दादी नवमी पूजती थीं। नवमी की पूजा के बड़े लोक विधान थे। साफ , सफाई और शुद्धता के साथ पवित्रता इसके केंद्र में था। घर की सफाई। देवकु...

दादी नवमी पूजती थीं। नवमी की पूजा के बड़े लोक विधान थे। साफ , सफाई और शुद्धता के साथ पवित्रता इसके केंद्र में था। घर की सफाई। देवकुली की सफाई। रसोई की सफाई। आंगन की सफाई। बर्तनों की सफाई। कपड़ो की सफाई। अन्न की सफाई। जल की सफाई। वायु की सफाई। अग्नि की सफाई। आकाश की सफाई। मिट्टी की सफाई।इस सफाई में शुद्धता और पवित्रता का और भी ध्यान रखना पड़ता था। पूजा के लिए प्रयोग होने वाले अन्न की धुलाई के बाद जब उसे सूखने के लिए पसारा जाता तो बच्चों की ड्यूटी लगती कि कोई चिड़िया चुरङ्ग उसे जूठा न कर दे। गेंहू पिसाने से लेकर उसको पूजा के लिए प्रयोग के समय तक पवित्र बनाये रखना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती थी। फिर बर्तनों की बारी। केवल मिट्टी के बर्तन ही नवमी की पूजा में प्रयुक्त होते थे। ये बर्तन कुम्हार के घर से आते थे जिन्हें कोई नौकर नही लाता बल्कि दादी की तरह हर घर के सदस्य खुद लाते थे। नवमी की रात केले के पत्ते पर बेरहिन, रासियाव, लौंग का प्रसाद और 52 औषधियों वाले धार को घड़े में जल भर कर मिलाया जाता। धार से ही जलधार दिया जाता। इस पूरी प्रक्रिया में इस बात का विशेष ध्यान कि प्रसाद बनाने से लेकर पूजा सम्पन्न होने तक किसी अन्य व्यक्ति के सम्मुख न होना पड़े या कोई व्यवधान न हो। इसी पूजा का प्रमुख लोक मंत्र है-
निमिया के डाढ़ी मईया
लावेली हिंडोलवा
कि झूली झूली ना
मईया के लागली पियास
हो कि झूली झूली ना।
एक अन्य लोकोपसना हरवत। बैसाख की अक्षय तृतीया को। प्रत्येक घर का मुखिया हाथ मे कलश, पल्लव, नैवेद्य और कुदाल लिए, सिर पर गमछा लेकर मुह तक ढके हुए बिना किसी ओर देखे सीधे अपने खेत मे जाता था। नैवेद्य अर्पित कर, पांच छेव कुदाल चला कर, धरती से खेती की अनुमति लेकर सीधे अपने घर आता। उस दिन घर मे किसी बाहरी व्यक्ति का प्रवेश वर्जित। कोई आदान प्रदान वर्जित। घर मे मीठा अन्न बनता और पूरा परिवार प्रसाद ग्रहण करता था।
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