आग मत लगाइए, यह 1947 का भारत नही है - संजय तिवारी

विपक्ष यह नही समझ पा रहा है कि यह भारत वह नही है जो 1947 में था। नागरिकता कानून को आपके कहने भर से देश काला कानून नही मान लेगा। आप जिस तरह अपनी राजनीति को जे पी आंदोलन की तरह बनाने की जुगत में है वह संभव नहीं। क्योंकि आप की जमात के परिसर भी अब बहुत कुछ समझ चुके हैं। आपने छात्रों की शक्ति का जितना दोहन किया है उसका मूल्यांकन कीजिये। छात्र समुदाय को आपने खुद ही जातियों, पंथों, आरक्षित, अनारक्षित, एस सी, एस टी, ओबीसी आदि न जाने कितने खंडों में पहले ही बांट रखा है। अब देश बांटने के लिए अगर फिर छात्र शक्ति की आपको आवश्यकता है तो वह तो मिलने से रही । आपने भारत की संसद द्वारा बनाये गए कानून के विरोध में कुछ करने की योजना शुरू की है लेकिन रंग देना चाह रहे हैं छात्र आंदोलन का । अब वर्तमान भारत मे यह असंभव है। हो सकता है आपकी मुहिम में कुछ छात्र शामिल भी हों लेकिन वे उतने नही हो सकते जितने से आप सिंहासन की तरफ बढ़ सकें।

यह तो सभी जानते हैं, की हर विश्वविद्यालय में विपक्षी दलों के छात्र संगठन भी हैं, जो मोदी सरकार के विरुद्ध हैं।इन संगठनों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन का निर्णय लिया, जिसका उन्हे अधिकार है। लेकिन, उनके आंदोलन में सुनियोजित तरीके से असामाजिक तत्वों को शामिल कराया गया, जिन्होंने हिंसा की। अब चूंकि प्रदर्शन छात्रों का था, इसलिए बदनाम हुए और रोटियाँ राजनीतिक दलों ने सेकी।वैसे छात्रों में भी सब दूध के धुले नही होते, हम छात्र हैं इसलिए इतना तो जानते ही हैं। कुछ उपद्रवी छात्रों ने भी दंगाइयों का साथ दिया, उन्हें विश्वविद्यालय के अंदर लेकर आए इसमें कोई संदेह नहीं।

आइये पहले जामिया पर ही बात करते हैं। यहां पुलिस को जाने की जरूरत क्यों पड़ी। क्या पुलिस वास्तव में दोषी है। मेरी नजर में नहीं। क्योकि पुलिस ने पहले प्यार से समझाया था। छात्रों को बताया गया था, कि दंगाई तत्व विवि. में प्रवेश कर चुके हैं, जो पत्थरबाजी कर रहे हैं। छात्रों के प्रतिनिधियों से बात करने की इच्छा भी पुलिस ने जताई थी। दंगाई विवि. और छात्रों को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए पुलिस मजबूरन अंदर घुसी। असल छात्रों के साथ क्या हुआ, उसके कई वर्जन हैं सच्चाई कोई नही जानता, इसलिए इसपर कुछ भी बोलना उचित नहीं।लेकिन, यह भी सही है जौ के साथ घुन पिसता ही है। सम्भव है कुछ निर्दोष छात्र भी घायल हुए हों, मैं इनकार नही करता।अफवाह यह फैलाई गई, की छात्र मरे हैं, उनपर गोलियाँ चली हैं, जो बिल्कुल गलत साबित हुआ।यह भी भ्रान्ति फैलाई गई, की पुलिस बिना VC की अनुमति के विवि. में नही घुस सकती।जबकि, CRPC की धारा 46 और 47 में स्पष्ट लिखा है, की विपरीत परिस्थितियों में पुलिस हिंसा से निपटने हेतु भारत मे कहीं भी कार्रवाई कर सकती है। जब सचाई सामने आई तो खुद कुलपति ने स्वीकार किया कि सात सौ से अधिक छात्रों के परिचय पत्र अवैध हैं। ये अवैध लोग एक दिन में तो विश्वविद्यालय में आये नही, फिर ये कौन लोग हैं ?

