कंफ्यूज कम्युनिज्म को झन्नाटेदार चांटा - संजय तिवारी


वह सभी को धमकाता रहता था। सभी को झुकाया। सोवियत संघ को टुकड़ो में बांटा। ताइवान से तिब्बत तक केवल कब्जे की राजनीति किया। लाखों लाख कत्ल किये। सृष्टि में उपलब्ध हर प्राणी को आहार बना लिया। दुनिया को अपनी दुकान बना लिया। किसी ने कभी सीना तान कर उससे कुछ पूछने की हिम्मत नही की। किसी ने उसके किए अनीति का विरोध नही किया। पिछले पांच दशक यानी 50 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है कि उसको एक झन्नाटेदार थप्पड़ पड़ा है। अभी उसे समझ नही आ रहा कि हिमालय के पड़ोस से क्या सच मे उसकी कनपटी को किसी ने निशाना बना दिया?

अभी वह गाल सहलाने में लगा था कि चुनौतियों की झड़ी लग गयी। जैसी झालरें वह बनाता है वैसी ही चनौतियाँ उसके सामने भी है। इन चुनौतियों में गजब की चमक है। कन्फ्यूसियस से लेकर वर्तमान तक पीकिंग से बीजिंग बन चुके साम्राज्य की एक एक ईंट पहली बार हिलने लगी है। उसके एक दो पालतू बकरो को अभी तक समझ नही आ रहा कि वे कहां खड़े हों। उनको भली प्रकार से मालूम है कि आका का संकट उनको गर्भवती कर चुका है और कुछ नन्हे नए राष्ट्र जन्म लेने वाले है। उसको भी पहली बार आभास हो रहा है कि एक राजनीतिक पार्टी को चंदे और खैरात देकर 70 वर्षों से लीज की तरह इस्तेमाल होने वाला भारत अब वह नही रहा। यह नया भारत है जो अपनी सनातन परंपरा को नए ढंग से स्थापित करने में निपुड़ हो चुका है। इस भारत की सामरिक शक्ति के आगे कन्फ्यूज्ड और साम्राज्यवादी कम्युनिज्म एक पल भी टिक नही सकता।

भारत के भीतर दहाई में लोक प्रतिनिधित्व पाने वाले एक दल को छोड़ दें तो पूरा भारत अपनी सरकार के साथ खड़ा है। ममता बनर्जी , मायावती, अरविंद केजरीवाल और भारत की सामरिक राजनीति के बड़े खिलाड़ी रहे शरद पवार जैसे विपक्षी भी खुल कर सरकार के साथ है। भारत के केवल एक पट्टीदार को छोड़ कर सभी पड़ोसी चुप हैं। नेपाल खुद प्रसवकाल में है। स्वाधीन बलोचिस्तान पर सैन्य शक्ति से काबिज पड़ोसी भी प्रसव पीड़ा झेल रहा है। ताइवान और हांगकांग अलग रंग में हैं। जापान पहली बार खुल कर बोल रहा है। अमेरिका, फ्रांस , रूस ,इजरायल जैसी शक्तियों को भारत के साथ खड़े होने में कोई संकोच नही। दुनिया मे यह तीसरे विश्वयुद्ध की आहट के रूप में विश्लेषित किया जा रहा है।

युद्ध बहुत आगे की बात है। बात अभी इतनी है कि पहली बार चीन से कोई आंखे मिला कर बात करने को तैयार है। यह गांधी और जिन्ना का संवाद नही है।। जिन्ना जानते थे कि उनकी हर जिद के आगे गांधी झुकेंगे क्योकि झुकने के अलावा गांधी के पास कोई विकल्प था ही नही। लेकिन आज का भारत चीन के आगे झुकने वाला नही। जब वार्ता में पता हो कि ताकत कितनी है तो वार्ता के आधार और निहितार्थ बदल जाते हैं। ठीक है कि अभी भारत और चीन के बीच सैन्य स्तर की वार्ताएं चल रही हैं। ये वार्ता लंबी खिंच सकती है क्योंकि भारत आज सामरिक शक्ति में चीन से बहुत आगे है। चीन के सैन्य सामान और नाटी सैन्य टुकड़ियां लेह और सियाचिन जैसे युद्ध मैदानों में लड़ने के काबिल हैं ही नही। भला हो पाकितान का कि उसके कारण भारतीय सेना को इस पिच पर लड़ने की आदत पड़ चुकी है। चीन यह सब जानता है। उसके घर मे पहली बार विद्रोह की चिंगारी भी दिखनी शुरु हो गयी है।

सत्ताधारी पार्टी के एक पूर्व राजनेता ने स्वीकार किया है कि गलवान में चीन के सैकड़ो सैनिक मारे गए है। बीजिंग में अब कम्युनिज्म इतना कंफ्यूजन में है कि उसकी साम्राज्यवादी दृष्टि एक घटाटोप देखने लगी है। भारत के प्रधानमंत्री का दिन में 4 बजे जनता को संबोधित करने के पीछे नवंबर तक 80 करोड़ लोगों को राशन देने की घोषणा भर मकसद नही है। नरेंद्र मोदी दुनिया को बता चुके कि सालोंसाल बिना किसी आयात के वह भारत की जनता को भोजन कराने में सक्षम हैं। अब यह उन्हें सोचना है जो भारत की होली, दिवाली , तीज त्यौहारों के बाजार से अपना कोष समृद्ध करते थे। अभी तो केवल एक इलेक्ट्रॉनिक इस्ट्राइक है। नितिन गडकरी ने तो आज ही ऐलान कर दिया कि सड़क निर्माण के किसी काम मे अब कोई चीनी कंपनी नही रहेगी। आगे देखते रहिये, कम्युनिज्म का कंफ्यूजन।

एक टिप्पणी भेजें

एक टिप्पणी भेजें