पूर्व प्रधान मंत्री स्व. नरसिंहाराव, जिनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस के मुख्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया



आज से देश के पूर्व प्रधान मंत्री स्व. पामुलापति वेंकट नरसिंहाराव का जन्म शताब्दी वर्ष प्रारम्भ हो रहा है | २८ जून १९२१ को आंध्रप्रदेश के करीमनगर में जन्मे श्री राव को अपने प्रधान मंत्री काल में 'लाइसेंस राज' की समाप्ति और भारतीय अर्थनीति में खुलापन लाने के लिए सदा स्मरण रखा जाएगा | लेकिन उससे भी अधिक इसलिए कि उनके ही कार्यकाल में न केवल देश के माथे पर कलंक का टीका बाबरी ढांचा हटा, बल्कि अगर १९९३ और १९९४ में उनके मंत्रिमंडल के निर्णयों और सर्वोच्च न्यायालय में दिए गए शपथ पत्रों को गौर से पढ़ा जाए तो साफ़ समझ में आता है कि राम जन्मभूमि विवाद बेबजह आगे के वर्षों में खिंचता रहा | 

११ जनवरी २०१९ को श्री सुब्रमन्यम स्वामी ने लगातार कई ट्वीट कर इसे स्पष्ट किया | श्री स्वामी के अनुसार श्री नरसिंहाराव केबिनेट १९९४ में ही भूमि अधिग्रहण का निर्णय कर चुकी थी और अब तो सरकार को उसे केवल कार्यान्वित करना भर है | सरकार उस भूमि को अविलंब विश्व हिन्दू परिषद् को सोंप दे | इस कार्य में न्यायालय में चल रहा टाईटिल सूट कोई रुकावट नहीं है | जिसके भी पक्ष में फैसला हो, उसे बाजार दर से जमीन का मुआवजा दे दिया जाए | 

तो लगता है कि नरसिंहाराव जी ने कितनी होशियारी से रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण का मार्ग साफ़ कर दिया था | लेकिन दुर्भाग्य कि न तो हिंदुत्व निष्ठ उन्हें वह सम्मान देते, जिसके वे हकदार थे और कांग्रेस द्वारा तो देने का सवाल ही कहाँ उठता है, क्योंकि वह तो केवल और केवल नेहरू बाड्रा परिवार के हाथों की अब कठपुतली भर शेष बची है और इस बेशर्म हकीकत को कोई झुठलाता भी नहीं है | 

अगर श्री नरसिंहाराव जी को भारत का सबसे विद्वान प्रधानमंत्री कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी | नरसिम्हा राव 17 भाषाएं बोल सकते थे, इनमें 9 भारतीय भाषाएं थीं, तप 8 विदेशी भाषाएं | नरसिम्हा राव को 'भारत के आर्थिक सुधारों का जनक' कहा जा सकता है, जिसका कांग्रेस ने उन्हें कभी श्रेय न देते हुए, उनके मंत्रीमंडल में मंत्री रहे मौन सिंह उपाख्य मनमोहन सिंह जी को प्रदान किया | ध्यान देने योग्य है कि स्व. चंद्रशेखर के कार्यकाल में भारत दिवालिया होने की कगार पर खड़ा था, अपने कर्ज़ चुकाने के लिए भारत को अपना सोना विदेशों में गिरवी रखना पड़ा था, लेकिन भारत की अर्थव्यवस्था को इस खराब दौर से बाहर निकालने का श्रेय नरसिम्हा राव को जाता है | 

नरसिम्हा राव भारत के बहुत दूरदर्शी प्रधानमंत्री थे, लेकिन ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि नरसिम्हा राव को वो सम्मान कभी नहीं मिला जिसके वो हकदार थे | उनकी पार्टी कांग्रेस और और इसकी सर्वेसर्वा यानी गांधी परिवार की तरफ से भी उन्हें कभी, कोई सम्मान नहीं दिया गया | लेकिन खुशी की बात है कि प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज अपनी “मन की बात” में उन्हें सादर स्मरण किया | वे पूर्व में भी लगातार कहते रहे हैं कि नरसिम्हा राव एक महान विद्वान और अनुभवी प्रशासक थे और उन्होंने बहुत निर्णायक मोड़ पर भारत का नेतृत्व किया था | 

जानकर ही हैरत होती है कि जब 23 दिसंबर 2004 को दिल्ली में श्री नरसिम्हा राव की मृत्यु हुई, उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी | कहने को तो मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ही सुपर प्रधान मंत्री कही जाती थीं | इसलिए दिल्ली में नरसिम्हा राव जी के अंतिम संस्कार के लिए दो गज़ ज़मीन भी नहीं दी गई | इतना ही नहीं तो नरसिम्हा राव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस के मुख्यालय में प्रवेश नहीं दिया गया | भारत के इतने योग्य पूर्व प्रधानमंत्री का इस तरह का अपमान क्या कभी भुलाए जाने योग्य है ? अगर नरसिम्हा राव के परिवार ने यह मांग की कि इस अन्याय और अपमान के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को माफी मांगनी चाहिए, तो इसमें गलत क्या था ? 

