अब आंदोलन जिहाद - संजय तिवारी

अब आंदोलन जिहाद के जरिये भारत की सम्प्रभुता पर हमला। ये किस बात के लिए आंदोलनरत हैं , यह सवाल कोई नहीं पूछ रहा। जिन बच्चों और महिलाओं को इस आंदोलन का हिस्सा बना कर अवैध सहानुभूति लेने की कोशिश है उन महिलाओं और बच्चों से पूछिए तो सही ,उनके पास जवाब नहीं। ये भारत की संसद के क़ानून को नहीं मानेंगे. ये भारत की सुप्रीम कोर्ट को नहीं मानेंगे। ये भारत के प्रधान मंत्री और गृह मंत्री की बात नहीं मानेंगे। संविधान की दुहाई जरूर देंगे लेकिन संविधान के एक एक ढाँचे को तार तार करने से बाज नहीं आएंगे। शाहीन बाग़ में कुछ भी नया नहीं है। यही फितरत रही है, रहेगी भी। ये राशन कार्ड और आधार कार्ड दौड़ कर बनवाएंगे लेकिन नागरिकता कार्ड बनवाने से इनको बहुत डर लगता है। भारत में ही दलाली कर खुद को राष्ट्रीय पत्रकारिता का अलम्बरदार बने कुछ भांड चैनलों और अंग्रेजी अखबारों को अभी भी यह भ्रम है कि भारत का भविष्य वे ही तय करेंगे और उन्हें हर कहीं शाहीन बाग़ पैदा करने की कला आती है तो अबकी उन भांडों का भी भ्रम टूट जाएगा।आखिर राष्ट्र द्रोह की इस गतिविधि को हवा कौन दे रहा ? रातोरात इनके लिए करोडो के बैनर पोस्टर छाप कर कौन पहुंचा रहा ? पैकेटबंद बिरयानी कहाँ से आ रही ? वस्तुतः यह जंग है जो भारत के खिलाफ है। इसमें जितने भीतरी आक्रांता हैं उनसे बड़ी संख्या बाहर की भी है। ईसाईयों और यहूदियों के बाद संवेदनशील हिंदुत्व इनके निशाने पर है। 

इनसे पूछिए कि जेहाद में मरने वाले तुम्हारे पुरुष को यदि 72 हूरें मिलने वाली हैं तो यह तो बताओ कि जो महिला जेहाद में मरेगी उसको क्या मिलने वाला है? आखिर ये लोग भारतीय हो भी पाएंगे कभी ?अगर सामान्य भारतीयों को लगता है कि इनको अनदेखा कर अपना काम करने में ही भलाई है तो यह भी किसी बहुत बड़ी मूर्खता से कम नहीं है। ये तो निकल रहे हैं , निकलना तो तुम्हे भी पड़ेगा। इस जमात के बहुत बड़े दानेश्वर है एक मुनव्वर राणा। लखनऊ में रहते हैं। कांग्रेस के बड़े दलाल हैं। आजकल लिख रहे हैं कि औरंगजेब भी मोदी से अच्छा था। इस मुनव्वर राणा को कौन बताएगा कि तुम्हारे उस औरंगजेब के आदर्श कैसे थे राणा ? वही न कि हिन्दुओं के सर कटवा कर उनके पिरामिड बनवाता था और जिस मुसलमान के पास जितना बड़ा पिरामिड था उतना बड़ा राज्य उसे मिल जाता था। काश इस राणा को शर्म भी आती कि मुशायरों के धन से नहीं कविसम्मेलनों की ताकत ने इसको शायर बना दिया वरना यह भी कहीं भैसे की बिरयानी बेच रहा होता। ये लोग कितने बड़े भारत द्रोही हैं इसके बारे में बहुत कहने की जरुरत नहीं है। इनके ईलाज के लिए एक कहानी सुनाता हूँ। इतिहास की सच्ची घटना है जिसे भारत द्रोही इरफ़ान हबीब और रोमिला थापरों ने कभी नहीं लिखा।

