आपदा को अवसर में बदलने की लालसा पाले बैठे अवसरवादी और मुनाफाखोर – दिवाकर शर्मा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा कि आपदा को अवसर में बदलना है और अब सिर्फ एक रास्ता है 'आत्मनिर्भर भारत'। इस दौरान प्रधानमंत्री नें 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान भी किया। बस फिर क्या था शुरू कर दिया अवसरवादी और मुनाफाखोरों नें इस भीषण आपदा को अवसर में बदलने का खेल | कोरोना नामक आपदा में किस तरह मुनाफा खोरी की जाए, आपदा की आड़ में किस तरह से कम कीमत की सामग्री को अफसरों से सांठ-गांठ करके ऊंची कीमत पर बिक्री की जाए। इसको लेकर अवसरवादी और मुनाफाखोर सक्रिय हो गए है स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने में |

जब समूचा देश Covid-19 आपदा से लड़ रहा है, तब भी कुछ लोग अनुचित मुनाफ़ा कमाने से नहीं चूक रहे है | इन मुनाफाखोरों पर कोई भी दंडात्मक कार्यवाही न होने से इनके हौंसले भी बुलंद हो रहे है | यह मुनाफाखोर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के लिए अफवाहों का सहारा भी लेने से नहीं चूक रहे है | इन अफवाहों से देश के मध्यम वर्ग पर क्या असर पड़ेगा इन्हें उससे कोई लेना देना नहीं है |

संकट के इस काल में जहाँ सरकार सामान्य व्यक्ति के साथ खड़े होने और उसकी हर संभव मदद की बात कहती नजर आती है, किन्तु सरकार के द्वारा जारी की गयी जनहितैषी योजनाओं को सामान्य वर्ग तक पहुँचाने की जिम्मेदारी जिन कन्धों पर है, वही लोग इसका उपयोग स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने में कर रहे है | कोरोना के दौरान लॉक डाउन से लोगों के व्यापार बंद हो गए, उनके सामने दो वक्त की रोटी खाने की भी समस्या उत्पन्न हो गयी, मध्यम वर्ग को बैंकों से लिए गए ऋण की मासिक किस्त का भुगतान करने की चिंता सताने लगी, ऐसे में भारत सरकार के अनुरोध पर आरबीआई के द्वारा समस्त बैंकों एवं वित्तीय संस्थाओं के द्वारा ऋण धारकों से 6 माह तक कोई भी ईएमआई न लेने की घोषणा की गयी | घोषणा तो हुई परन्तु क्या उस पर अमल हुआ ? कई सारी वित्तीय संस्थाएं एवं बैंक ऐसे है जिनके द्वारा इन घोषणाओं पर अमल नहीं किया गया या अभी भी नहीं किया जा रहा है | क्या यह बैंक और वित्तीय संस्थाएं मुनाफाखोर नहीं है ? क्या इन बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का मुख्य उद्धेश्य केवल और केवल मुनाफा कमाना ही है ?

कोरोना संकट के इस दौर में हमारे ही बीच के वह लोग जो स्वयं को सामजिक प्राणी कहते नहीं थकते है, लखपति से करोडपति, करोडपति से अरबपति, बनने हेतु मुनाफाखोरी से बाज नहीं आ रहे है | चाहे वह किराने का सामान हो या अन्य कोई दैनिक आवश्यकता की वस्तु, किसी न किसी बहाने से इन सभी वस्तुओं पर मुनाफाखोर अधिक से अधिक मुनाफा कमाने की नीयत से बढ़ी हुई दरों पर बेच रहे है | मज़बूरी में लोग इन ऊँचे दामों की वस्तुओं को खरीद भी रहे है |

कोरोना के इस दौर में ऐसे लोगों का भी एक बड़ा वर्ग है जो केवल और केवल प्रशासनिक अधिकारीयों से नजदीकियां बढ़ाने में जुटा नजर आ रहा है | उनका उद्देश्य स्पष्ट है जिसके संकेत इन्होने अभी से देना प्रारंभ कर दिए है कि इनकी आत्मनिर्भरता के अवसर आने वाले समय में इन्हीं प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से पूर्ण होंने है | ऐसे अवसरवादी लोगों के साथ अक्सर असामाजिक प्राणी भी दिखाई दे जाते है, परन्तु इस कोरोना काल में यह असामाजिक प्राणी भी अपने आपको प्रशासनिक अधिकारीयों की नजरों में कुछ दिन लोगों को चाय नास्ता और खाने के पैकेट बांट कर शहर का सबसे बड़ा समाजसेवी घोषित करा चुके होंगे और फिर इनकी आत्मनिर्भरता के चर्चे हर गली-मोहल्ले, पान, चाय, चाट-पकोड़ी की दुकानों पर होंगे |

कोरोना फाइटर के रूप में उन लोगों को नजरअंदाज कर, जिन्होंने अपना जीवन झोखिम में डालकर निश्वार्थ भाव से हर उस व्यक्ति की यथा संभव सहायता की जिसके जीवन में कोरोना किसी काल की भांति आया है, नेताओं-अधिकारीयों और प्रभावशाली लोगों के खासमखास लोगों का सम्मान बड़े बड़े बैनर पोस्टर लगा कर ऐसे किया जाएगा जैसे इन्होने ही कोरोना को अपनी जान जोखिम में डाल कर हराया हो | उसके बाद कोरोना को अवसर बना कर इनकी भी आत्मनिर्भरता दिन दूनी रात चौगनी गति से सरपट दौडेगी |

हम सभी जानते है कि देश के प्रधानमंत्री नें आपदा को अवसर में परिवर्तित करने का सन्देश कोरोना महामारी को एकजुट होकर हराने और उसके बाद उत्पन्न होने वाले हालातों से देश को निकाल कर प्रगति के पथ पर अग्रसर करने हेतु है | और यह कोई नया नहीं है, जब भी इस देश पर कोई भी विपदा आई है तो न सिर्फ उसका सामना सभी देशवासियों नें मिलकर किया है बल्कि सदैव उस पर विजय प्राप्त कर देश को उन्नति के मार्ग पर प्रशस्त किया है | इसका भी एक बड़ा कारण है | दरअसल हम उन महान ऋषि मुनियों और महापुरुषों की संतानें है जिन्होंने सम्पूर्ण विश्व को खाना-पीना, उठना-बैठना, पढ़ना-लिखना यहाँ तक कि वस्त्र पहनना सिखाया है | यह बात और है कि वर्तमान में अधिकांश लोग पाश्चात्य संस्कृति का अनुशरण कर अपनी उस वैभवशाली विरासत को विस्मृत कर बैठे है परन्तु उनकी भी रगों में उन्ही महान तपस्वियों का रक्त ही तो बह रहा है जो आज सशरीर हमारे बीच भले ही न हो परन्तु हमारे डीएनए में आज भी जीवित है | आवश्यकता है बस जामवंत रुपी उस व्यक्ति की जो हमें हमारे गौरवशाली इतिहास की याद दिलाये और वही कार्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे है | इसके बाद हमें न सिर्फ कोरोना को हराना है बल्कि इन अवसरवादी और मुनाफाखोर लोगों की उस मानसिकता को भी परास्त करना है जो आपदा को अवसर में बदलकर सिर्फ स्वयं आत्मनिर्भर होना चाह रहे है | बिना यह सोचे कि इससे देश कमजोर होगा |

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें