चुनावो का परिणाम तय करेगा नेताओ का भविष्य।



शिवपुरी उपचुनावों की तैयारी प्रारम्भ हो गयी है,भाजपा और काँग्रेस दोनों ही राजनीतिक दलों ने चुनावी बिसात बिछानी प्रारम्भ कर दी है।पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के काँग्रेस छोड़ भाजपा में जाने के बाद समर्थक विधायको के दल बदल ने प्रदेश में सत्ता परिवर्तन कराया वही 24 स्थानों पर उपचुनाव भी तय किये।कोरोना के कारण चुनाव की तिथि पर असमंजस बरकरार है,परन्तु राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारी प्रारम्भ कर दी है,क्योंकि चुनाव के बाद ही नेताओ का भविष्य और सत्ता समीकरण तय होगा। 

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने के बाद प्रदेश की राजनीति में जैसे भूचाल आ गया और सत्ता में बैठी कांग्रेस विपक्ष में आ गयी। 

पोहरी और करेरा के सिंधिया समर्थक विधायक सुरेश रांठखेड़ा और जसवंत जाटव ने भी अपने स्तीफ़े सौंप सत्ता परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।अब दोनो ही जगह उपचुनाव होने है और दोनो स्थानों के परिणामो से जिले की राजनीति का भविष्य तय होगा। भाजपा के नेता कांग्रेस से आये इन नेताओं को कितना झेल पाते है,और कांग्रेस के ये नेता भाजपा परिवार में कितने सेट हो पाते है इसी से चुनाव की दशा व दिशा का निर्धारण होगा। 

जहाँ तक कांग्रेस की बात है नवनियुक्त जिलाध्यक्ष श्रीप्रकाश शर्मा के पास अनुभव तो पर्याप्त है पर लम्बे समय से सिंधिया के आस पास सिमटी कांग्रेस को वह कितना मजबूत चुनाव की दृष्टि से कर पाते है, ये देखना बाकी है। पोहरी में तो हरिबल्लभ शुक्ला और प्रद्युम्न वर्मा जैसे नेता काँग्रेस के पास बचे है, किन्तु असली परीक्षा तो कांग्रेस की करेरा में है, जहां प्रागीलाल ने बसपा से पिछला चुनाव लड़ने के बाद अब कांग्रेस में आकर अपनी दावेदारी प्रस्तुत की है | इससे कांग्रेस की पूर्व विधायक शकुंतला खटीक और चीकू योगेश करारे नाराज भी बताए जा रहे है। शकुंतला और चीकू चूंकि सिंधिया निष्ठ ही जाने जाते रहे है, अतः भले ही वह भाजपा में नही गए पर परन्तु कांग्रेस में विश्वास पात्र भी नही माने जा रहे, शायद इसीलिए किसी रणनीति के तहत प्रागीलाल का कांग्रेस आगमन हुआ है | अतः माना जा रहा है कि करैरा में कांग्रेस से प्रागीलाल और भाजपा से जसवंत के बीच ही संघर्ष सामने आएगा | कोई तीसरा प्रमुख व्यक्ति भी निर्दलीय लड़ जाए, इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता | अतः करैरा के ये उपचुनाव कांटे के होंगे, दोनों ही दलों में जमकर भितरघात होगा, यही संभावना जताई जा रही है |

परन्तु ये तो सिर्फ कयासों की ही बात है, सचाई तो जब चुनाव होगा तब सामने आएगी | परन्तु इससे यह तो स्पष्ट होता ही है कि चुनावी बिसात तो बिछना शुरू हो ही गयी है | दोनों ही दलों के लिए करो या मरो जैसी स्थिति है | इस चुनाव के परिणाम से न सिर्फ प्रदेश की राजनीति बल्कि नेताओ का भी भविष्य तय होगा।
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