क्या सचमुच कोरोना के नाम पर फिजूल डराया जा रहा है ?



भारत में एक ख्यातनाम शख्स हैं- डॉ विश्वरूप राय चौधरी | डॉ. विश्वरूप राय चौधरी का जन्म 23 जुलाई को हैदराबाद में हुआ और आगे चलकर इन्हें एक Nutritionist के रूप में जाना जाने लगा इन्होंने Indo Vietnam Medical Board से PhD किया है | इनका भारत के अतिरिक्त स्विटजरलेंड और वियतनाम में भी संस्थान हैं, जहाँ पर लोगो का इलाज प्राकृतिक पद्धति से किया जाता है और इसमें इन्हें काफी सफलता भी मिल रही है | डॉ विश्वरूप राय चौधरी अपनी इन्वेस्टिगेटिव किताबों के लिए प्रसिद्ध है | इनकी अब तक लगभग 25 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं | डॉ विश्वरूप राय चौधरी नें मेडिसिन से जुड़ी किताबों के जरिए अपनी एक खास पहचान बनाई है। याददाश्त पर लिखी उनकी पहली किताब बेस्टसेलर रही है। उसके बाद, उन्होंने अस्पताल से जिंदा कैसे लौटें नाम की किताब लिखकर सनसनी मचा दी थी। डॉ. चौधरी अपनी किताबों एवं समय समय पर दिए जाने वाले व्याख्यानों में प्राइमरी रिसर्च का उल्लेख तो करते ही, साथ ही डब्ल्यूएचओ जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा जुटाए गए आंकड़े भी देते हैं। 

किन्तु इसके साथ ही डॉ. विश्वरूप चौधरी का कई डॉक्टरों व चिकित्सा संस्थानों द्वारा विरोध भी प्रारम्भ हो गया है | कारण भी समझा जा सकता है | हाल ही में उनके द्वारा व्यक्त विचारों ने लगभग समूचे आधुनिक चिकित्सा जगत को कठघरे में खड़ा कर दिया है | जैसे कि कोरोना वायरस के बारे में डॉ विश्वरूप राय चौधरी का कहना है कि यह एक सामान्य फ्लू वाइरस की तरह ही है और इसके नाम पर लोगो को फिजूल ही डराया जा रहा और लोग डरते जा रहे है। 

वेक्सीन को लेकर भी डॉ चौधरी कहते है कि “जब भी दुनिया में कोई भी वायरल या वेक्टिरिअल बीमारी आती है तो जब उसकी भीषणता समाप्त हो जाती है या वह बीमारी लगभग समाप्त हो चुकी होती है, तब उसका वैक्सीन मार्केट में उलब्ध होता है | डॉ चौधरी इस बात को उदाहरण के साथ समझाते है कि पोलियो बीमारी विश्व में 1950 में आई और इसकी सर्वाधिक विभीषिका 1950 से 1952 के बीच रही | लेकिन वर्ष 1956 तक जब यह बीमारी लगभग लगभग समाप्त हो गयी थी तब इसका वैक्सीन आया और प्रचारित किया गया कि पोलियो की वैक्सीन की वजह से पोलियो विश्व से समाप्त हो गया है | खसरा 1880 में सामने आया और इसकी वैक्सीन 1970 में आई तब तक यह भी लगभग निष्क्रिय हो चुका था और इसके निष्क्रिय होने का पूरा श्रेय भी वैक्सीन को प्राप्त हुआ| रोहिणी या डिप्थीरिया बीमारी भी १८८० में सामने आई और इसका सर्वाधिक प्रभाव १८८० से १९०० के बीच देखा गया और इसके बाद यह स्वतः ही समाप्त होने लगा था तथा 1940 से 1950 के दौरान यह लगभग समाप्त हो गया था तभी 1950 में इसका वैक्सीन लॉन्च कर दिया गया | 

कुक्कर खांसी की भी यही कहानी है | यह 1980 में सामने आई और इसका वैक्सीन बना १९५० में | टाईफाइड 1900 के दौरान सामने आया इसका तो कोई व्यापक टीकाकरण भी नहीं हुआ, इसके बावजूद इसके संक्रमितों की संख्या १९६० तक न के बराबर रह गयी | लाल बुखार (स्कार्लेट फीवर) जिसका कोई वैक्सीन नहीं है यह 1900 में अस्तित्व में आया और 1950 तक इसके द्वारा होने वाली मौतों की संख्या मामूली रह गयी | 

वैक्सीन के बारे में डॉ चौधरी कहते है कि यदि आप सोचते है कि हम दवा के बगैर जिन्दा नहीं रह सकते तो वह एक भ्रम है | यह ठीक है कि यदि हम सरदर्द की दवा खा लेंगे तो सरदर्द से आराम मिल जाएगा पर सरदर्द ठीक हो जाएगा यह कहना गलत है | आराम मिलने का यहाँ अर्थ यह है कि आपको यह पता नहीं चलता कि आपके सर में कुछ गडबड है, अर्थात दवा आपकी बीमारी के अहसास को मिटाती है न कि बीमारी को | 

डॉ चौधरी कहते है कि जिस प्रकार गाड़ी में ब्रैक का अपना विशेष महत्व होता है ठीक उसी तरह हमारे शरीर में भी प्रकृति ने कई ब्रेक बनाये है | हमारे शरीर में यह ब्रेक, स्टोन, ट्यूमर और कैंसर है | उदाहरण के लिए हम स्टोन को लेते है | प्रत्येक मनुष्य के शरीर में स्टोन बनता है जो एक निश्चित आकार तक बढ़ता है जैसे 3 mm, 4mm, 6mm, 7mm और जब यह बढते हुए अपनी उच्च सीमा से भी अधिक यानि 10mm तक पहुँचता है तब व्यक्ति को दर्द होना प्रारंभ होता है, तब व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है | डॉक्टर तब स्कैन, अल्ट्रासाउंड कराने को कहते है और उसमें वह स्टोन दिखाई देता है, जिसकी सर्जरी डॉक्टर द्वारा की जाती है | जबकि वह स्टोन जिसे सर्जरी के माध्यम से निकाल दिया जाता है, उसके लिए किसी बाहरी सर्जरी की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हमारे शरीर का मेकेनिज्म है कि जिस तरह से वह स्टोन बढ़ता है, उसी तरह से वह घटता भी है | और यह स्टोन के अलावा ट्यूमर आदि में भी होता है | यह हमारे शरीर में वैसे भी होते ही है, बस किसी लापरवाही के कारण इनका आकार निर्धारित आकार से अधिक हो जाता है, तब हमें दर्द का अनुभव होता है | इसे किसी सर्जरी के द्वारा नहीं बल्कि यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के द्वारा स्वतः ही ठीक किया जा सकता है | 

डॉ चौधरी कैंसर के बारे में चौकाने वाला खुलासा करते हुए कहते है कि आम तौर पर कैंसर को एक बीमारी माना जाता है, परन्तु ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जिसके शरीर में कैंसर न हो | यदि किसी व्यक्ति के शरीर में कैंसर न हो तो उस व्यक्ति को हार्ट अटेक, ब्रेन स्ट्रोक होने के चांस बढ़ जाते है | इसे समझाते हुए डॉ चौधरी कहते है कि आपने ब्रेस्ट कैंसर, ब्लड कैंसर, लंग्स कैंसर तो सुना होगा, पर क्या कभी आपने हार्ट कैंसर सुना है ? दरअसल हम जो भी कुछ खाते है उनमें से कई तत्वों को शरीर उपयोग नहीं कर पाता तो ऐसे में कई बार शरीर स्टोन या ट्यूमर का निर्माण करता है | जब शरीर यह दोनों ही चीजें नहीं बनाता है, तो शरीर उस अवशिष्ट पदार्थ को यहाँ-वहां फैकने लगता है | ऐसे में शरीर के भीतर ब्लोकेज बनना प्रारंभ होते है जो पूरे शरीर में बनते है | यह ब्लोक्स जहाँ भी बनेंगे शरीर का वह भाग ठीक से काम नहीं करेगा | जब यह अवशिष्ट पदार्थ रक्त नलिकाओं को बाधित कर देते है तो रक्त का बहना बंद हो जाता है | ऐसे में जिस स्थान के आगे रक्त नहीं जा पाता है, उस स्थान में मौजूद सेल को उनका भोजन मिलना बंद हो जाता है तथा उन सेलों की मृत्यु हो जाती है | यह अधिकांश लोगों के शरीर में होता है, परन्तु 1 या 2 प्रतिशत लोगों के शरीर में यह मृत होते सेल एक चोरी का रास्ता बनाते है, जिसे मेडिकल की भाषा में एंजियोजेनेसिस कहा जाता है | यह सेल भोजन प्राप्त होना बंद होने के बाद इस रास्ते के द्वारा 2-4 दिन के बाद भोजन प्राप्त करने लगते है | इस दौरान सेल कई बार जरुरत से ज्यादा भोजन प्राप्त करने लगते है और इस स्थिति को कैंसर कहा जाता है | कैंसर में सेलों की संख्या में बढोत्तरी होती है और उस स्थान पर दर्द होना प्रारंभ होता है | दर्द से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति अस्पताल जाता है और उसे कैंसर होने की जानकारी प्राप्त होती है | 
डॉक्टर राय कहते है कि सामान्य व्यक्ति के शरीर में भी कई जगह ट्यूमर का होना सामान्य बात है | इन ट्यूमर को धीरे धीरे खत्म करने का काम हमारे शरीर का मेकेनिज्म करता है | लेकिन कई बार हमारे शरीर का सिंग्नलिंग सिस्टम ठीक ढंग से काम नहीं करता है | हमारे शरीर में सिग्नलिंग सिस्टम के कमजोर होने का मात्र एक ही कारण है - डाईओक्सिन (DLS) | आसान शब्दों में डॉ चौधरी इसे समझाते है कि किसी भी तरह का कैमिकल, जो बॉडी के लिए नहीं बना उसे अपने शरीर में प्रवेश न करने दें | डॉ चौधरी के अनुसार किसी भी तरह की एलोपेथी दवा भी डाईओक्सिन (DLS) का कार्य करती है, जो हमारे शरीर के सिग्नलिंग सिस्टम को कमजोर करती है | डॉ चौधरी के अनुसार हमारे शरीर का डिजाईन एलोपेथी दवा को ग्रहण करने के अनुसार नहीं बना है | डॉ चौधरी हार्ट कैंसर न होने का कारण स्पष्ट करते हुए कहते है कि हार्ट के मसल्स एक सेकंड के लिए भी आराम नहीं करते है अतः उसके मसल्स को लगातार ऑक्सीजन चाहिए होती है | अन्य सेलों की तुलना में हार्ट के सेल दो दिन नया मार्ग बनाने के लिए इन्तजार नहीं कर सकते है, इसी लिए हार्ट अटेक होता है न कि हार्ट कैंसर | इसी प्रकार ब्रेन स्ट्रोक होता है | अर्थात जहाँ के सेल इंतजार कर सकते है, वहां कैंसर और ट्यूमर बन जाता है, जिन्हें ठीक किया जा सकता है | डॉ चौधरी कैंसर और ट्यूमर को शरीर के डस्टबीन की संज्ञा देते हुए कहते है कि जिस प्रकार घर में डस्टबीन का होना आवश्यक है, वैसे ही शरीर में कैंसर और ट्यूमर का रोल होता है, परन्तु एक निश्चित आकार और मात्रा में | 

यह डॉ विश्वरूप राय चौधरी के वह विचार है जिन्हें इन दिनों पूरी दुनियां में काफी देखा, सुना और पढ़ा जा रहा है | बड़ी मात्रा में लोग डॉ राय के विचारों से सहमत भी नजर भी आते है तो कई लोग असहमत भी नजर आते है | अब यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उनके विचारों से सहमत होते है अथवा नहीं | आप स्वयं अपने विवेक का उपयोग कर उनकी बातों को देखें, सुनें और पढ़ें | पर एक बात तो है कि बड़ी मात्रा में लोग डॉ विश्वरूप राय चौधरी के इन विचारों को आम जन तक पहुँचने ही देना नहीं चाहते है, जिसका एक बड़ा उदाहरण है कि डॉ चौधरी जो इन दिनों कोरोना को लेकर प्रतिदिन नए खुलासे कर रहे है, उनके द्वारा बनाये जा रहे विडियो को यूट्यूब न सिर्फ हटा रहा है, बल्कि उनके यू ट्यूब अकाउंट को भी रिमूव कर दे रहा है | डॉ विश्वरूप राय चौधरी फिर भी लगातार अपनी बात कह रहे है और खास बात यह कि वे प्रभाव भी छोड़ रहे हैं |

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1 टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुंदर लेख और बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी डॉक्टर चौधरी के बारे में जो वाकई एक आम आदमी की आंखें खोल सकती है

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