कोरोना वायरस बनाम तबलीगी जमात !



कोरोना वायरस और कुछ नहीं, बल्कि दुनिया पर इस्लामी परचम लहराने के लिए अल्लाह द्वारा भेजा गया तोहफा है | इसीलिए इससे काफ़िर मर रहे हैं, फिर चाहे वह मुसलमानों पर जुल्म ढाने वाला कम्यूनिस्ट चीन हो, ईसाई यूरोप हो या शिया ईरान हो | अगर इसी सोलहवीं सदी की मानसिकता के लोग आज इक्कीसवीं सदी में भी मौजूद हैं, तो समझा जा सकता है कि वे न केवल हिन्दुस्तान के लिए, बल्कि विश्व मानवता के लिए कितना बड़ा खतरा हैं | इसलिए दिल्ली के निजामुद्दीन में हुए इज्तिमा को हलके में लेना, शुतुरमुर्गी मानसिकता होगी | 

यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसकी आयोजन कर्ता संस्था तबलीगी जमात पर आतंकियों से जुड़े होने के आरोप भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगते रहे हैं – 

फ्रांस के इस्लामिक चरमपंथियों में से 80% प्रतिशत का सम्बन्ध तबलीग से पाया गया । संयुक्त राज्य अमेरिका में हुए 11 सितंबर के हमलों में आरोपित युवा फ्रेंचमैन ज़कारियास मौसाउई फ्रांस में तबलीग का सक्रिय सदस्य था | इसी प्रकार 2001 में अफगानिस्तान के तोरा बोरा में हुई बमबारी में मारा गया हरिवे जमालेल लोसेऊ भी तबलीग से सम्बंधित था | इतना ही नहीं तो 2005 में पेरिस में अमेरिकी दूतावास को उड़ाने की साजिश रचने का दोषी ठहराया गया अल कायदा का सदस्य, अल्जीरियाई मूल का फ्रांसीसी नागरिक जमेल बेघल भी तबलीग से जुड़ा हुआ था । शायद इसीलिए फ्रांसीसी गुप्तचर अधिकारी तब्लीगी जमात को 'कट्टरपंथ का दालान' कहते है। 

कुछ मीडिया रिपोर्टों ने एक मुस्लिम नेता के हवाले से छापा कि जनवरी 2008 में बार्सिलोना, स्पेन में हुई बमबारी की साजिश के आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए चौदह संदिग्ध तब्लीगी जमात के सदस्य थे । स्मरणीय है कि इन लोगों से बम बनाने की सामग्री भी जब्त की गई थी | पोर्टलैंड सेवन, लैकवाना सिक्स, 2006 के ट्रांसअटलांटिक एयरक्राफ्ट प्लॉट, 7/7 लंदन बम विस्फोट, 2007 लंदन कार बम धमाके और 2007 ग्लासगो इंटरनेशनल एयरपोर्ट हमले आदि आतंकवादी गतिविधियों और नागरिकों पर हमलों में भी तब्लीगी जमात के सदस्यों को शामिल पाया गया था। 

होमलैंड सीक्योरिटी विभाग के पूर्व कर्मचारी फिलिप हनी ने तब्लीगी जमात को "ट्रांस-नेशनल इस्लामिस्ट नेटवर्क" का हिस्सा बताते हुए कहा कि इससे सम्बद्ध आतंकवादी सैयद रिजवान फारूक, सैन बर्नार्डिनो के दार अल उलूम अल इस्लामियाह मस्जिद में अक्सर शामिल होता था । सहायक एफबीआई निदेशक माइकल हेइम्बच के अनुसार "हमारे पास संयुक्त राज्य अमेरिका में तब्लीगी जमात की महत्वपूर्ण उपस्थिति की जानकारी है और हमने पाया है कि अल कायदा ने उन्हें अपनी भर्ती अभियान के लिए उपयोग किया था।" 

तब्लीगी जमात पर अमेरिकी विदेश नीति परिषद की रिपोर्ट: 

उपलब्ध आंकड़ों से संकेत मिलता है कि तबलीगी जमात को दुनिया भर के जिन भी स्थानों पर यह पाया जाता है, अपने सख्त इस्लामिक मानदंडों के सुदृढीकरण, अन्य धार्मिक परंपराओं के प्रति असहिष्णुता और पूरी दुनिया के इस्लामीकरण के प्रति अटल प्रतिबद्धता के जरिए जिहादी समूहों का सक्रीय समर्थक माना जा सकता है। राजनीति के प्रति दूरी इसका सरकारी अंगों द्वारा दमन से बचने की चाल भर है । 

