तत्वनिष्ठ गांधीवादी - मोरारजी भाई देसाई



गांधीवाद के परम समर्थक मोरार जी देसाई की आज पुण्यतिथि है | एक आध्यात्मिक राजनेता मोरारजी भाई देसाई भारत के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने देश की पहली गैर कांग्रेसी सरकार का नेतृत्व किया । कांग्रेस में रहते समय भी श्रीमती इंदिरा गांधी से उनके हमेशा वैचारिक मतभेद रहे। यहाँ तक कि उन्होंने श्रीमती गांधी को 'गूंगी गुड़िया' का खिताब दे डाला। यद्यपि मोरार जी, इंदिरा गांधी की सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे, किन्तु इंदिराजी से मतभेदों के चलते वे सरकार से बाहर भी हो गए। मोरार जी ने अपने कॉलेज जीवन में ही महात्मा गांधी, बाल गंगाधर तिलक और अन्य कांग्रेसी नेताओं के भाषणों को सुना था जिसका उनके जीवन पर काफी प्रभाव रहा।

मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली में हुआ था। इनके पिता का नाम रणछोड़जी देसाई व माता का नाम मणिबेन था। वे अपने पिता के बारे में कहते थे- 'मेरे पिता ने मुझे जीवन के मूल्यवान पाठ पढ़ाए थे। मुझे उनसे कर्तव्यों का पालन करने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी। उन्होंने धर्म पर विश्वास रखने और सभी स्थितियों में समान बने रहने की शिक्षा भी मुझे दी थी।'

मोरार जी एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हे भारत के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से और पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान 'निशान-ए-पकिस्तान' से सम्मानित किया गया । स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने के लिए मोरार जी ने सरकारी नौकरी छोड़ दी और सविनय अवज्ञा आन्दोलन में शामिल ही गए । मोरारजी को 1932 में 2 साल की जेल भी भुगतनी पड़ी। देसाई जी, स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान तीन बार जेल गए। देसाई जी कट्टर गांधीवादी नेता और उच्चतरित्र का पालन करने वाले व्यक्ति थे। उन्होंने उस वक्त की फिल्मों में होने वाले अभद्र चित्रण का भी विरोध किया। वे बयाल (अब मुंबई) के मुख्यमंत्री भी रहे ।

कहा जाता है कि मोरारजी देसाई ने लंबे समय तक स्वमूत्रपांन करते रहे । उनका मानना था कि लाखों भारतीयों के लिए यह सही दवा है। खासकर ऐसे लोगों के लिए जो अपने इलाज का खर्च नहीं उठा सकते। हालाँकि, मोरारजी देसाई की बात के कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं थे। लेकिन मोरारजी देसाई की लंबी उम्र को देखते हुए लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि मोरारजी देसाई की लंबी उम्र का राज उनका यह प्रयोग ही था।

इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री बनने पर मोरारजी को 1967 में उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनाया गया। नवंबर 1969 में कांग्रेस के विभाजन के बाद मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आई) का साथ छोड़कर कांग्रेस (ओ) में चले गए। वे 1975 में जनता पार्टी में शामिल हो गए। जब मार्च 1977 में लोकसभा के चुनाव हुए तो जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो गया। उस समय प्रधानमंत्री पद के दो और दावेदार चौधरी चरणसिंह और जगजीवनराम भी थे। लेकिन जयप्रकाश नारायण ने 'किंगमेकर' की भूमिका निभाई और देसाई का समर्थन किया । तत्पश्चात 24 मार्च 1977 को 81 वर्ष की अवस्था में मोरारजी देसाई ने भारत के प्रधानमंत्री का दायित्व ग्रहण किया । इसके पूर्व कई बार उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की परंतु असफल रहे। लेकिन ऐसा नहीं हैं कि मोरारजी प्रधानमंत्री बनने के क़ाबिल नहीं थे। वस्तुत: वह दुर्भाग्यशाली रहे कि वरिष्ठतम नेता होने के बावज़ूद उन्हें पंडित नेहरू और लालबहादुर शास्त्री के निधन के बाद भी प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया। मोरारजी देसाई मार्च 1977 में देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में इनका कार्यकाल पूर्ण नहीं हो पाया। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। मोरारजी देसाई का निधन 10 अप्रैल 1995 को मुंबई में हुआ था।

इंदिरा को गूंगी गु‍डिया कहा

दरअसल, बाल्यावस्था से ही इंदिरा गांधी काफी कम बोलती थी, उनकी इस आदत से उनके पिता और देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी काफी चिंतित रहते थे। राजनीति में प्रवेश के बाद भी इंदिरा जी का कम बोलने का स्वभाव कायम रहा। कांग्रेस अधिवेशन में भी वह शांत रहती थीं। बाद में जब वह सत्ता में आईं तो विपक्ष ने उन्हें गूंगी गुडिया कहना शुरू कर दिया। पहली बार समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने इंदिरा को गूंगी गु‍डिया ने नाम से संबोधित किया था।

1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के ताशकंद में आकस्मिक निधन के बाद, पार्टी के रूढ़िवादी धड़े के उम्मीदवार मोरारजी देसाई को हराकर इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। पार्टी और सत्ता, की बागडोर इंदिरा जी के हाथ में थी। इसके बाद देश में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस आठ राज्यों में चुनाव हार गईं। संसद में भी संख्या बल घट गया, जिससे डॉक्टर राम मनोहर लोहिया को उन पर कटाक्ष करने का मौका मिला था और उन्होंने उसी दौरान इंदिरा को गूंगी गुडिया कहा था।
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