दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजा - हेमचन्द्र 'विक्रमादित्य'


सिसौदिया वंश के आदि पूर्वज बप्पा रावल द्वारा मुस्लिम आक्रान्ताओं को रोकने व रावलपिंडी में सैन्य छावनी निर्माण के बाद सन ७५४ से ११९१ तक किसी आक्रमणकारी की हिम्मत नहीं हुई भारत की तरफ टेढ़ी आँखों से देखने की | लेकिन फिर मोहम्मद गौरी ने बार बार पराजित होकर भी अंततः दिल्ली के अधिपति महाराज प्रथ्वीराज को पराजित करने में सफलता पाई | 

लोहे की फकत कुल्हाड़ी जब, लकड़ी को काट नहीं पाई, 

दस्ता बनकर लकड़ी ने लोहे से लकड़ी कटवाई। 

राजाओं की फूट आपसी, विषबेल बनी दुःखदाई, 

जयचंदों ने भारत मां को, खुद बेडी पहनाई ! 

और फिर मुहम्मद गौरी अपने एक गुलाम को दिल्ली की गद्दी सोंपकर वापस लौट गया | हमें यह जताने को हम उसके गुलाम के भी गुलाम हैं | हमारे महान भारतीय इतिहासकारों ने फक्र से गुलाम वंश की गौरव गाथा लिखी | फिर मुगलों के आगमन के पूर्व कभी खिलजी तो कभी तुगलकी शासन चलते रहे | लेकिन एक हिन्दू राजा भी दिल्लीश्वर हुआ, उसकी जानकारी कम ही लोगों को है | आज का कथानक दिल्ली के उसी आख़िरी राजा को लेकर है | 

दिल्ली का तुगलकी साम्राज्य कमजोर हुआ तो आज के उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती क्षेत्र जौनपुर में हिन्दुओं के सहयोग से प्रथक मुस्लिम राज्य स्थापित हो गया | हिन्दुओं ने सोचा कि दिल्ली में विदेशी आक्रान्ता हैं, उनके अत्याचारों से किसी प्रकार तो मुक्ति मिले | जौनपुर को हिन्दू तलवारों का सहारा मिला तो फिर एक शताव्दी तक दिल्ली के अधिपति उस पर काबिज नहीं हो पाए | पठान शेरशाह ने समझ लिया था कि अवधी और भोजपुरी बोलने वाले इस क्षेत्र के लोग सूरमा हैं, लाठी और तलवार के धनी हैं, तो उसने उनका साथ लिया और भरपूर साथ दिया भी | शेरशाह की वीरता और उदार विचारों से प्रभावित होकर भोजपुरी सैनिक उसके झंडे के नीचे एकत्रित होने लगे और स्थिति यह बनी कि बाबर के बेटे हुमायूं को हिन्दुस्तान छोड़कर भागने पर मजबूर होना पड़ गया | जब तक शेरशाह जीवित रहा, हुमायूं वापस भारत की धरती पर पाँव नहीं रख पाया | 

शेरशाह की कार्यपद्धति को दर्शाने वाला एक प्रसंग है कि हुमायूं ने उससे चर्चा के लिए अपना एक दूत भेजा | उस समय शेरशाह अपने सिपाहियों के साथ खुद भी फावड़ा लेकर खाई खोद रहा था | उसने फावड़ा हाथ में थामे थामे ही उस दूत से बातचीत की | उसकी इसी कार्यपद्धति के कारण उसकी सेना में उसके प्रति अत्यंत आत्मीयता व आदर भाव था, जिसके चलते सैनिक भी असाधारण रूप से जुझारू थे | शेरशाह गुणों का अद्भुत पारखी था, उसने दिल खोलकर हिन्दुओं को अपनाया और आगे बढाया, यहाँ तक कि एक करोडपति व्यापारी के पुत्र हेमचन्द्र को अपना कोष प्रमुख अर्थात खजांची बनाया था | हेमचन्द्र ने अपनी जिम्मेदारी इतनी खूबी से निर्वाह की कि शेरशाह की बड़ी बड़ी लड़ाईयों में भी उसे कोष की कभी कमी नहीं आई | 

१५३९ में शेर खां शेरशाह के नाम से गीड में तख़्त पर बैठा और १५४० में हुमायूं भारत छोड़कर भाग गया | शेरशाह बंगाल से लेकर सिंध तक का बादशाह बन गया | जहाँ जहाँ उसका शासन गया, वहां खुशहाली और शान्ति कायम हो गई | आज की ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण शेरशाह ने ही करवाया था, उस समय इसका नाम सड़क ए आजम हुआ करता था | बंगाल के सोनारगांव से शुरू होकर दिल्ली लाहौर होते हुए यह सड़क पंजाब के अटक तक जाती थी | लेकिन पांच ही साल बीते थे, कि तभी कालेंजर में हुए एक बारूदी विस्फोट में शेरशाह का प्राणांत हो गया | उसे अपना सासाराम प्यारा था, इसलिए उसे बहीं लाकर दफनाया गया | 

शेरशाह के मरने के बाद उसका बेटा इस्लाम शाह गद्दी पर बैठा, उसके नौ वर्ष के शासनकाल में भी शेरशाह के समान ही व्यवस्था चलती रही, हिन्दू मुसलमानों में सद्भाव रहा, योग्यता का सम्मान रहा, हेमचन्द्र को भी इस्लामशाह अपने पिता के समान ही आदर देता रहा | लेकिन इस्लामशाह के मरने के बाद वंश में फूट पड़ गई और उसके नाबालिग पुत्र फ़िरोजशाह को मारकर उसके भतीजे आदिलशाह ने गद्दी संभाली | हालंकि हेमचन्द्र को नए बादशाह ने अपना बजीर बना लिया, किन्तु हत्याकांड से नाखुश हेमचन्द्र ने अपने आप को बिहार तक ही सीमित कर लिया | आदिलशाह अय्याश और शराबी व्यक्ति था। उसे शासन की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी। इस समय सम्पूर्ण अफ़ग़ान शासन प्रबन्ध हेमू के ही हाथ में आ गया था। । उस समय तक हेमू की सेना के अफ़ग़ान सैनिक, जिनमे से अधिकतर का जन्म भारत में ही हुआ था, अपने आप को भारत का रहवासी मानने लग गए थे और वे मुग़ल शासकों को विदेशी मानते थे। इसी वजह से हेमू हिन्दू एवं अफ़ग़ान दोनों में काफ़ी लोकप्रिय हो गया था। 

नतीजा यह हुआ कि हुमायूं वापस लौटा और शेरशाह सूरी के भाई को युद्ध में परास्त कर दिल्ली पर अधिकार कर लिया। हालाँकि उसके छः महीने बाद ही वह १५५५ में पुस्तकालय की सीढियों से गिरकर मर गया | तेरह वर्षीय अकबर ने बैरम खां की सरपरस्ती में गद्दी संभाली | अब हेमू ने दिल्ली की तरफ़ रुख किया | पचास हजार सिपाहियों की इस जबरदस्त फ़ौज के साथ एक हजार हाथी, इक्यावन दुर्ग भंजक बड़ी बड़ी तोपें भी उसके साथ थीं | यह दरिया जब उमड़ा तो आसानी से मुगलों को रोंदता हुआ दिल्ली पहुंचकर ही रुका | हेमू ने रास्ते में बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की कई रियासतों को फ़तेह किया। आगरा में मुग़ल सेनानायक इस्कंदर ख़ान उज़्बेग को जब पता चला की हेमू उनकी तरफ़ आ रहा है तो वह बिना युद्ध किये ही मैदान छोड़ कर भाग गया। 7 अक्टूबर, 1556 ई. में हेमू ने तरदी बेग ख़ान को हरा कर दिल्ली पर विजय हासिल की। यहीं हेमू का राज्याभिषेक हुआ और उसे विक्रमादित्य की उपाधि से नवाजा गया। लगभग तीन शताब्दियों के मुस्लिम शासन के बाद पहली बार कोई हिन्दू दिल्ली का राजा बना। 

लेकिन एक माह बाद ही पानीपत के मैदान में मुग़ल सेना से हेमचन्द्र की दूसरी मुठभेड़ हुई | हेमू अपने हवाई नामक हाथी पर सवार होकर सेना का होंसला बढ़ा रहा था | युद्ध के मैदान में हेमू ने अपने 1500 हाथियों को मध्य भाग में बढ़ाया। इससे मुग़ल सेना में गड़बड़ी फैल गई और ऐसा जान पड़ा कि हेमू की सेना मुग़लों को रौंद देगी। उस समय के मुस्लिम इतिहासकार शमशुल उलमा मौलाना आजाद ने अपनी “दरबारे अकबरी” में लिखा कि हेमू की बहादुरी तारीफ़ के काबिल है | वह तराजू बाँट उठाने वाला, दाल चपाती खाने वाला, हौदे के बीच नंगे सिर खड़ा, होकर सेना की हिम्मत बढ़ा रहा था | शादी खान पठान, हेमू के सरदारों की नाक था, कट कर जमीन पर गिर गया, फिर भी हेमू ने हिम्मत नहीं हारी | हाथी पर सवार चारों तरफ फिरता रहा | सरदारों के नाम ले लेकर पुकारता था, कि सबको समेट कर एकत्रित कर ले | इतने में मौत का तीर लगकर आँख के पार हो गया | उसने अपने हाथ से तीर खींचकर निकाला और आँख पर रुमाल बाँध लिया | लेकिन खून लगातार बहता रहा, और आखिरकार वह बेहोश होकर हौदे में गिर पड़ा | 

छः नवम्बर १५५६ के इस प्रथम पानीपत के युद्ध में भारत का अंतिम हिन्दू राजा हेमचन्द्र जीवित गिरफ्तार हो गया | उन्हें अकबर के सामने लाया गया | किसी सवाल का जबाब देना उन्होंने अपनी शान के खिलाफ माना | उन्हें अफसोस था तो यही कि वे जीवित शत्रु के हाथ में क्यों आये ? बैरम खां ने अकबर से कहा कि इस काफिर को मारकर गाजी बन जाओ | मरणासन्न हेमू मुस्कुरा उठे | इस मुस्कराहट में इतनी जान थी कि अकबर महान के हाथ काँप गए और बैरम खां ने खुद तलवार उठा कर निहत्थे वीर का सर धड से अलग कर दिया | यह अलग बात है कि बाद में खुद बैरम खां भी इसी तरह मारा गया और उसकी बीबी के साथ महान अकबर ने निकाह कर लिया | 

"मध्यकालीन भारत का नेपोलियन" कहे जाने वाले हेमचन्द्र को मुसलमान इतिहासकारों ने बक्काल अर्थात बनिया लिखा है | जबकि अन्य इतिहासकारों ने भार्गव ब्राह्मण | जो भी हो, वह दिल्ली के अंतिम हिन्दू राजा थे और थे बिहार के गौरव, जिनकी याद में आज भी पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की भोजपुरी महिलाएं विशेष अवसरों पर गाये जाने वाले गीतों में उनका स्मरण करती है | 

एक साधारण व्यापारी से महानायक बने हेमचन्द्र 'विक्रमादित्य' को इतिहास में कितनी जगह मिली, भारत में कितने लोग जानते हैं, यह सवाल हमें अपने आप से अवश्य पूछना चाहिए | 

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