फ्रांसीसी तबलिगी विशेषज्ञ मार्क गैबोरियो के अनुसार, इसका मूल विचार और अंतरराष्ट्रीय लक्ष्य केवल "संसार पर हुकूमत " है। 

सचाई यह है कि राजनीति से दूरी की बात तबलीग के कर्ता धर्ता केवल मुस्लिम और गैर-मुस्लिम समाजों में बिना किसी बाधा घुसने और अपनी गतिविधियाँ संचालित करने के लिए करते हैं, क्योंकि कई स्थानों पर राजनीति में सक्रिय सहभागी इस्लामी समूहों को गंभीर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि इस्लामी देश पाकिस्तान में तब्लीगी जमात के सदस्य राजनीति में पूरी तरह हिस्सा लेते रहे हैं । 

पाकिस्तान में, प्रधान मंत्री नवाज शरीफ ने तब्लीगी सदस्यों को प्रमुख राजनीतिक पद प्रदान किये | उनके पिता एक प्रमुख तब्लीगी सदस्य और फाइनेंसर थे । 1998 में, तब्लीग से जुड़े मुहम्मद रफीक तरार ने औपचारिक रूप से राष्ट्रपति पद ग्रहण किया, 1990 में लेफ्टिनेंट जनरल जावेद नासिर ने पाकिस्तान की प्रमुख खुफिया एजेंसी, इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस के शक्तिशाली निदेशक-पद का पदभार संभाला। 1995 में पाकिस्तानी सेना ने कई दर्जन उच्च-श्रेणी के सैन्य अधिकारियों और नागरिकों द्वारा बेनजीर भुट्टो के तख्तापलट का प्रयास किया, जिनमें से कुछ तब्लीगी जमात के भी सदस्य थे जिन्होंने अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा परिभाषित आतंकवादी संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन की भी सदस्यता ग्रहण की। जनवरी 2016 में तो पाकिस्तान में तबलीगी जमात पर प्रतिबंध भी लगाया गया | पंजाब सरकार ने विश्वविद्यालय परिसरों में उसके द्वारा प्रचार करने पर प्रतिबंध लगा दिया, और तबलीगी जमात से जुड़े छात्रों को कैंपस हॉस्टल में रहने से भी प्रतिबंधित कर दिया। 

तबलीगी जमात इतनी ताकतवर कैसे बनी ? 

आईये इस गंभीर खतरे की पूरी पड़ताल करें | तब्लीगी जमात का शाब्दिक अर्थ होता है धर्म प्रचारक समूह, तो हजरत निजामुद्दीन में हजारों लोगों को इकट्ठा कर चर्चा में आई इस संस्था का मूल कार्य भी स्वाभाविक ही इस्लाम का प्रचार प्रसार है | इस संस्था के अनुयाई दक्षिण एशिया के 180 से 200 देशों तक फैले हुए हैं और उनकी संख्या डेढ़ सौ से ढाई सौ मिलियन तक मानी जाती है | स्पष्ट ही यह एक शक्तिशाली और प्रभावशाली समूह है, जिससे अगर दिल्ली की केसरीवाल सरकार या दिल्ली सरकार के पुलिस अधिकारी डरे डरे से रहे, तो इसमें कोई हैरत की बात नहीं है | 

इसकी स्थापना 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलावी ने मेवात में की थी, और जैसा कि सब जानते हैं कि मेवात अपनी कट्टरता और दुर्दान्तता के कारण सदा चर्चित रहा । तब्लीगी जमात का मानना ​​है कि मुसलमान को लगातार आध्यात्मिक जिहाद में जुटे रहना चाहिए | 

इतिहास 

महाराष्ट्र में मराठा साम्राज्य के अभ्युदय और उसके कारण पूरे भारत में मुस्लिम राजनीतिक आधिपत्य के पतन और बाद में ब्रिटिश राज के दौरान भी इस्लामी बुद्धिजीवी भारत में इस्लामी पुनरुत्थान की महत्वाकांक्षा अपने मनों में पाले रहे, यह संस्था उनके इन्हीं मनोभावों का द्योतक मानी जाती है । भारत में इस्लाम और ईसाई धर्म में परिवर्तित लोगों के लिए आर्य समाज व अन्य हिंदुत्वनिष्ठ संस्थाओं द्वारा चलाये गए शुद्धि आन्दोलन ने इन लोगों को और भी चिंता में डाल दिया । तब्लीगी जमात के संस्थापक मुहम्मद इलियास में अपनी भाषण क्षमता से लोगों को प्रभावित करने की करिश्माई ताकत थी | उसने शुरू में मेवाती मुसलमानों को इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं के बारे में शिक्षित करने के लिए मस्जिद-आधारित धार्मिक स्कूलों का एक नेटवर्क स्थापित करने का प्रयास किया। लेकिन कुछ ही समय बाद उसे समझ में आ गया कि इस तरह केवल धार्मिक कार्यकर्ताओं का निर्माण हो रहा है, जबकि उसका उद्देश्य तो इससे कहीं ज्यादा था - भारत को एक इस्लामी देश बनाना | 

मुहम्मद इलियास सहारनपुर के मदरसा मजाहिर उलूम में अपना शिक्षक पद छोड़कर दिल्ली के नजदीक निज़ामुद्दीन में स्थानांतरित हो गया, जहाँ से इस आंदोलन की 1926 में औपचारिक शुरूआत हुई । मुहम्मद इलियास ने नारा दिया, "हे मुसलमानो, सच्चे मुसलमान बनो!"। तब्लीगी जमात का घोष वाक्य था : मुसलमानों को मुहम्मद साहब की जीवन शैली को अपनाने के लिए एकजुट करना और उनका सामाजिक पुनरुत्थान। जल्द ही लोग इस आन्दोलन से बड़े पैमाने पर जुड़ गए और नवंबर 1941 में हुए इसके वार्षिक सम्मेलन में लगभग 25,000 लोगों ने भाग लिया। 

इस समूह ने 1946 में अपनी गतिविधियों का विस्तार करना शुरू किया और 1947 में हुए भारत विभाजन के तुरंत बाद पाकिस्तान के लाहौर और रावलपिंडी में इसकी शाखाएं स्थापित हो गईं। यह तो कहने की बात है ही नहीं कि 1971 में बांगलादेश बनने के बाद वहां इस समूह की गतिविधियाँ पाकिस्तान से भी ज्यादा हो गईं । अपनी स्थापना के दो दशकों के भीतर, समूह दक्षिण पश्चिम और दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, यूरोप और उत्तरी अमेरिका तक पहुंच गया। योजनाबद्ध रूप से तब्लीगी जमात ने स्वयं को राजनीति से प्रथक रखा और फिलिस्तीन के झंझट में भी खुद को नहीं उलझाया, इससे उसे पश्चिमी देशों में भी पैठ बनाने में मदद मिली । यहाँ तक कि 2007 आते आते ब्रिटेन की कुल 1,350 मस्जिदों में से 600 पर तब्लीगी जमात के सदस्य काबिज थे। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद, आंदोलन ने किर्गिस्तान में भी अपने पैर पसार लिए और एक अनुमान के अनुसार वहां भी तब्लीगी जमात के 10,000 सदस्य हैं, जिसकी शुरूआत पाकिस्तानियों ने की । और इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस समय तब्लीगी जमात दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आन्दोलन है । 

यह मुहम्मद इलियास ही थे, जिन्होंने गाँव गाँव इस्लाम की शिक्षाओं के प्रचार के लिए जमात भेजना शुरू किया | इन यात्राओं में ये धर्म प्रचारक हदीस और कुरआन की आयतों का अर्थ लोगों को समझाते हैं और मुहम्मद साहब की शिक्षाओं के अनुसार जीने पर जोर देते है। 

संगठन रचना – 

तब्लीगी जमात अपनी संगठनात्मक संरचना को सार्वजनिक नहीं करता । यह मास मीडिया से दूरी बनाए रखता है और अपनी गतिविधियों और सदस्यता के बारे में विवरण प्रकाशित करने से बचता है। समूह विवादों से बचने के लिए राजनीतिक और विवादास्पद मुद्दों पर राय व्यक्त करने से बचता है, भले ही उसका आंतरिक समर्थन उन मुद्दों पर हो । जो जमातें धर्म प्रचार के लिए जाती हैं, उसका खर्चा भी उसमें जाने वाले ही स्वयं बहन करते हैं । चूंकि कोई औपचारिक पंजीकरण प्रक्रिया नहीं है, अतः इसकी आधिकारिक सदस्यता संख्या कभी भी सामने नहीं आती । इसका कोई प्रकाशित साहित्य भी नहीं है, [तब्लीगी पाठ्यक्रम को छोड़कर], क्योंकि इसका जोर व्यक्तिगत संपर्कों पर रहता है । 

