अंग्रेज परस्तों के हवाले हुआ चमन - एक क्रांतिकारी का मूक रुदन

वर्तमान स्वतंत्र भारत के बहुत कम नागरिक जानते हैं कि गोविंद चरण नामक एक ऐसे भी क्रांतिकारी हुए हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन स्वतंत्रता के लिए दिया, किंतु आजादी के बाद वे दर-दर भटकने को मजबूर हो गए | गोविंद चरण बंगाल के वे क्रांतिकारी थे जिन्हें काकोरी केस में 10 वर्ष तक अंडमान की नारकीय जेल तथा भारत की अन्य जेलों में गंभीर यातनाएं दी गई थी | जब भारत का विभाजन हुआ तो क्रांतिकारी गोविंद चरण ने बंगाल की अपनी मातृभूमि छोड़ने से मना कर दिया वह 'हम यही रहेगा' की जिद करते हुए बंटवारे के समय पूर्वी पाकिस्तान और बांग्लादेश में ही रहे, किंतु कुछ समय बाद ही बांग्लादेश के मुसलमानों ने बंगाली हिंदू होने के चलते उन पर बर्बर हमला किया और बुरी तरह जख्मी कर मरने के लिए छोड़ दिया | 

इसके बाद वे किसी तरह अस्पताल पहुंचे | अस्पताल की एक सहृदय बंगाली नर्स ने उन्हें पहचान लिया और आश्चर्य से पूछा 'दादा आप इस हालत में' | तब दुखी मन से गोविंद चरण ने कहा 'जिस भूमि की स्वतंत्रता के लिए मैंने और मुझ जैसे क्रांतिकारियों ने अपना पूरा जीवन दे दिया उनके लिए यह आजादी का इनाम है' | नर्स स्थिति को भांप गई और उसने न तो अस्पताल प्रशासन को और न ही किसी अन्य को बताया कि गोविंद चरण क्रांतिकारी है अन्यथा उनके जिंदा बच जाने की खबर मिलते ही हमलावर उन पर फिर हमला करते और मार डालते | बाद में वे ठीक होकर किसी तरह भारत लौट आए भारत में वे लखनऊ के लाटूश रोड पर किराए के छोटे से मकान में रहने लगे | 

स्वतंत्रता की पहली वर्षगांठ पर वे गवर्नर हाउस में आयोजित कार्यक्रम में पहुंचे तब एक अन्य क्रांतिकारी चंद्रभानु गुप्त भी वहां उपस्थित थे | उनके साथ के कारण ही गोविंद चरण स्वतंत्रता के उत्सव में प्रवेश कर पाए किंतु स्वतंत्रता के सरकारी समारोह में यह देखकर गोविंद जी आक्रोश से भर गए, कि मंच पर वे लोग बैठे थे जिन्होंने आजादी के लिए अंग्रेजों से लड़ना तो दूर की बात, अंग्रेजों की मुखबिरी तक की थी | गोविंद चरण ताड़ गए कि यह मौका परस्त लोग आजादी मिलते ही राजनीतिक पार्टियों में शामिल हो गए  हैं और बेख़ौफ़ आजादी की मलाई चाट रहे हैं | यह देख वे दुख से भर गए और वहां से अश्रुपूरित आंखें लिए चले गए | 

न जाने कितने गोविन्द दुखी रहे होंगे आजाद भारत में ? एक विचारणीय मुद्दा !

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