भागीरथी और हुबली नदी के तट पर बसा मुर्शिदाबाद मुग़ल काल में बंगाल के नबाबों की राजधानी रहा था, किन्तु अंग्रेज काल में घटकर महज जिला रह...
भागीरथी और हुबली नदी के तट पर बसा मुर्शिदाबाद मुग़ल काल में बंगाल के नबाबों की राजधानी रहा था, किन्तु अंग्रेज काल में घटकर महज जिला रह गया | सुलतान सुजाउद्दौला और अलीवर्दी खान के समय इसका महत्व चरम पर था | किन्तु प्लासी के युद्ध में सुलतान सिराजउद्दौला की पराजय के साथ इसका महत्व घटता गया |यहीं से इतिहास प्रसिद्ध लार्ड क्लाईव की बंगाल पर पकड़ मजबूत हुई |
खैर यह तो हुआ मुर्सिदाबाद का इतिहास, लेकिन आजकल तो यह उस जघन्य हत्याकांड के कारण चर्चित है, जिसमें एक हंसते खेलते परिवार का समूल नाश कर दिया गया | यहाँ तक कि गर्भ में पल रहे आठ माह के बच्चे को भी नहीं बख्सा गया | एक शिक्षक बन्धु प्रकाश पाल, उनकी गर्भवती पत्नी ब्यूटी और आठ वर्षीय मासूम बच्चे आँगन को धारदार हथियारों से नृशंसता पूर्वक मार डाला गया | जहाँ पुलिस इसे संपत्ति विवाद के कारण हुआ काण्ड मानकर एक अलग ही "अपनी ढपली अपना राग" अलाप रही है, वहीँ आमजन इसे धर्मांध
लोगों की अमानवीय करतूत मान रहा है | उसके मूल में है यहाँ का जनसंख्या घनत्व | यहाँ की आबादी का सत्तर प्रतिशत मुस्लिम है |
लोगों की अमानवीय करतूत मान रहा है | उसके मूल में है यहाँ का जनसंख्या घनत्व | यहाँ की आबादी का सत्तर प्रतिशत मुस्लिम है |
इस नृशंस हत्याकांड पर सोशल मीडिया की प्रतिक्रियाएं आमतौर पर एक ही लीक पर चलती दिखाई दे रही हैं | संघ स्वयंसेवक मरने वाले परिवार के मुखिया को संघ स्वयंसेवक मानकर प्रतिक्रिया दे रहे हैं | हालांकि मुर्शिदाबाद के जिस इलाके में मृतक बन्धु प्रकाश रहते थे, वहां नियमित शाखा नहीं लगती थी, केवल साप्ताहिक मिलन आयोजित होते हैं | स्थानीय संघ पदाधिकारियों के अनुसार उनमें मृतक एकाध बार सम्मिलित हुए थे | बेहतर तो यह होता कि पूरे देश से एक स्वर में इस हत्याकांड को लेकर दुःख और क्षोभ का प्रदर्शन होता | वह संघ स्वयमसेवक थे - नहीं थे, यह प्रश्न गौण है, वे भारतवासी थे, अतः हम सबका दायित्व बनता है कि हम दुःख व्यक्त करें, अपराधियों को दण्डित करने की मांग करें | अगर प्रशासन नाकारा साबित होता है, तो गुस्से का इजहार करें |
हत्या क्यों हुई, यह गुत्थी तो जब खुलेगी तब ही सचाई सामने आयेगी | किन्तु देश इस समय कितनी खतरनाक मानसिकता से गुजर रहा है, किस दोराहे पर खड़ा हुआ है, यह ध्यान देने योग्य
है |
है |
सबसे पहले तो इन चित्रों को देखिये -
कितने हँसीखुशी से जीवन बिता रहे थे ये लोग | इनके हँसते खिलखिलाते जीवन को न जाने किस मनहूस की नजर लग गई |
कितने बेदर्द और क्रूर रहे होंगे वे लोग, जिन्होंने इतनी बेदर्दी से इन्हें जानवरों की तरह काट दिया |
मित्रो ऐसे लोग क्या इंसान कहे जाने योग्य हैं ?
लेकिन ये लोग हमारी इस पूण्यभूमि में ही रह रहे हैं |
दूसरी तरफ वे राजनैतिक गिद्ध और मीडियाई भांड हैं जिन्हें हर शव में अपना राजनैतिक और आर्थिक उल्लू सीधा करने का मौका नजर आता है | जिनकी हर प्रतिक्रिया अपनी लाभ हानि का विचार कर होती है |
क्या इन दोनों तरह के लोगों के प्रति देखने का और व्यवहार करने का हमारा नजरिया स्पष्ट नहीं होना चाहिए ?
यह यक्ष प्रश्न है, जिसे हल किये बिना देश प्रगति नहीं कर सकता |
पक्का जानिये |
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