कोरोना के खतरे के बीच शहरवासियों की जान जोखिम में डाल गया सामूहिक निकाह सम्मेलन

जहाँ एक ओर वैश्विक बीमारी बन चुकी कोरोना महामारी से निपटने हेतु पूरा विश्व चिंतिंत नजर आ रहा है वहीँ मध्यप्रदेश के शिवपुरी शहर में 23 मार्च सुबह 5 बजे आयोजित हुए सामूहिक निकाह सम्मलेन की खबर नें समूचे शहर वासियों की नींदें उड़ा दी है | 

22 मार्च को जब पूरा देश प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर स्वेच्छा से जनता कर्फ्यू का हिस्सा बन कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ने के लिए एकजुट हो रहा था, वहीँ शिवपुरी में एक समुदाय विशेष के नेता समाज में अपना रुतवा दिखाने हेतु सामूहिक निकाह सम्मलेन का आयोजन करने में जुटे हुए थे | इस सामूहिक निकाह सम्मलेन में भिंड, मुरैना, दतिया, गुना, अशोकनगर सहित समीपवर्ती राजस्थान और उत्तरप्रदेश से भी लोगों के आने की ख़बरें सामने आ रही है | 

एक ओर तो लखनऊ में चल रहा सीएए विरोधी धरना समाप्त हो गया, बहुचर्चित शाहीन बाग़ में भी महज पांच महिलायें टोकन के रूप में धरना दे रही हैं, बहीं शिवपुरी में हुआ यह आलीशान सार्वजनिक निकाह सम्मेलन हैरत में डालने वाला है | सवाल उठता है कि क्या शिवपुरी वासियों की जान को इतना सस्ता समझ रखा है प्रशासन ने ? क्या कोरोना से लड़ने के प्रशासनिक दावे महज हवा हवाई बातें हैं ? आखिर प्रशासन की ऐसी कौन सी मजबूरी रही कि इस सामूहिक निकाह सम्मलेन को आयोजित कराने की इजाजत देकर शहर वासियों की जान से खिलवाड़ किया गया ? क्या दूरदराज से आये लोगों का कोई परिक्षण किया गया ? 

जानकारी यह भी मिली है कि 23 मार्च की अल सुबह 4 बजे से प्रारंभ हुए इस सामूहिक निकाह सम्मलेन ने लॉक डाउन की पूरी तरह धज्जियाँ उड़ाई गई, कुछ प्रशासनिक अधिकारियों के तो दावते वलीमा में शामिल होने की भी खबर है | शायद यह आयोजन कोरोना प्रूफ था, प्रशासन की नजर में ? यदि नहीं तो क्यों इस सामूहिक निकाह सम्मेलन को आयोजित कराने वाले लोगों पर कार्यवाही नहीं की जा रही ? क्या चंद लोगों की नेतागिरी के आगे शहर वासियों की जानों की कोई कीमत नहीं है ? अगर इस सामूहिक निकाह सम्मलेन के चलते कोई खतरा अब यदि शहर पर आता है तो इसकी जिम्मेदारी क्या प्रशासन की नहीं होगी ? एक ओर तो शहर में धारा 144 के अंतर्गत पांच लोगों के एकत्रित होने पर भी प्रतिबन्ध और दूसरी ओर यह आलीशान टेंट लगाकर किया गया यह भव्य आयोजन ? 

यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह भी है कि यह वही चर्चित ईदगाह है, जहाँ करोड़ों रुपये मूल्य की शासकीय जमीन पर कब्जा कर दुकाने तान दी गई हैं | जागरुक नागरिकों की बार बार की जाने वाली शिकायतों की भी प्रशासन के बहरे कान अनसुनी करते रहे हैं | शायद इसीलिए अतिक्रमाकों के होंसले बुलंदी पर पहुँच गए और उन्होंने सारे नियम कायदे क़ानून को बलाए ताक रखकर यह आयोजन कर डाला | कोई क्या बिगाड़ेगा हमारा | सरकारी अधिकारी तो महज एक दावत में ही डकार लेकर रुखसत हो जाते हैं |

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