संगठन की गतिविधियों को केंद्र जिस मुख्यालय के माध्यम से संचालित किया जाता है उसे मर्कज़ कहा जाता है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित निजामुद्दीन मरकज़ इसका अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय है, जहाँ से यह मूल रूप से शुरू हुआ था। वर्तमान में 200 से अधिक देशों में इसके अन्य मर्कज भी है। 

इसके प्रमुख को अमरत- अमीर कहा जाता था, इसके पहले अमीर मौलाना (मौलवी) मुहम्मद इलियास कांधलवी थे, बाद में उनके बेटे मौलाना (मौलवी) मुहम्मद यूसुफ कांधलवी और फिर मौलाना (मौलवी) इनाम उल हसन बने। मौलाना (मौलवी) इनामुल हसन ने अपनी मृत्यु के तीन वर्ष पूर्व 1992 में अमीर नियुक्त करने के लिए 10-सदस्यीय शूरा (समिति) का गठन किया। इस 10 सदस्यीय शूरा कमेटी में मौलाना सईद अहमद खान एसबी, मुफ्ती ज़ैनुल आबिदीन, मौलाना उमर एसबी पालनपुरी, मौलाना इज़हार उल हसन, मौलाना जुबैर उलैन, मियाजी मेहराब एसबी, हाजी अब्दुल वहाब एसबी, हाजी इंजीनियर अब्दुल मुकीद सिद्दीकी शामिल थे। 1995 में, मौलाना इनामुल हसन के निधन के बाद, इस शूरा ने अमीर के चयन के लिए मरकज़ निज़ामुद्दीन में सलाह मशविरा किया और इस बात पर सहमति बनी कि एक अमीर चुनने के बजाय शूरा के माध्यम से ही कार्य सञ्चालन हो । बाद में जब 120 देशों में जमात का काम फ़ैल गया, तब इस शूरा में 14 और सदस्यों को जोड़ा गया। 

कार्यपद्धति 

धर्म प्रचार के लिए विभिन्न स्थानों पर जाने वाली अलग-अलग जमात का नेतृत्व एक अमीर द्वारा किया जाता है | जमात कितने दिन उस शहर या गाँव में रहेगी, यह जमात ही अपने विवेक से तय करती है । यह अवधि एक दिन, कुछ दिन या एक लंबी अवधि, कोई भी हो सकती है। 

खुर्ज़ 

दुनिया का सबसे बड़ा इस्लामी आंदोलन तब्लीग जमात, अपने अनुयायियों को "दस रात, एक महीने (अशरा), एक वर्ष में 120 दिन लगातार (तीन चिल्ला) और अंततः 150 दिन (5 माह- बेरून) तबलीग मिशन में देने के लिए प्रोत्साहित करता है।" इन दौरों के दौरान, जमात के सदस्य आमतौर पर साधारण, सफेद, ढीले-ढाले कपड़े पहनते हैं, जो उनकी पीठ पर लदे स्लीपिंग बैग द्वारा ले जाये जाते हैं। तबलीगी गतिविधियों के लिए विशेष रूप से इस संगठन के साथ जुड़े हुए ये लोग, इस यात्रा के दौरान विशेष रूप से मस्जिदों में ही ठहरते हैं । इन मस्जिदों में क्षेत्रीय निवासी छोटे छोटे चर्चा सत्र आयोजित करते हैं। 

मस्जिदों में अपने प्रवास के दौरान, इन जमातों द्वारा किसी स्थानीय व्यक्ति के मार्गदर्शन में रोजाना गश्त की जाती है, जिसमें वे लोग आसपास रहने वाले लोगों को अपनी मस्जिद में मग़रिब की नमाज़ अता करने के लिए आमंत्रित करते हैं | जो लोग उस नमाज में शिरकत करते हैं, उन्हें नमाज़ के बाद धर्मोपदेश दिया जाता है । वे उपस्थित लोगों से आग्रह करते हैं कि वे आत्म-सुधार और इस्लाम के प्रचार के लिए समय दें। उनके रहने, खाने और सोने आदि की व्यवस्था भी मस्जिदों में ही की जाती हैं। 

