महाराज विक्रमादित्य के नौ रत्न !

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भला शकारि विक्रमादित्य को कौन नहीं जानता ? भारत में उनके द्वारा प्रचलित संवत को विक्रम संवत के रूप में सब जानते मानते हैं ...




भला शकारि विक्रमादित्य को कौन नहीं जानता ? भारत में उनके द्वारा प्रचलित संवत को विक्रम संवत के रूप में सब जानते मानते हैं | वे जीतने पराक्रमी व प्रतापी थे, उतने ही गुणग्राही व आज की भाषा में कहें तो प्रजातांत्रिक भी | महाराजा विक्रमादित्य की राजसभा में होने वाले निर्णय अकेले उनके नहीं, वरन राज दरबार के आधार स्तम्भ नौ रत्नों द्वारा संयुक्त रूप से होते थे | 

राजा विक्रमादित्य की राजसभा में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित सम्मिलित थे जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था चलिए जानते हैं वो कौन थे :-

*1.धन्वन्तरि* - ज्योतिष कुंडली की भविष्यवाणी में इन्हें बहुत ही महान आयुर्वेद का राजवैद्य बताया गया था इसलिए इनके माता पिता ने इनका नाम भगवान धन्वंतरि के नाम पर रखा था। महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में इनका प्रमुख स्थान गिनाया गया है इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।

*2. क्षपणक* - जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है ये संन्यासी थे इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

*3.अमर सिंह* - ये प्रकाण्ड विद्वान थे बोध-गया के वर्तमान बदले गए बुद्ध मन्दिर से प्राप्त एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता कहा गया है अर्थात यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान पण्डित बन जाता है।

*4.शंकु* - इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान माना गया है।

*5. वेताल भट्ट* - विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

*6. घटखर्पर* - जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।

*7.कालिदास* - ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राण प्रिय कवि थे उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी ईसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया जो भी हो कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।

*8. वराहमिहिर* - भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है इनमें -‘बृहज्जातक‘ , सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

*9 वररुचि* - कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं। इनके नाम पर मतभेद है क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से - पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार -वररुचि कात्यायन,प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि,सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुचि हुए हैं।

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