25 दिसंबर का न तो यीशु से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से । - संजय तिवारी

SHARE:

कितने आश्चर्य की बात है कि भारत में कुछ अति बुद्धिजीवी राम के अस्तित्व पर सवाल करते हैं तो बहुत से लोग उसे मान भी लेते हैं, यहां तक ...



कितने आश्चर्य की बात है कि भारत में कुछ अति बुद्धिजीवी राम के अस्तित्व पर सवाल करते हैं तो बहुत से लोग उसे मान भी लेते हैं, यहां तक कि इस देश पर शासन करने वाले कुछ राजनीतिक दल भी । किन्तु 25 दिसंबर ईसा का जन्मदिन कैसे माना जाता है, इस पर कोई चर्चा भी नहीं होती। 

सच्चाई यह है कि 25 दिसम्बर का ईसा मसीह के जन्मदिन से कोई सम्बन्ध ही नहीं है । जीसस के जन्म का वार, तिथि, मास, वर्ष, समय तथा स्थान, सभी बातें अज्ञात है। इसका बाईबल में भी कोई उल्लेख नहीं है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म 7 ई.पू. से 2 ई.पू. के बीच 4 ई.पू. में हुआ था । विलियम ड्यूरेंट ने यीशु मसीह का जन्म वर्ष ईसापूर्व चौथा वर्ष लिखा है । यह कितनी असंगत बात है? भला ईसा का ही जन्म ईसा पूर्व में कैसे हो सकता है? कालगणना अगर यीशु मसीह के जन्म से शुरू होती है, तो यीशु मसीह का जन्म 4 ई.पू. में कैसे हुआ? 

एक और असंगति देखें । ईसा का जन्म 25 दिसम्बर को मनाया जाता है और नववर्ष का दिन होता है एक जनवरी । तो क्या ईसा का जन्म ईसवीं सन से एक सप्ताह पहले हुआ ? और यदि हुआ तो उसी दिन से वर्ष गणना शुरू क्यों नहीं की गई ? 

हाल ही में बीबीसी में भी एक रिपोर्ट छपी थी, जिसके अनुसार भी यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर एकराय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। अगर गड़रिये मैथुनकाल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता। मगर बाईबल में यीशु मसीह के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। 

एक संभावना यह भी - 

लंका विजय के बाद राम ने धरती पर जो राज्य स्थापित किया वह सूर्यवंशीय था। कृष्ण द्वारा सभ्यता की विकृतियों को खत्म करने के लिए की गई महाक्रांति के बाद सूर्योपासक पांडव शासन में भी सूर्य उपासना चली। महाभारत के बाद युद्ध में पराजित होकर भारत से निष्कासित हुए लोग, धरती के अलग अलग खंडों में जाकर बसते गए । वे लोग जहाँ भी रहे सूर्योपासक ही रहे । वे लोग संक्रांति यानी सूर्य के ऊत्तरायन होने की तिथि को भी मनाते रहे, जैसे आज 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है। 

एक और विज्ञान सम्मत प्रामाणिक तथ्य है कि पूर्व में 25 दिसम्बर को ‘मकर संक्रांति' (शीतकालीन संक्रांति) पर्व मनाया जाता था और यूरोप-अमेरिका आदि देश भी धूमधाम से इस दिन सूर्य उपासना करते थे । सूर्य और पृथ्वी की गति के कारण मकर संक्रांति लगभग 80 वर्षों में एक दिन आगे खिसक जाती है। सायनगणना के अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य उत्तरायण की ओर व 22 जून को दक्षिणायन की ओर गति करता है । सायनगणना ही प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है । जिसके अनुसार 22 दिसंबर को सूर्य क्षितिज वृत्त में अपने दक्षिण जाने की सीमा समाप्त करके उत्तर की ओर बढ़ना आरंभ करता है । यूरोप शीतोष्ण कटिबंध में आता है इसलिए यहां सर्दी बहुत पड़ती है। जब सूर्य उत्तर की ओर चलता है, यूरोप उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है तो यहां से सर्दी कम होने की शुरुआत होती है, इसलिए 25 दिसंबर को मकर संक्रांति मनाते थे। अब यहां प्रश्न आता है कि यह तिथि यीशु का जन्मदिन कैसे हो गई। 