सन 711ई. की बात है। अरब के पहले मुस्लिम आक्रमणकारी मुहम्मद बिन कासिम के आतंकवादियों ने मुल्तान विजय के बाद एक विशेष सम्प्रदाय हिन्दू के ऊपर गांवो शहरों में भीषण रक्तपात मचाया था। हजारों स्त्रियों की छातियाँ नोच डाली गयीं, इस कारण अपनी लाज बचाने के लिए हजारों सनातनी किशोरियां अपनी शील की रक्षा के लिए कुंए तालाब में डूब मरीं।लगभग सभी युवाओं को या तो मार डाला गया या गुलाम बना लिया गया। भारतीय सैनिकों ने ऎसी बर्बरता पहली बार देखी थी।

एक बालक तक्षक के पिता कासिम की सेना के साथ हुए युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। लुटेरी अरब सेना जब तक्षक के गांव में पहुची तो हाहाकार मच गया। स्त्रियों को घरों से खींच खींच कर उनकी देह लूटी जाने लगी।भय से आक्रांत तक्षक के घर में भी सब चिल्ला उठे। तक्षक और उसकी दो बहनें भय से कांप उठी थीं। तक्षक की माँ पूरी परिस्थिति समझ चुकी थी, उसने कुछ देर तक अपने बच्चों को देखा और जैसे एक निर्णय पर पहुच गयी। माँ ने अपने तीनों बच्चों को खींच कर छाती में चिपका लिया और रो पड़ी। फिर देखते देखते उस क्षत्राणी ने म्यान से तलवार खीचा और अपनी दोनों बेटियों का सर काट डाला।उसके बाद अरबों द्वारा उनकी काटी जा रही गाय की तरफ और बेटे की ओर अंतिम दृष्टि डाली, और तलवार को अपनी छाती में उतार लिया।

आठ वर्ष का बालक तक्षक एकाएक समय को पढ़ना सीख गया था, उसने भूमि पर पड़ी मृत माँ के आँचल से अंतिम बार अपनी आँखे पोंछी, और घर के पिछले द्वार से निकल कर खेतों से होकर जंगल में भाग गया।

25 वर्ष बीत गए। अब वह बालक बत्तीस वर्ष का पुरुष हो कर कन्नौज के प्रतापी शासक नागभट्ट द्वितीय का मुख्य अंगरक्षक था। वर्षों से किसी ने उसके चेहरे पर भावना का कोई चिन्ह नही देखा था। वह न कभी खुश होता था न कभी दुखी। उसकी आँखे सदैव प्रतिशोध की वजह से अंगारे की तरह लाल रहती थीं। उसके पराक्रम के किस्से पूरी सेना में सुने सुनाये जाते थे। अपनी तलवार के एक वार से हाथी को मार डालने वाला तक्षक सैनिकों के लिए आदर्श था। कन्नौज नरेश नागभट्ट अपने अतुल्य पराक्रम से अरबों के सफल प्रतिरोध के लिए ख्यात थे। सिंध पर शासन कर रहे अरब कई बार कन्नौज पर आक्रमण कर चुके थे,पर हर बार योद्धा राजपूत उन्हें खदेड़ देते। युद्ध के सनातन नियमों का पालन करते नागभट्ट कभी उनका पीछा नहीं करते, जिसके कारण मुस्लिम शासक आदत से मजबूर बार बार मजबूत हो कर पुनः आक्रमण करते थे। ऐसा पंद्रह वर्षों से हो रहा था। इस बार फिर से सभा बैठी थी, अरब के खलीफा से सहयोग ले कर सिंध की विशाल सेना कन्नौज पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर चुकी है और संभवत: दो से तीन दिन के अंदर यह सेना कन्नौज की सीमा पर होगी। इसी सम्बंध में रणनीति बनाने के लिए महाराज नागभट्ट ने यह सभा बैठाई थी। सारे सेनाध्यक्ष अपनी अपनी राय दे रहे थे...तभी अंगरक्षक तक्षक उठ खड़ा हुआ और बोला---

