रांतिकारियों के बारे में जानने लगी, क्रन्तिकारी विचार जनमानस में अपनी पैठ पुनः एक बार बनाने लगे, अतः अब एक रणनीति के तहत क्रांतिकारियों के प्रति लोगों के मन में सम्मान समाप्त किये जाने का दुष्प्रचार चालू हो गया| लेकिन कांग्रेस यह भूल रही है कि राष्ट्र भक्तों एवं इतिहास पुरुषों के योगदान पर अपनी राजनैतिक सोच के चलते कालिख पोतना एक अक्षम्य अपराध है | उनकी कुटिल नीति के चलते लोकमान्य तिलक महाराष्ट्र तक सीमित कर दिए गए थे, गोखले वार्षिक कार्यक्रमों तक, बोस बंगाल तक सीमित कर दिए गए | किन्तु उनके दुर्भाग्य से जिन चंद्रशेखर आजाद एवं भगत सिंह को उग्रवादी बता कर उनके योगदान को नकारने की कोशिश की गयी थी, उनके बारे में आज पूरा देश बातें करने लगा है | यह कांग्रेस कैसे बर्दास्त करे ? कांग्रेस यह कैसे बर्दास्त करे कि देश इंदिरा के अतिरिक्त रासबिहारी बोस, मास्टर सूर्यसेन, श्याम जी कृष्ण वर्मा, दुर्गा भाभी, बिरसा मुंडा, टटिया भील या संथाल विद्रोह का जिक्र करे | कांग्रेस यह कैसे बर्दास्त करे कि आज पूरा देश एकजुटता के साथ पूछने खड़ा हो रहा है कि चरखे से आजादी कैसे आयी थी ? 

कांग्रेस को सदैव महान समाज सुधारक अपनी आँखों में चुभते आये है | यही कारण है कि कांग्रेस को महान समाज सुधारक, जाती-धर्म बंधनों के विरोधी, अस्पृश्यता पर महात्मा गाँधी से कई वर्ष पूर्व मराठी कविता 'मल्हा देवाचे दर्शन घेवू घा' के माध्यम से एक समुदाय के मंदिर में प्रवेश को लेकर किये जा रहे भेदभाव व अन्याय के दर्द को बताने वाले वीर सावरकर खटकते है | ये वे सावरकर है जिन्होंने हिन्दू समाज को उनकी गलतियों और कमियों से अवगत कराया | उन्होंने बताया कि हिन्दू इन्ही गलतियों के कारण सदियों तक गुलामी की पीढ़ा भोगते रहे है | ये वे सावरकर थे जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना की | वह हिन्दू राष्ट्र जो समतावादी हो | उनका सपना था कि सभी हिन्दू अपनी विरासत को स्वीकारें, सम्मान दें साथ ही सभी नागरिकों को अपनी आस्था के अनुरूप जीने की स्वतंत्रता प्रदान करें | यह वह सावरकर थे जिन्होंने साम्राज्यवाद के रथ पर काबिज होकर चलने वाले अंग्रेजों की क्रूरता की परिकाष्ठा झेली |

सोने की चम्मच मुहं में लेकर पैदा होने वालों को शायद इसका अनुमान भी न होगा कि, सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एकमात्र ऐसे क्रन्तिकारी है जिन्हे अंग्रेज सरकार ने दो आजीवन कारावास की सजा दी थी | सावरकर ने अपने जीवन के 11 वर्ष एकाकी कारावास में बिताये | यह वही सावरकर थे जिन्होंने सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया था | सावरकर ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अक्टूबर 1905 को पूना की विशाल जनसभा में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की घोषणा की थी | 1857 के युद्ध को स्वतंत्रता संग्राम का नाम देने वाले सावरकर ही थे, अन्यथा नेहरू जी तो सदा उसे ग़दर अर्थात विद्रोह ही कहते रहे | ये वे सावरकर थे जिनकी स्नातक की उपाधि को अंग्रेजी सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण वापस ले लिया था | यह वे सावरकर थे जिनके द्वारा इंग्लैंड के राजा के प्रति वफ़ादारी की शपथ लेने से मना करने पर उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया | ऐसा करने वाले वो इकलौते वकील थे जबकि भारत के जितने भी नेताओं ने इंग्लैंड में वकालत उत्तीर्ण की थी ( जिनमें गाँधी नेहरू भी शामिल थे) वे न तो उस समय अंग्रेज सरकार का विरोध करने का साहस दिखा पाए और न ही अपनी डिग्री छोड़ने का दम दिखा पाए थे | स्वाभाविक ही इन सभी उपलब्धियों के कारण एवं अपनी तुष्टिकरण की नीति के कारण कॉंग्रेसी और कम्युनिष्ट इतिहासकार सावरकर के ऊपर कीचड़ उछालने का कार्य करते रहे है | 

दरअसल सावरकर के हिंदूवादी दृष्टिकोण से निश्चित रूप से कई लोगों को समस्या है, खासकर उस विचारधारा के लोगों को जिन्हे 'हिन्दू' और 'भारतीय संस्कृति' से परहेज है | सावरकर हिंदुत्व को एक सांस्कृतिक तथा राजनैतिक पहचान मानते थे | उनके अनुसार भारत वर्ष के समस्त देशभक्त निवासी, जो कि भारत को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानते है, हिन्दू है | कांग्रेस की विचारधारा से इत्तेफाक न रखने के कारण और हिंदूवादी दृष्टिकोण की वजह से सावरकर कांग्रेस के लिए सदैव अछूत बने रहे और कांग्रेस का पूरा प्रयास ही सावरकर के कद को कम करने में लगा रहा | जहाँ तक सवाल है कांग्रेस के लोगों द्वारा सावरकर की आलोचना का, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है | जिनकी जिंदगी ही तलुए चाटते हुए बीती हो, उनसे त्याग की परिभाषा ही पूछना गलत है | फिर भी कॉंग्रेसी क्या यह बता पाएंगे कि आजादी के संग्राम में भाग लेने के कारण किस कॉंग्रेसी को फांसी हुई ? किसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी ? किस कॉंग्रेसी ने कालापानी भुगता ? क्या राहुल बाबा ने कभी कोई साहित्य रचा या कभी कोई सामाजिक सुधार का कार्य किया ? मणिशंकर अय्यर सरीखे लोगों के बाप दादाओं ने क्या कभी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया था ? कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्गी राजा हों या सिंधिया या केप्टिन अमरिंदर सिंह, उनके पुरखे अंग्रेजों से लडे थे या उनके जागीरदार – ताबेदार थे ? आज के जो छुटभैया लेखक सावरकर की आलोचना में लम्बे चौड़े लेख लिख रहे है क्या इन्होने आपातकाल के दौरान गिरफ़्तारी दी थी या देश के लिए कोई त्याग किया है ? जो वामपंथी सावरकर को अंग्रेजों का पिट्ठू घोषित कर रहे हैं, वे नेताजी सुभाष को “तोजो का कुत्ता” कहकर उनके प्रति अपनी नफरत दर्शाते थे | सावरकर की प्रतिमा पर कालिख पोतने वाले क्या अपने उन राजा महाराजा नेताओं को काले झंडे बताने की हिम्मत भी जुटा पायेंगे, जिनके पूर्वज घोषित रूप से अंग्रेजों के सहयोगी थे ?

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