विश्व-कोष में दी गई जानकारी के अनुसार सूर्य-पूजा को समाप्त करने के उद्देश्य से क्रिसमस डे का प्रारम्भ किया गया । सबसे पहले 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस का त्यौहार ईसाई रोमन सम्राट (First Christian Roman Emperor) के समय में 336 ईसवी में मनाया गया था। इसके कुछ साल बाद पोप जूलियस (Pop Julius) ने 25 दिसंबर को ईसा मसीह के जन्म दिवस के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया, तब से दुनियाभर में 25 दिसंबर को क्रिसमस का त्यौहार मनाया जाता है। 

अब भारत और यीसू की बात करें – 

बाईबल में भी जिक्र नहीं है कि यीशु मसीह 13 साल से 29 साल की उम्र के बीच कहाँ रहे? 

पश्चिम के ही कई लोगों का मानना है कि यीशु ने भारत के कश्मीर में 17 साल तक ऋषि मुनियों के सान्निध्य में योग साधना की। बाद में वे रोम देश में गये तो वहाँ उनके स्वागत में पूरा रोम शहर सजाया गया और मेग्डलेन नाम की प्रसिद्ध वेश्या ने उनके पैरों को इत्र से धोया और अपने रेशमी लंबे बालों से यीशु के पैर पोछे थे । लेकिन कितनी विचित्र बात है कि उनके स्वागत में पलक पांवड़े बिछाने वाला रोम शहर ही उनके इतने खिलाफ हो गया कि उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया। कहा जाता है कि उस समय पूरे रोम शहर में केवल 6 व्यक्ति ही उनके सूली पर चढ़ने से दुःखी थे । 

एक शोध के अनुसार यीशु ने अपनी शिष्या मेरी मेग्दलीन से विवाह किया था, जिनसे उनको दो बच्चे भी हुए थे। ब्रिटिश दैनिक 'द इंडिपेंडेंट में प्रकाशित रिपोर्ट में 'द संडे टाइम्स' के हवाले से बताया गया है कि ब्रिटिश लाइब्रेरी में 1500 साल पुराना एक दस्तावेज मिला है, जिसमें एक दावा किया गया है कि ईसा मसीह ने ना सिर्फ मेरी से शादी की थी बल्कि उनके दो बच्चे भी थे। 

साहित्यकार और वकील लुईस जेकोलियत (Louis Jacolliot) ने 1869 ई. में अपनी एक पुस्तक 'द बाइबिल इन इंडिया' (The Bible in India, or the Life of Jezeus Christna) में कृष्ण और क्राइस्ट पर एक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। 'जीसस' शब्द के विषय में लुईस ने कहा है कि क्राइस्ट को 'जीसस' नाम भी उनके अनुयायियों ने दिया है। इसका संस्कृत में अर्थ होता है 'मूल तत्व'। 

इन्होंने अपनी पुस्तक में यह भी कहा है कि 'क्राइस्ट' शब्द कृष्ण का ही रूपांतरण है, हालांकि उन्होंने कृष्ण की जगह 'क्रिसना' शब्द का इस्तेमाल किया। भारत में गांवों में कृष्ण को क्रिसना ही कहा जाता है। यह क्रिसना ही यूरोप में क्राइस्ट और ख्रिस्तान हो गया। बाद में यही क्रिश्चियन हो गया। लुईस के अनुसार ईसा मसीह अपने भारत भ्रमण के दौरान भगवान जगन्नाथ के मंदिर में रुके थे। एक रूसी अन्वेषक निकोलस नोतोविच ने भारत में कुछ वर्ष रहकर प्राचीन हेमिस बौद्ध आश्रम में रखी पुस्तक 'द लाइफ ऑफ संत ईसा' पर आधारित फ्रेंच भाषा में 'द अननोन लाइफ ऑफ जीजस क्राइस्ट' नामक पुस्तक लिखी है। इसमें ईसा मसीह के भारत भ्रमण के बारे में बहुत कुछ लिखा हुआ है। 