अब बात करते हैं देश मे हो रहे बवाल पर। यह बवाल कौन और किस बात के लिए करा रहा है। जिस कानून को लेकर विरोध की बात कही जा रही है उसमें तो भारत के किसी धर्म, मजहब, पंथ के नागरिक की नागरिकता के बारे में कुछ भी नही कहा गया है। यहां बात बाहर से आने वालों को नागरिकता देने की हो रही है, किसी नागरिक की नागरिकता लेने की नही। लेकिन जिस तरह के पर्चे बांट कर अफवाह फैला कर यह सब किया जा रहा है वह स्पष्ट संकेत दे रहा है कि भारत विरोधी ये लोग कौन हैं और क्या करना चाह रहे हैं। उत्तर प्रदेश में रातोरात बांटे गए पर्चो की प्रति इस पोस्ट के साथ दे रहा हूँ। इससे पहले यह जान लेते हैं कि कानून है क्या। इसको सेना के एक अधिकारी ने बड़े सलीके से समझाया है।

1. CAA क्या है??

√ यह एक कानून है, जिसके तहत 31 दिसम्बर 2014 से पहले से(या उस दिन तक) भारत मे रह रहे पाकिस्तानी, बंगलादेशी एवं अफगान शरणार्थी (हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई, पारसी, बौद्ध) भारत की नागरिकता पा सकेंगे (धार्मिक प्रताड़ना के आधार पर)..
उन्हें नागरिकता अधिनियम 1955 (संशोधित 1986) के प्रावधानों में जाना नही होगा।

2. मुस्लिम क्यों शामिल नहीं??

√ क्योंकि उपरोक्त तीनों देश मुस्लिम राष्ट्र हैं जहाँ मुस्लिम बहुलता है। अतः वहाँ सिर्फ बाकी अल्पसंख्यक धर्मों के लोगों को ही आस्था के आधार पर प्रताड़ित किया गया है।
यह भी समझना जरूरी है, की यदि मुस्लिमों को भी शामिल किया और डेडलाइन नही रहा, तब तो समस्त पाकिस्तानी, बंगलादेशी और अफगान नागरिक भारत मे आ जाएंगे। क्या हम यह झेल पाएंगे???

3. क्या भारतीय नागरिकों को परेशानी होगी या मुस्लिमों को चिंता की जरूरत है???

√ बिल्कुल नहीं, क्योंकि किसी की नागरिकता छीनी नही जा रही। जो भी भारतीय नागरिक हैं (किसी भी धर्म के) वो भारतीय थे, हैं और रहेंगे।

4. अभी ही क्यों लाया गया, जब देश की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में है, अन्य समस्याएं हैं??

√ यह विधेयक 2015 में भी लाया गया था, लेकिन राज्यसभा से पारित नही हो सका था। यह कानून BJP के घोषणापत्र में बहुत पहले से है, जैसे 370 या राम मंदिर। कोई ऐसा संसद सत्र नही जिसके आगे पीछे देश मे चुनाव न हो। अतः टाइमिंग या मंशा पर सवाल उठाना जायज नहीं।


5. NRC क्या है??

√ यह एक नागरिकता पंजीकरण रजिस्टर है, जिसका उद्देश्य घुसपैठियों (जो बिना किसी दस्तावेज के विभिन्न पड़ोसी देशों से भागकर भारत आ गए हैं तथा जिन्हें SC भी देश की सुरक्षा के लिए खतरा मानता है) कि पहचान करना है।
यह 1985 के असम एकॉर्ड में राजीव गांधी के द्वारा असम गण परिषद और वहाँ के छात्र संगठन को किया गया वादा था। जब इसे पूरा नही किया गया और मामला SC पहुंचा, तब SC की निगरानी में सरकार के संसाधनों से इसकी प्रक्रिया शुरू हुई।

6. क्या NRC गलत है या इससे कोई नुकसान है?