महाराज, हमे इस बार दुश्मन को उसी की शैली में उत्तर देना होगा।

महाराज ने ध्यान से देखा अपने इस अंगरक्षक की ओर, बोले- "अपनी बात खुल कर कहो तक्षक, हम कुछ समझ नही पा रहे।"

"महाराज, अरब सैनिक महाबर्बर हैं, उनके साथ सनातन नियमों के अनुरूप युद्ध कर के हम अपनी प्रजा के साथ घात ही करेंगे। उनको उन्ही की शैली में हराना होगा।"

महाराज के माथे पर लकीरें उभर आयीं, बोले- 

"किन्तु हम धर्म और मर्यादा नही छोड़ सकते सैनिक। "

तक्षक ने कहा- 

"मर्यादा का निर्वाह उसके साथ किया जाता है जो मर्यादा का अर्थ समझते हों। ये बर्बर धर्मोन्मत्त राक्षस हैं महाराज। इनके लिए हत्या और बलात्कार ही धर्म है।"

"पर यह हमारा धर्म नही हैं बीर" 

"राजा का केवल एक ही धर्म होता है महाराज, और वह है प्रजा की रक्षा। देवल और मुल्तान का युद्ध याद करें महाराज, जब कासिम की सेना ने दाहिर को पराजित करने के पश्चात प्रजा पर कितना अत्याचार किया था। ईश्वर न करे, यदि हम पराजित हुए तो बर्बर अत्याचारी अरब हमारी स्त्रियों, बच्चों और निरीह प्रजा के साथ कैसा व्यवहार करेंगे, यह आप भली भाँति जानते हैं।"

महाराज ने एक बार पूरी सभा की ओर निहारा, सबका मौन तक्षक के तर्कों से सहमत दिख रहा था। महाराज अपने मुख्य सेनापतियों मंत्रियों और तक्षक के साथ गुप्त सभाकक्ष की ओर बढ़ गए। 

अगले दिवस की संध्या तक कन्नौज की पश्चिम सीमा पर दोनों सेनाओं का पड़ाव हो चूका था, और आशा थी कि अगला प्रभात एक भीषण युद्ध का साक्षी होगा। 

आधी रात्रि बीत चुकी थी। अरब सेना अपने शिविर में निश्चिन्त सो रही थी। अचानक तक्षक के संचालन में कन्नौज की एक चौथाई सेना अरब शिविर पर टूट पड़ी। अरबों को किसी हिन्दू शासक से रात्रि युद्ध की आशा न थी। वे उठते,सावधान होते और हथियार सँभालते इसके पुर्व ही आधे अरब गाजर मूली की तरह काट डाले गए। इस भयावह निशा में तक्षक का शौर्य अपनी पराकाष्ठा पर था।वह घोडा दौड़ाते जिधर निकल पड़ता उधर की भूमि शवों से पट जाती थी। आज माँ और बहनों की आत्मा को ठंडक देने का समय था.... 

उषा की प्रथम किरण से पुर्व अरबों की दो तिहाई सेना मारी जा चुकी थी। सुबह होते ही बची सेना पीछे भागी, किन्तु आश्चर्य! महाराज नागभट्ट अपनी शेष सेना के साथ उधर तैयार खड़े थे। दोपहर होते होते समूची अरब सेना काट डाली गयी। अपनी बर्बरता के बल पर विश्वविजय का स्वप्न देखने वाले आतंकियों को पहली बार किसी ने ऐसा उत्तर दिया था। 