जमात के सदस्य इस दौरान धर्म प्रचारक भी होते हैं, तो रसोइया या सफाईकर्मी भी, चक्रीय क्रम में ये अपनी ड्यूटी स्वयं तय करते हैं । तब्ली जमात के सदस्य, इसे आम तौर पर खिदमत कहते है । मर्कज़ में प्रत्येक जमात और उसके सदस्यों का रिकॉर्ड रखा जाता है, जिनकी पहचान संबंधित मस्जिदों से सत्यापित की जाती है। जमात के सदस्य, अपना व्यय स्वयं वहन करते हैं ताकि किसी पर वित्तीय निर्भरता से बचा जा सके। 

इज्तेमा (वार्षिक सभा) 

संबंधित देशों के मुख्यालय में अनुयायियों की एक वार्षिक सभा होती है, जिसे इज्तेमा कहा जाता है, जो सामान्यतः तीन दिनों तक चलता है और एक लंबी प्रार्थना के साथ समाप्त होता है। कुछ देशों में तो 2 लाख से अधिक लोग इन आयोजनों में शिरकत करते हैं । सबसे पहला इज्तिमा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ था । इस तरह की वार्षिक सभाओं का सबसे बड़ा आयोजन बांग्लादेश में होता है, जिसे विश्व इज्तेमा कहा जाता है | ढाका में होने वाले इस इज्तिमा में दुनिया भर के अनुयायी इकट्ठे होते हैं, जिनकी संख्या 3 मिलियन से भी अधिक रहती है । 2018 में भारत के औरंगाबाद में जो इज्तेमा हुआ था, उसमें दुनिया भर से 4 मिलियन लोग जुटे थे । 

आलोचना 

इस्लाम में ही कई विद्वान् तबलीग के आलोचक हैं| भारत में बरेलवी आन्दोलन से जुड़े लोग इससे असहमत है | सऊदी अरब के पूर्व मुख्य मुफ्ती अब्द अल-अजीज इब्न बाज ने कहा था कि "जमात उल-तबलीग” में कई कमियाँ हैं। वे बिदाह और शिर्क के जिन पहलूओं को मानते हैं, वह स्वीकार्य नहीं है। एक और वहाबी मौलवी, फलीह इब्न नफी अल-हरबी का मानना है कि तबलीग काल्पनिक और बेबुनियाद कहानियों के प्रवर्तक हैं। किन्तु तब्लीगी जमात का मानना ​​है कि इस्लाम में विचारों के अलग-अलग केंद्र हैं, एकता के बजाय मतभेदों पर जोर देने से उम्माह कमजोर हो जाएगी। 

2019–2020 कोरोना वायरस से सम्बंधित आरोप 

वर्तमान में कोरोनावायरस महामारी के चलते तबलीगी जमात ने पूरी दुनिया और मीडिया का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। 27 फरवरी और 1 मार्च 2020 के बीच, मलेशिया के कुआलालंपुर में श्री पेटलिंग मस्जिद में एक अंतर्राष्ट्रीय सामूहिक धार्मिक सभा का आयोजन हुआ, जिसमें 600 से अधिक COVID-19 से संक्रमित लोग शामिल हुए, नतीजा यह निकला कि यह आयोजन दक्षिण पूर्व एशिया में वायरस प्रसारण का सबसे बड़ा केंद्र बन गया। वैश्विक प्रकोप के बावजूद, तब्लीगी जमात ने इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी में मकसर के पास गोवा रीजेंसी में 18 मार्च को एक दूसरी अंतर्राष्ट्रीय जन सभा का आयोजन किया। 

इसके बाद बारी आई भारत की, जहाँ तब्लीगी जमात ने लॉकडाउन की घोषणा होने के बावजूद दिल्ली के निज़ामुद्दीन में 13 से 15 मार्च 2020 तक बड़े पैमाने पर दुनिया भर के लोगों को इकठ्ठा किया, जिसमें 500 से अधिक विदेशी वक्ताओं और सदस्यों ने भाग लिया । इनमें से कुछ कोरोनावायरस से संक्रमित थे अतः यहाँ भी यह संक्रमण बड़े पैमाने पर फैल गया।

चलते चलते एक सवाल हिन्दू समाज से - 

जिनके पास विचार की कोई पूंजी नहीं है, जब वे लोग इतनी सिद्दत से भिड़े रहते हैं तो ....
विश्व का मार्गदर्शन करने में समर्थ हमारी संस्कृति के लिए हम और आप क्यों प्रयत्न नहीं कर सकते ?

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