मॉनेस्ट्री के एक अनुभवी लामा ने एक न्यूज एजेंसी को बताया था कि ईसा मसीह ने भारत में बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी और वह बुद्ध के विचार और नियमों से बहुत प्रभावित थे। यह भी कहा जाता है कि जीसस ने कई पवित्र शहरों जैसे जगन्नाथ, राजगृह और बनारस में बौद्ध धर्म का प्रचार करना और लोगों को उसकी दीक्षा देना शुरू कर दिया, इसकी वजह से ब्राह्मण नाराज हो गए और उन्हें वहां से जाना पड़ा। इसके बाद जीसस ने हिमालयजाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा देना जारी रखा। जर्मन विद्वान होल्गर केर्सटन ने जीसस के शुरुआती जीवन के बारे में लिखा था और दावा किया था कि जीसस सिंध प्रांत में आर्यों के साथ जाकर बस गए थे। 

"फिफ्त गॉस्पल" फिदा हसनैन और देहन लैबी द्वारा लिखी गई एक किताब है जिसका जिक्र अमृता प्रीतम ने अपनी किताब 'अक्षरों की रासलीला' में विस्तार से किया है। ये किताब जीसस की जिन्दगी के उन पहलुओं की खोज करती है जिसको ईसाई जगत मानने से इन्कार कर सकता है। जैसे मसलन कुँवारी माँ से जन्म और मृत्यु के बाद पुनर्जीवित हो जाने वाले चमत्कारी मसले। किताब का भी यही मानना है कि 13 से 29 वर्ष की उम्र तक ईसा भारत भ्रमण करते रहे। 

बीबीसी ने “Jesus Was A Buddhist Monk” नाम से एक डॉक्युमेंट्री बनाई थी जिसमें बताया गया था कि यीशु मसीह को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था। जब वह 30 वर्ष के थे तो वह अपनी पसंदीदा जगह वापस चले गए थे। डॉक्युमेंट्री के मुताबिक यीशु मसीह की मौत नहीं हुई थी और वह यहूदियों के साथ अफगानिस्तान चले गए थे। रिपोर्ट के मुताबिक स्थानीय लोगों ने इस बात की पुष्टि की कि यीशु मसीह ने कश्मीर घाटी में कई वर्ष व्यतीत किए थे और 80 की उम्र तक वहीं रहे। अगर यीशु मसीह ने 16 वर्ष किशोरावस्था में और जिंदगी के आखिरी 45 साल भारत में व्यतीत किए तो इस हिसाब से वह भारत, तिब्बत और आस-पास के इलाकों में करीब 61 साल रहे। कई स्थानीय लोगों का मानना है कि कश्मीर के श्रीनगर में रोजा बल श्राइन में जीसस की समाधि बनी हुई है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर यह मजार एक मध्यकालीन मुस्लिम उपदेशक यूजा आसफ का मकबरा है। अगर इस बात को सत्य माना जाए तो इसका मतलब है कि यीशु मसीह को कील ठोककर क्रॉस पर लटकाना आदि बातें झूठ है। ईसाई मिशनरियां इसी बात को बोलकर यीशु मसीह को भगवान का बेटा बताती है। इसका मतलब ईसाई मिशनरियां केवल धर्मांतरण के लिए ये सफेद झूठ बोलती है। 

यदि यीशु मसीह ने धार्मिक प्रवचन करते अपना जीवन बिताया होता तो उसके प्रवचनों की कोई बड़ी पुस्तक जरूर होती या कम से कम बाइबिल में ही उसके प्रवचन होते । पर बाईबल में तो उनके किसी प्रवचन का जिक्र ही नहीं है? अब प्रश्न ये है कि वे सारे भाषण कहाँ हैं? इसका उत्तर आज तक किसी के पास नहीं है। 

कुल मिलाकर 25 दिसंबर का न तो यीशु से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से । 