विजय के बाद महाराज ने अपने सभी सेनानायकों की ओर देखा, उनमे तक्षक का कहीं पता नही था।सैनिकों ने युद्धभूमि में तक्षक की खोज प्रारंभ की तो देखा-लगभग हजार अरब सैनिकों के शव के बीच तक्षक की मृत देह दमक रही थी। उसे शीघ्र उठा कर महाराज के पास लाया गया। कुछ क्षण तक इस अद्भुत योद्धा की ओर चुपचाप देखने के पश्चात महाराज नागभट्ट आगे बढ़े और तक्षक के चरणों में अपनी तलवार रख कर उसकी मृत देह को प्रणाम किया। युद्ध के पश्चात युद्धभूमि में पसरी नीरवता में भारत का वह महान सम्राट गरज उठा- 

"आप आर्यावर्त की वीरता के शिखर थे तक्षक.... भारत ने अबतक मातृभूमि की रक्षा में प्राण न्योछावर करना सीखा था, आप ने मातृभूमि के लिए प्राण लेना सिखा दिया। भारत युगों युगों तक आपका आभारी रहेगा।"इतिहास साक्षी है, इस युद्ध के बाद अगले तीन शताब्दियों तक अरबों कीें भारत की तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नही हुई।तक्षक ने सिखाया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण दिए ही नही, लिए भी जाते है, साथ ही ये भी सिखाया कि दुष्ट सिर्फ दुष्टता की ही भाषा जानता है, इसलिए उसके दुष्टतापूर्ण कुकृत्यों का प्रत्युत्तर उसे उसकी ही भाषा में देना चाहिए अन्यथा वो आपको कमजोर ही समझता रहेगा ।

आज जब शाहीन बाग़ की नौटंकी देखता हूँ तो बाबा साहब भीम राव रामजी अंबेडकर के वाक्य कानों में गूंजने लगते हैं -

हिन्दू मुस्लिम एकता एक असम्भव कार्य है भारत से समस्त मुसलमानों को पाकिस्तान भेजना और हिन्दुओं को वहां से बुलाना ही एक हल है। यदि यूनान तुर्की और बुल्गारिया जैसे कम साधनों वाले छोटे छोटे देश यह कर सकते हैं तो हमारे लिए कोई कठिनाई नहीं। साम्प्रदायिक शांति हेतु अदला बदली के इस महत्वपूर्ण कार्य को न अपनाना अत्यंत उपहासास्पद होगा। विभाजन के बाद भी भारत में साम्प्रदायिक समस्या बनी रहेगी। पाकिस्तान में रुके हुए अल्पसंख्यक हिन्दुओं की सुरक्षा कैसे होगी? मुसलमानों के लिए हिन्दू काफिर सम्मान के योग्य नहीं है। मुसलमान की भातृ भावना केवल मुसमलमानों के लिए है। कुरान गैर मुसलमानों को मित्र बनाने का विरोधी है, इसीलिए हिन्दू सिर्फ घृणा और शत्रुता के योग्य हैं। मुसलामनों की निष्ठा भी केवल मुस्लिम देश के प्रति होती है। इस्लाम सच्चे मुसलमानों हेतु भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट संबधी मानने की आज्ञा नहीं देता। संभवतः यही कारण था कि मौलाना मोहम्मद अली जैसे भारतीय मुसलमान भी अपने शरीर को भारत की अपेक्षा येरूसलम में दफनाना अधिक पसन्द किया। कांग्रेस में मुसलमानों की स्थिति एक साम्प्रदायिक चौकी जैसी है। गुण्डागर्दी मुस्लिम राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है। इस्लामी कानून समान सुधार के विरोधी हैं। धर्म निरपेक्षता को नहीं मानते। मुस्लिम कानूनों के अनुसार भारत हिन्दुओं और मुसलमानों की समान मातृभूमि नहीं हो सकती। वे भारत जैसे गैर मुस्लिम देश को इस्लामिक देश बनाने में जिहाद आतंकवाद का संकोच नहीं करते। 

अब भी न समझे वो अनाडी है !

लेखक भारत संस्कृति न्यास के संस्थापक एवं वरिष्ठ पत्रकार है

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