√ पहली बात तो यह, की NRC फिलहाल सिर्फ असम में लागू है। हाँ, कुछ विसंगतियां हैं, लेकिन जिनका नाम NRC से बाहर है उन्हें मौका दिया भी जा रहा है। गलतियों को सुधारा जा रहा है और अंतिम रूप में आने तक हमें इंतजार करना चाहिए।

7. क्या NRC से किसी भारतीय को घबराने की जरूरत है, क्या चिंता का विषय है??

√ अभी तक NRC पूरे देश मे कराने की सिर्फ घोषणा की गई है। अभी कोई तिथि, प्रक्रिया, डेडलाइन या कुछ भी निर्धारित नहीं, फिर चिंता की कोई बात ही नहीं।
हम भारत के नागरिक हैं, हमारे पास उपयुक्त दस्तावेज हैं, न्यायिक प्रक्रिया है, हमने सरकार को चुना है, सरकार हमारे लिए है, फिर डर किस बात का।

8. NRC का विरोध क्यों??

√ यह पूर्णतया राजनीतिक है, क्योंकि घुसपैठियों का प्रयोग फर्जी मतदान, रैलियों की भीड़, हिंसा, आपराधिक कृत्यों में राजनीतिक दल करते रहे हैं। यदि उन्हें पहचान कर भगा दिया गया, तो कई दलों का राजनीतिक भविष्य खतरे में होगा।
लेकिन, देश की सुरक्षा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है अतः घुसपैठियों की पहचान जरूरी है।

9. मुस्लिम समुदाय क्यों विरोध कर रहे हैं??

√ क्योंकि अधिकतर घुसपैठिये मुस्लिम समुदाय से हैं, जिन्हें राजनीतिक रूप से पताड़ना झेलनी पड़ी है।
क्योंकि भारतीय मुस्लिम समुदाय को (सिर्फ कुछ लोगों को) धर्म के नाम पर भड़काया जा रहा है राजनीति के लिए।

10. NRC और CAB को जोड़कर क्यों देखा जा रहा है??

√ क्योंकि अधिकतर लोग "शरणार्थी" और "घुसपैठियों" में महीन अंतर नही समझ पा रहे हैं, इसी का लाभ उठाया जा रहा है।
लोगों में अफवाह फैलाई जा रही है कि जो NRC से बाहर होंगे, उनमें मुस्लिमों को छोड़कर अन्य धर्मों को CAB के जरिये नागरिकता दे दी जाएगी। मुस्लिमों को बाहर कर दिया जाएगा।

यह बिल्कुल अफवाह है, भरोसा न करें। NRC और CAB बिल्कुल अलग हैं। 

उदाहरण- अधिकतर घुसपैठिये म्यांमार के रोहिंग्या हैं, जबकि CAB में म्यांमार तो है ही नहीं।

फिर दोनों को आपस मे कैसे जोड़ सकते हैं?

मुझे यकीन है कि मैं जो कहना चाह रहा हूँ, उससे हमारे पाठक सहमत होंगे। भारत का वर्तमान विपक्ष जो कर रहा है , वह स्वयं भुगतेगा लेकिन सामान्य भारतीय सतर्क है और संयमित भी। यदि भारतीय समुदाय संयम से नही होता और इन उपद्रवी लोगो की ही तरह सड़क पर उतर जाता तो हालात कुछ और ही होते।

यहां भारत सरकार के संयम की भी तारीफ करनी होगी। अभी तक इस पूरे उपद्रव को नियंत्रित करने के लिए कही भी किसी केंद्रीय बल या सेना का इस्तेमाल नही किया गया । अभी सब कुछ केवल राज्यों की पुलिस कर रही है। यह ध्यान देने वाली बात है क्योंकि इससे पहले कुछ भी होता था तो सरकारें पुलिस पर भरोसा न करते हुए तत्काल सेना या केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात कर देती थीं। इस बार ऐसा अभी तक नही हुआ है। जाहिर है कि इस बार विपक्ष के सभी दांव दिशाहीन हो रहे हैं। जिसमे भी बिखरे विपक्ष के क्षत्रप अपनी अपनी रोटी सेंकने में जुटे हैं। मुस्लिम वोट लक्ष्य है।

संजय तिवारी
संस्थापक - भारत संस्कृति न्यास
वरिष्ठ पत्रकार
 

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