सांता क्‍लॉज भी इशु की मौत के 280 साल बाद मायरा में जन्मे संत निकोलस का ही रूपान्तर है । बिशप निकोलस के पिता एक बहुत बड़े व्यापारी थे, जिन्होंने निकोलस को हमेशा दूसरों के प्रति दयाभाव और जरूरतमंदों की सहायता करने के लिए प्रेरित किया। निकोलस पर इन सब बातों का इतना असर हुआ कि वह हर समय जरूरतमंदों की सहायता करने को तैयार रहता। बच्चों से उन्हें खास लगाव रहा। अपनी दौलत में से बच्चों के लिए वह खूब सारे खिलौने खरीदते और आधी रात के समय खिड़कियों से उनके घरों में फेंक देते, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि कोई उन्हें जाने । किन्तु दुर्भाग्य से संत निकोलस की लोकप्रियता से नाराज लोगों ने 6 दिसंबर के दिन ही उनकी हत्या करवा दी। संत निकोलस की याद में कुछ जगहों पर हर साल 6 दिसंबर को 'संत निकोलस दिवस' आज भी मनाया जाता है। धर्म के व्यापार ने कब छः दिसम्बर को 25 दिसंबर से जोड़कर संत निकोलस को सैंटा बना दिया, यह शोध का विषय है ।

COMMENTS

नाम

अखबारों की कतरन,40,अपराध,3,अशोकनगर,24,आंतरिक सुरक्षा,15,इतिहास,158,उत्तराखंड,4,ओशोवाणी,16,कहानियां,40,काव्य सुधा,64,खाना खजाना,21,खेल,19,गुना,3,ग्वालियर,1,चिकटे जी,25,चिकटे जी काव्य रूपांतर,5,जनसंपर्क विभाग म.प्र.,6,तकनीक,85,दतिया,2,दुनिया रंगविरंगी,32,देश,162,धर्म और अध्यात्म,244,पर्यटन,15,पुस्तक सार,59,प्रेरक प्रसंग,80,फिल्मी दुनिया,10,बीजेपी,38,बुरा न मानो होली है,2,भगत सिंह,5,भारत संस्कृति न्यास,30,भोपाल,26,मध्यप्रदेश,504,मनुस्मृति,14,मनोरंजन,53,महापुरुष जीवन गाथा,130,मेरा भारत महान,308,मेरी राम कहानी,23,राजनीति,89,राजीव जी दीक्षित,18,राष्ट्रनीति,51,लेख,1125,विज्ञापन,4,विडियो,24,विदेश,47,विवेकानंद साहित्य,10,वीडियो,1,वैदिक ज्ञान,70,व्यंग,7,व्यक्ति परिचय,29,व्यापार,1,शिवपुरी,889,शिवपुरी समाचार,309,संघगाथा,57,संस्मरण,37,समाचार,1050,समाचार समीक्षा,762,साक्षात्कार,8,सोशल मीडिया,3,स्वास्थ्य,26,हमारा यूट्यूब चैनल,10,election 2019,24,shivpuri,2,
ltr
item
क्रांतिदूत : 25 दिसंबर का न तो यीशु से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से । - संजय तिवारी
25 दिसंबर का न तो यीशु से कोई लेना देना है और न ही संता क्‍लॉज से । - संजय तिवारी
https://1.bp.blogspot.com/-0kZFIaI556U/XgHYCcvu7jI/AAAAAAAAJAg/6QorDta7ni4Lioo0rwGp9_vdtG6XHIfDwCLcBGAsYHQ/s1600/sanjay%2Btiwaaree.jpg
https://1.bp.blogspot.com/-0kZFIaI556U/XgHYCcvu7jI/AAAAAAAAJAg/6QorDta7ni4Lioo0rwGp9_vdtG6XHIfDwCLcBGAsYHQ/s72-c/sanjay%2Btiwaaree.jpg
क्रांतिदूत
https://www.krantidoot.in/2019/12/December-25-has-nothing-to-do-with-Jesus-nor-Santa-Claus-Sanjay-Tiwari.html
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/
https://www.krantidoot.in/2019/12/December-25-has-nothing-to-do-with-Jesus-nor-Santa-Claus-Sanjay-Tiwari.html
true
8510248389967890617
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy