आखिर कमलनाथ की गलती क्या थी ?

लंबे समय से चल रहे मध्यप्रदेश के सियासी ड्रामे का पटाक्षेप आखिर कमलनाथ के द्वारा फ्लोर टेस्ट से पहले ही मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के साथ ही फ़िलहाल तो समाप्त हो गया है | मध्यप्रदेश से कांग्रेस सरकार की विदाई के बाद यह सवाल हरेक के दिमाग में कोंध रहा है कि आखिरकार कमलनाथ की गलती क्या थी ? आइये जानते है वह कौन सी गलतियाँ रहीं जिसके कारण मप्र से कमलनाथ सरकार को रुखसत होना पड़ा | 

सिंधिया और उनके समर्थकों की अनदेखी 

जब से मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार बनीं तब से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की अनदेखी की जानी प्रारंभ हो गयी थी | इसमें कोई दो राय नहीं है कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस नें सिंधिया का चेहरा सामने रखकर ही चुनाव लड़ा और इसी कारण ग्वालियर चम्बल अचल में अभूतपूर्व सफलता भी पाई | परन्तु राजनीती के चतुर सुजान कहे जाने वाले दिग्विजय सिंह ने कूटनीति के माध्यम से पहले सिंधिया के स्थान पर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया, उसके बाद सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनने से भी रोका और राज्यसभा में स्वयं को सुरक्षित कर सिंधिया को बलि का बकरा बनाने का षड़यंत्र किया | इस चालबाजी को सिंधिया समझ गए और भाजपा में शामिल होकर कांग्रेस को अप्रत्याशित झटका दे डाला | नतीजा यह निकला कि कमलनाथ सरकार को तो पटकनी लगी ही कमलनाथ के साथ दिग्विजय सिंह भी जमीन पर आ गए | 

दिग्विजय सिंह के हाथों की कठपुतली बने रहे कमलनाथ 

कमलनाथ जब से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने तब से ही वह बस दिग्विजय सिंह के हाथों की कठपुतली बने ही नजर आये | ऐसा प्रतीत होता रहा कि कमलनाथ तो बस नाम के मुख्यमंत्री है बाकी परदे के पीछे से दिग्गी राजा ही सरकार संचालित कर रहे है | दिग्गी राजा के कारण कोंग्रेस पार्टी में असंतोष गहराता जा रहा था परन्तु कमलनाथ मौन बने रहे | कमलनाथ के मौन बने रहने का कारण था कि उनके पास भी दिग्विजय सिंह के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था, जिसका नाजायज फायदा दिग्विजय सिंह उठाते जा रहे थे | पार्टी हित जाए भाड़ में मुझे सिंधिया से अपनी बेइज्जती का बदला लेना है, उन्हें और उनके समर्थकों को बार बार तिरस्कृत करना है, इसी भावना से दिग्विजय सिंह नें कमलनाथ सरकार के लिए वह विषम परिस्थितियां उत्पन्न कर दी, जिनसे उबर पाना कमलनाथ के लिए संभव ही नहीं था | यहाँ शायद दिग्विजय सिंह की सोच कुछ यह रही कि सिंधिया के कॉंग्रेस पार्टी छोड देने के बाद जब कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल आयेंगे तब वह अपने मेनेजमेंट से कॉंग्रेस पार्टी पर छाए संकट के बादल दूर कर एक तो केंद्रीय नेतृत्व की नजरों में संकटमोचन बन जायेंगे और दूसरी ओर कमलनाथ के स्थान पर अपने किसी चहेते (जीतू पटवारी या स्वयं के पुत्र) को मुख्यमंत्री बनवा सकेंगे | परन्तु उनके यह ख्याली पुलाव पक नहीं सके और दिग्गी राजा के भरोसे सिंधिया को सड़क पर उतरने की धमकी देने वाले कमलनाथ स्वयं तो सड़क पर आये ही, साथ में पूरी कॉंग्रेस को भी जमींदोज कर दिया | 

कमलनाथ सिर्फ छिंदवाडा के मुख्यमंत्री 

जब से प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनी तभी से कमलनाथ के द्वारा प्रदेश का खजाना खाली होने की बात का रोना रोया जाता रहा जबकि दूसरी ओर उनके गृह जिले छिंदवाडा में बड़ी तेजी से उनके द्वारा विकास कार्यों के लिए प्रदेश का खजाना खोल दिया गया | ऐसा प्रतीत होने लगा कि मानो कमलनाथ मध्यप्रदेश के नहीं बल्कि सिर्फ छिंदवाडा के मुख्यमंत्री है | 

केंद्रीय नेतृत्व की अदूरदर्शिता 

जब मध्यप्रदेश में कॉंग्रेस जोड़ तोड़ कर सरकार बनाने जा रही थी तब केंद्रीय नेतृत्व नें सिंधिया के नाम को दरकिनार कर दिग्गी और अहमद पटेल के प्रभाव में आकर कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया जो उसकी अदूरदर्शिता का सबसे बड़ा उदाहरण था | उसके बाद मध्यप्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा न कर पूरा प्रदेश दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के हाथों सौप कर स्वयं आत्महत्या की तैयारी कॉंग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने कर ली थी | बुजुर्ग मंडली से घिर चुके केंद्रीय नेतृत्व ने कॉंग्रेस में युवा नेताओं की अनदेखी की, जिसके कारण पूरे देश के साथ मध्यप्रदेश में भी कॉंग्रेस में आंतरिक संघर्ष उत्पन्न हुआ | कॉंग्रेस की इस बुजुर्ग टोली का नेतृत्व कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी (७३ वर्ष) कर रहीं है और उनकी इस बुजुर्ग मंडली में अहमद पटेल 71 वर्ष (जो विगत ३६ वर्षों से कोई चुनाव नहीं जीत पाए है), 78 वर्षीय अंबिका सोनी (इन्होने भी अपने जीवन में कोई चुनाव नहीं जीता है), 71 साल के गुलाम नबी आजाद (1984 के बाद से वे खुद कोई चुनाव नहीं जीत पाये हैं), मोतीलाल वोरा 93 वर्ष (1998 में वोरा ने अपनी जिंदगी का अंतिम चुनाव जीता था), मल्लिकार्जुन खड़गे 78 साल (महाराष्ट्र कांग्रेस के कई नेता इनकी कार्यशैली का अक्सर विरोध करते रहते हैं), 72 वर्ष के हरीश रावत (2017 में रावत जब उत्तराखंड के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अपनी पसंद के दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था तथा दोनों ही क्षेत्रों में हार गए थे), मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया (कभी चुनाव नहीं लड़ा और अपने गृह प्रदेश गुजरात में भी इनका कोई जनाधार नहीं है), कांग्रेस महासचिव अविनाश पांडे (इन्होंने जिंदगी में कभी कोई चुनाव नहीं जीता), ओमन चांडी 77 वर्ष, मनमोहन सिंह (87), एके एंटनी (79), अंबिका सोनी(77), आनंद शर्मा (67) शामिल हैं | जहाँ कॉंग्रेस पार्टी में वर्षों से वरिष्ठ पदों पर जमे बुजुर्ग नेताओं को विश्राम देना चाहिये था व उनके स्थान पर ऐसे युवा नेताओं को आगे बढ़ाना चाहिए था जिनका अपने प्रदेशों में प्रभाव हो, पर कॉंग्रेस ने ठीक इसका विपरीत किया, जिसके कारण आज पूरे देश में कॉंग्रेस पार्टी अपनी अंतिम साँसे गिनने को विवश है | मध्यप्रदेश का वर्तमान घटनाक्रम इसका जीता जागता उदाहरण है ।