स्वतंत्रता का श्रेय. ? - राजेश्वर खरे .


भारत की समृद्धि और वैभव की प्रशंसा सुनकर मोहम्मद गोरी ने सन् 1192 मे भारत पर आक्रमण किया था , उस समय दिल्ली के सिंहासन पर अति शूरवीर पृथ्वीराज चौहान शोभित हो रहे थे । उन्होंने इस यवन आक्रमणकारी गोरी को निरंतर 16 युद्ध में हराया परंतु भारत के अधिकांश राजाओं में देशभक्ति के स्थान पर केवल स्वार्थ ही महत्वपूर्ण था , इसलिए सत्रहवें युद्ध में पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी से पराजित हो गए । इसके पश्चात यवन आक्रमणकारियों के कारण भारत की समृद्धि ,वैभव और गौरव का क्षरण होता रहा । उसके पश्चात फिर कोई भारतीय राजा दिल्ली की गद्दी को हस्तगत नहीं कर सके । भारत की पराधीनता काल की गणना वहीं से प्रारंभ होती हैं ।

भारत ने नादिरशाह की लूट और नरसंहार देखा और अब अरब तुर्किस्तान इत्यादि से निरंतर आक्रमण होते रहे। बाबर से औरंगजेब तक मुगलों ने दिल्ली का सिंहासन संभाला । मुगलों की कार्यशैली और ऐन केन प्रकारेण तलवार की नोक पर हिंदुओं के धर्मांतरण के कारण भारत की जनता त्रस्त हो गयी थी । ऐसे समय इंग्लैंड से ईस्ट इंडिया कंपनी व्यापार करने के लिये भारत आयी । उस समय भारत में सैकड़ों रियासतें और छोटे-छोटे राज्य थे , परस्पर ईर्ष्या और विरोध के भाव थे इसलिए अंग्रेजों ने इस स्थिति का लाभ उठाकर अपनी चतुराई और चालाकी से भारत की सत्ता हथिया ली । यहां यह तथ्य उल्लेखनीय है कि यहां की जनता ने कभी भी विदेशी आक्रमणकारियों को स्वीकार नहीं किया और निरंतर आक्रमणकारियों से संघर्ष करते रहे । अंततः 15 अगस्त सन 1947 को अंग्रेजों को भारत से बोरिया बिस्तर समेट कर जाना पड़ा । वह इतने चतुर थे कि जाते-जाते उन्होंने भारत से पॉवर ऑफ ट्रांसफर के द्वारा सत्ता हस्तांतरित की ।

इस प्रकार लगभग सवा आठ सौ बरसों के बाद भारत से विदेशियों का बर्चस्व समाप्त हो सका ।और हमें परकीय शासन से मुक्ति मिली । आजादी के बाद साठ वर्षों तक निरंतर एक ही दल का निर्बाध शासन रहा और वे जनता को बताते रहे कि उन्होने ही भारत को आजाद करवाया है । आजादी के बाद महात्मा गांधी जी के आग्रह के पश्चात भी कांग्रेस भंग नही की गयी ।और जनता में यह भ्रम बनाये रहे कि आजादी दिलाने में केवल उन्हीं का योगदान है । उस समय की परिस्थितियां और घटनाओं का गंभीरतापूर्वक विश्लेषण करना होगा और सभी वास्तविक सत्य तथ्य जनता के सामने आने चाहिए ।

" दे दी हमें आजादी बिना खडग बिना ढाल " यह गीत मैं बचपन से ही सुनता आ रहा हूं और इससे आभास होता है कि हमें सत्याग्रह करने अनशन करने चरखा चलाने जैसे कार्यों से ही आजादी प्राप्त हुई । परंतु बड़े होकर भारत के क्रांतिकारियों के विषय में जब मुझे जानकारी हुई तब विचार किया कि लाखों लोग अज्ञानी नहीं हो सकते हैं ,वे क्यों अपने परिवार तथा प्राणों को देश पर निछावर करने के लियेतत्पर हैं । इन सबने देश के लिए जिस प्रकार का त्याग और बलिदान किया है वह व्यर्थ एवम् अकारथ नहीं किया है । इसलिए मैं ऐसा समझता हूं कि आजादी प्राप्त होने के अनेक कारण हैं ।

कॉग्रेस पार्टी की स्थापना सन 1885 में लॉर्ड ए ओ ह्यूम द्वारा की गयी थी । पार्टी बनाने का उद्देश्य यह था कि 18 57 के स्वाधीनता संग्राम से उपजे जनाक्रोश को एक ऐसा मंच मिल जाए जिससे जनता वहां अपनी भड़ास निकाल सके और अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कोई विशेष समस्या खड़ी ना हो । प्रारंभ में दल इसी प्रकार चलता रहा , बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में कुछ समाज सुधारक और देशभक्त व्यक्ति इस दल से जुड़े , जिनमें प्रमुख रूप से बाल गंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय , बिपिन चंद्र पाल सरीखे महानुभाव ने देश की अवस्था और समाज सुधार के विषय में चर्चा की । श्री लोकमान्य तिलक द्वारा दिया गया नारा " स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है " जनता में अधिक प्रचलित हुआ । 

सन 1928 में जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से आये तो उन्होंने समाज सुधार के लिए और जन जागृति के लिए कांग्रेसका उपयोग किया , गांव गांव में संगठन खडा किया । गांधी जी की कार्यशैली यह थी कि जनता की छोटी-छोटी बातों को लेकर जन आंदोलन कर सरकार से उन्हें सुविधाएं दिलाई जाए। ऐसे समय नमक आंदोलन हुआ , आंदोलन सफल रहा ।गांधी जी ने अनेकों आंदोलन किए जैसे स्वदेशी अपनाओ , खादी वस्त्रों का उपयोग करो और अपनी बात मनवाने के लिए शांतिप्रिय तरीके अपनाओ , सविनय अवज्ञा आंदोलन इसका उदाहरण है । सन 1938 में लाहौर का अधिवेशन हुआ जहां श्री नेहरू जी ने पूर्ण स्वराज्य की बात रखी । इसी क्रम में सन 1942 में असहयोग आंदोलन की विस्तृत रूपरेखा बनाई जिसे भारत छोड़ो आंदोलन भी कहा जाता है परंतु अंग्रेजी शासन को इस आंदोलन की जानकारी प्राप्त हो गई और उन्होंने आंदोलन प्रारंभ होने की पूर्व रात्रि में ही सभी प्रमुख नेताओं को पूरे देश से पकड़कर कारागार में निरुद्ध कर दिया , इससे आंदोलन समाप्त तो नहीं हो पाया लेकिन आंदोलन की ऊर्जा कम हो गई ।बाहर बचे नेताओं ने आन्दोलन को चलाया परंतु शीर्षस्थ नेताओं के ना होने के कारण वह प्रभावकारी नहीं रहा । जिन लोगों को कारागार में निरुद्ध किया था उनको पीड़ित किया गया और उन्हें सबक सिखाने की दृष्टि से उनके परिवारों को भी नहीं बख्शा गया इसी प्रकार जो इस आंदोलन से जुड़े लोग बाहर थे उनके साथ भी इसी प्रकार का व्यवहार किया गया । सन 1942 के बाद कोई भी आंदोलन या कोई भी ऐसी कार्यवाही जो अंग्रेजों को परेशान कर सके नहीं हो पाई , यह कांग्रेस द्वारा संचालित प्रभावी और अंतिम आंदोलन था ।

अब विचार करें कि जब अंग्रेजों ने लगभग 90 वर्ष तक शासन किया उसको तिलांजलि देकर वे यकायक इंग्लैंड वापिस क्यों चले गए ? वे द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता थे , इस समय भारत में उनकी सत्ता को चुनौती देने वाले कोई महत्वपूर्ण कारण नहीं था । हमें विचार करना होगा वास्तव में ऐसी कौन सी परिस्थितियां थी जिनके कारण अंग्रेज भारत छोड़ गए ।द्वितीय विश्व के कारण इंग्लैंड की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गई थी । इनके भारत से पलायन का यह भी एक उल्लेखनीय कारण हो सकता है । इसके साथ ही भारत में क्रांतिकारियों की गतिविधियां के कारण अंग्रेज परेशान रहते थे , उनकी गतिविधियां भी महत्वपूर्ण कारक हो सकता हैं ।

प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात अंग्रेजों ने भारत वासियों को यह आश्वासन दिया था की यदि वे जीत जाते हैं तो भारत को आजाद कर देंगे और इस कारण भारत वासियों ने उनकी सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों की सहायता की । लेकिन जब प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया और अंग्रेज अपने उद्देश्य में सफल हो गए तो उन्होंने अपने वायदे को नहीं निभाया और वे पहले से भी अधिक क्रूरता से भारत में शासन करते रहे उसका उदाहरण जलियांवाला कांड है , जहां उन्होंने हजारों भारतीयों का कत्लेआम किया था । जब द्वितीय विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ तब श्री सुभाष चंद्र बोस जी ने महात्मा गांधी से यह निवेदन किया था कि द्वितीय विश्व युद्ध के कारण यह उपयुक्त समय है कि अंग्रेजों पर चोट की जाए और हम आजादी के लिए बिगुल बजादे ,लेकिन महात्मा गांधी जी नेताजी से सहमत नहीं हुए ।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के हृदय में देश प्रेम की ज्वाला जल रही थी उसके कारण वह धुरी राष्ट्रों के संपर्क में आए और उनकी सहायता से वह आजादी प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहे उन्होंने आजाद हिंद फौज की रचना की जिसमें देश के लगभग साठ लाख नौजवान सम्मिलित हुए और उन्होंने भारत के उत्तर पूर्व सेअपनी गतिविधियां जोरो से प्रारंभ की, वहां अंग्रेजों की सेना से संघर्ष करते हुए 26000 आजाद हिंद फौज के रणबांकुरों ने अपनी आहुति दी । फल स्वरूप वहाँ अंग्रेजों को मुंह की खानी पड़ी । नेता जी ने आजाद हिंद सरकार की स्थापना की जिसे कई देशों ने मान्यता भी दी । वे जब रूस पहुंचे तब स्टेलिन से कहकर अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बना लिया और उनको क्रूर यातनाएं देकर मार दिया गया । और यह प्रचार किया गया कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की एक हवाई जहाज दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी ।