नरसिम्हा राव के साथ ये अन्याय इसलिए किया गया क्योंकि वो गांधी परिवार के चहेते नहीं थे और गांधी परिवार ये कभी नहीं चाहता कि कांग्रेस पार्टी में गांधी खानदान के अलावा किसी और नेता का गुणगान हो | 

नरसिम्हा राव ने अपने कार्यकाल में भारतीय विदेश नीति के विस्तार की प्रक्रिया को शुरू किया | वर्ष 1992 में नरसिम्हा राव ने इज़राइल के साथ भारत के संबंधों को बढ़ावा देना शुरू किया | उन्होंने अपने कार्यकाल में इज़राइल के साथ भारत के रिश्तों को आधिकारिक रूप दिया | 1990 के पहले भारत की विदेश नीति सोवियत संघ की तरफ झुकी हुई थी, लेकिन दूरदर्शी नरसिम्हा राव ने भारत और अमेरिका के बीच संबंधों को बहुत मजबूत किया | यहाँ तक कि वर्ष 1992 में भारत और अमेरिका ने मिलकर मालाबार नेवल एक्सरसाईज शुरू की, क्योंकि नरसिम्हा राव इस बात को समझ चुके थे कि हिंद महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए अमेरिका को साथ लाना बहुत ज़रूरी है | 

सच कहा जाए तो आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस लुक ईस्ट पालिसी को आगे बढ़ाया है, वह नरसिंहाराव जी द्वारा ही प्रारंभ की गई थी और इसी नीति के माध्यम से आज भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के वियतनाम, लाओस, कम्बोडिया, थाईलेंड, जैसे देश हमारे करीब आ रहे हैं, उनसे हमारे रिश्ते मजबूत हो रहे हैं | 

राजनीतिक मामलों के लेखक विनय सीतापति ने नरसिम्हा राव पर एक किताब लिखी है- Half-Lion: How P.V. Narasimha Rao Transformed India | इस किताब में वो लिखते हैं कि सुबह 11 बजे AIIMS में नरसिम्हा राव की मृत्यु हुई. जिसके बाद राव के पार्थिव शरीर को उनके सरकारी आवास 9, मोतीलाल नेहरू मार्ग लाया गया | कांग्रेस के एक नेता आए और उन्होंने नरसिम्हा राव के छोटे बेटे प्रभाकर से कहा कि नरसिम्हा राव का अंतिम संस्कार हैदराबाद में किया जाना चाहिए | हालांकि नरसिम्हा राव के परिवार वालों का तर्क था कि दिल्ली नरसिम्हा राव की कर्मभूमि थी, इसलिए अंतिम संस्कार दिल्ली में ही किया जाना चाहिए | इस पर से सोनिया गांधी के करीबी गुलाम नबी आजाद ने आकर एक बार फिर परिवार वालों को हैदराबाद जाने की सलाह दी | शाम करीब सात बजे, सोनिया गांधी के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और प्रणब मुखर्जी भी नरसिम्हा राव के सरकारी आवास पर गए | जब परिवार वालों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी अपनी वही मांग दोहराई तो इसके बाद आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री Y S राजशेखर रेड्डी ने नरसिम्हा राव के परिवार वालों को मनाना शुरू किया | 

कांग्रेस के बड़े नेताओं के दबाव के बाद मजबूरन परिवारवालों को हैदराबाद जाना ही पड़ा | 24 दिसंबर 2004 को यानी उनकी मृत्यु के अगले दिन, नरसिम्हा राव के अंतिम दर्शन के लिए सभी राजनीतिक दलों के नेता आए, इसके बाद सुबह 10 बजे राव के पार्थिव शरीर को गाड़ी में रखा गया, एयरपोर्ट जाते हुए उनके पार्थिव शरीर को 24 अकबर रोड यानी कांग्रेस दफ्तर में ले जाने की योजना थी | 

लेकिन जब उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर के सामने ले जाया गया तो वहां गेट बंद था, उनके पार्थिव शरीर को अंदर नहीं ले जाने दिया गया | कांग्रेस दफ्तर के सामने ही एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया | सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और कांग्रेस के कई बड़े नेता वहां मौजूद थे, लेकिन दुख की बात है कि ये श्रद्धांजलि समारोह कांग्रेस दफ्तर के बाहर चल रहा था | 

नरसिम्हा राव के जीवन पर आधारित किताब Half-Lion में ये भी लिखा गया है कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्षों के पार्थिव शरीर को पार्टी दफ्तर में रखने की परंपरा थी, ताकि कार्यकर्ता उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें | लेकिन नरसिम्हा राव के मामले में ये नहीं किया गया . एक कांग्रेस नेता ने साफ कहा था कि कांग्रेस के दफ्तर का गेट खोलने का आदेश सिर्फ सोनिया गांधी ही दे सकती थीं, और उन्होंने आदेश नहीं दिया | जबकि नरसिम्हा राव के निधन से कुछ वर्ष पहले माधवराव सिंधिया का निधन हुआ था और उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस दफ्तर के अंदर लाया गया था | 

इससे भी अधिक हैरत अंगेज है कि नरसिम्हा राव के अंतिम संस्कार में मनमोहन सिंह तो गए लेकिन सोनिया गांधी नहीं पहुंची
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