यहाँ एक तथ्य उल्लेखनीय है कि जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया और उनकी सेना में जो भारतीय लोग भर्ती थे उनकी संख्या लाखों में थी वे जब लौट कर आए तो उन्होंने अंग्रेजों से कहा कि अपने वायदे के अनुसार आप भारत को आजादी दीजिए परंतु अंग्रेज ने वादाखिलाफी की , इसलिए इन लोगों में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश और नफरत फैल गई इनमें से हजारों की संख्या में आजाद हिंद फौज में वे सम्मिलित हो गए ,जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों की वह सेना जो भारत में थी उसमें तीव्र विद्रोह फैल गया । इसके प्रमाण स्वरूप आर्कलॉजिकल गजट में श्री रंजन बोरा का एक आर्टिकल छपा है , जिसमें उन्होंने उल्लेख किया है कि जब ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री एटली भारत आए और उन्होंने पश्चिम बंगाल के राज्यपाल से जस्टिस बीवी चक्रवर्ती से भेंट की , तब जस्टिस चक्रवर्ती ने उनसे पूछा कि द्वितीय विश्व युद्ध के आप विजेता रहे और उसके पश्चात भी ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि इतनी जल्दबाजी में आप भारत छोड़कर इंग्लैंड बापिस चले गए तो उन्होंने स्पष्टता से बताया कि "सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज " इसके पश्चात जस्टिस चक्रवर्ती ने बात स्पष्ट करनी चाही और पूछा कि आपके भारत छोड़ने मे कांग्रेस आंदोलन और गांधीजी की कितनी भूमिका थी । उन्होने दो टूक उत्तर दिया कि मिनिमल (minimal ) । जिस समय भारत को आजादी मिली उस समय ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ही थे और उन्होंने जब यह तथ्य उजागर किया तो उनसे अधिक सत्यता की जानकारी किसको हो सकती है इसके साथ ही श्री कल्याण कुमार डे ने अमेरिका से इंग्लैंड जाकर ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी के सभी अभिलेखों का विस्तृत अध्ययन किया जो उनके पास अभी उपलब्ध हैं । उन्होंने अपनी पुस्तक में अभिलेख दिए हैं उन तथ्यों से भी इसी बात की पुष्टि होती है कि आजाद हिंद फौज के आक्रोश से डरकर कर और सेना में विद्रोह के कारण अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा ।

. पूज्य महात्मा गांधी और कांग्रेस ने देश के लिए जो त्याग और बलिदान किया है उसको में किंचित मात्र भी कम करके नहीं आंकना चाहता हूं बल्कि केवल मेरा यह निवेदन है यदि इसके अतिरिक्त अन्य और भी कारक है तो ऐसे व्यक्तियों को भी आजादी का श्रेय मिलना चाहिए क्योंकि ऐसे लोगों को भुला देने से देश में त्याग और बलिदान की भावना तिरोहित हो जाएगी इसीलिए आज समाज में कौन सुभाष चंद्र बोस बनने की लालसा रखता है किस बच्चे में चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह बनने की लालसा है ।आज क वातावरण मे फिल्म कलाकारों को और क्रिकेटरों को भगवान की तरह पूजने लगे हैं क्योंकि उनकी समक्ष कोई आदर्श ही नहीं रखें गये । इसलिए मैं खुले रूप से आप से विचार करने का आग्रह करता हूं । मेरी कथनों का यह अर्थ नहीं लगाया जाए कि मैं कांग्रेस या गांधीजी के बताए हुए मार्ग का विरोधी हूँ उनके द्वारा किए गए कार्यों का बहुत ही कम मूल्यांकन कर रहा हूं । लेकिन इतना मेरा कहना अवश्य है कि इन लोगों के साथ साथ जिन लोगों ने देश और समाज बनाने के लिए अपने प्राणों की बाजी लगाई उन्हें भी समाज के समक्ष लाना चाहिए और पूरे भारत मे समर्पण श्रद्धा और देशभक्ति की भावना जागृत हो ।

राजेश्वर खरे .


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